मैं राधिका हूँ
 
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मैं राधिका हूँ

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मैं राधिका हूँ - भाग 6

रघुवीर को भेजा मेरा आखिरी मैसेज—“मैं आज रात हवेली आऊँगी। लेकिन ये हमारी आखिरी मुलाकात होगी।”—मेरे मन में एक अजीब सा संकल्प जगा चुका था। मैं अब उस आग में नहीं जलना चाहती थी, जो मुझे बार-बार रघुवीर की ओर खींच रही थी। उनकी धमकियाँ, उनका हक जताना, और गाँव की फुसफुसाहट—सब कुछ मुझे एक ही रास्ता दिखा रहा था: मुझे इस भँवर से निकलना होगा, चाहे इसके लिए मुझे कितनी भी कीमत चुकानी पड़े।

लेकिन मन के एक कोने में डर था। रघुवीर कोई साधारण इंसान नहीं था। गाँव का ठाकुर, जिसके इशारे पर लोग नाचते थे, वो मेरे इस फैसले को इतनी आसानी से कैसे स्वीकार कर लेगा? और अर्जुन? उसकी चिंता, उसकी सादगी, और उसकी मेरे लिए फिक्र—क्या वो मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त था, या मेरे दिल में उसके लिए कुछ और पनप रहा था?


रात की तैयारी

शाम को मैंने एक गहरे हरे रंग की साड़ी पहनी। ये साड़ी मेरे शरीर पर बिल्कुल फिट थी, लेकिन इस बार मैंने इसे सिर्फ़ सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि अपनी ताकत दिखाने के लिए चुना। मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब वो कमज़ोर राधिका नहीं थी, जो रघुवीर की चाहत में डूब गई थी। वहाँ एक औरत थी, जो अपनी ज़िंदगी को वापस हासिल करने के लिए तैयार थी।

सासु माँ को मैंने कहा, “माँ जी, स्कूल के कुछ कागज़ात ठाकुर साहब को देने हैं। मैं जल्दी लौटूँगी।” सासु माँ ने मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में शक की एक हल्की सी चमक थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। “जल्दी लौटना, बेटी,” बस इतना ही बोलीं।

मैंने गहरी साँस ली और घर से निकल पड़ी। रास्ते में गाँव की गलियाँ खामोश थीं, लेकिन मुझे लग रहा था कि हर दीवार, हर खिड़की मुझे देख रही है। रघुवीर की हवेली के सामने पहुँचते ही मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। मैंने दरवाज़ा खटखटाया।


हवेली में तकरार

रघुवीर ने दरवाज़ा खोला। उनकी आँखों में वही जुनून था, लेकिन इस बार एक अजीब सी बेचैनी भी। “आओ, राधिका,” उन्होंने कहा और मुझे अंदर ले गए। हवेली का ड्रॉइंग रूम हल्की रोशनी में नहाया हुआ था। टेबल पर दो ग्लास और एक व्हिस्की की बोतल रखी थी।

“बैठो,” उन्होंने कहा और मेरे लिए एक ग्लास में ड्रिंक डाली। मैंने ग्लास को छुआ तक नहीं। “रघुवीर जी, मैं यहाँ ड्रिंक पीने नहीं आई। मैंने कहा था, ये हमारी आखिरी मुलाकात है।”

रघुवीर की मुस्कान फीकी पड़ गई। वो मेरे करीब आए और मेरे गाल पर उंगलियाँ फेरते हुए बोले, “राधिका, तुम्हें लगता है तुम मुझसे दूर जा सकती हो? तुम्हारी हर साँस, तुम्हारी हर सिसकारी—सब मेरे लिए है। तुम मेरी हो।”

मैंने उनका हाथ हटाया और पीछे हट गई। “रघुवीर, मैं किसी की जागीर नहीं हूँ। मैंने गलती की, लेकिन अब मैं उस गलती को सुधारना चाहती हूँ। आप मुझे धमकियाँ देकर रोक नहीं सकते।”

उनकी आँखों में गुस्सा चमक उठा। “धमकियाँ? राधिका, मैंने तुम्हें ज़िंदगी के वो पल दिए जो तुम्हारा पति तुम्हें कभी नहीं दे सकता। और अब तुम मुझे छोड़ना चाहती हो? गाँव में एक इशारा करूँ, और तुम्हारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।”

मेरा गुस्सा भी भड़क उठा। “रघुवीर, अगर तुमने ऐसा कुछ किया, तो मैं भी चुप नहीं रहूँगी। मैं गाँव वालों को बता दूँगी कि तुमने मुझ पर दबाव डाला, मुझे धमकाया। तुम्हारा रौब कितने दिन चलेगा?”

रघुवीर सन्न रह गए। शायद उन्हें मेरे इस तेवर की उम्मीद नहीं थी। लेकिन फिर वो हँसे, और उनकी हँसी में एक खतरनाक ठंडक थी। “राधिका, तुम बहुत भोली हो। इस गाँव में मेरी बात ही कानून है। लेकिन मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा। अगर तुम जाना चाहती हो, तो जाओ। लेकिन याद रखना, तुम मेरे पास लौटोगी।”

मैंने उनकी आँखों में देखा और कहा, “ये मेरी आखिरी चेतावनी है, रघुवीर। मेरे पीछे मत पड़ना।” मैंने पलटकर दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए, लेकिन तभी रघुवीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया।

“राधिका, एक आखिरी बार,” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा। उनकी साँसें मेरे गाल पर थीं, और मेरे शरीर में एक पल के लिए वही पुरानी सिहरन जागी। लेकिन मैंने खुद को संभाला और उनका हाथ झटक दिया। “बस, रघुवीर। ये खत्म हो चुका है।”

मैं दरवाज़े से बाहर निकली। हवेली के बाहर ठंडी हवा मेरे चेहरे को छू रही थी, और मेरे मन में एक अजीब सा सुकून था। मैंने रघुवीर को चुनौती दे दी थी। लेकिन क्या ये सुकून ज्यादा देर टिकेगा?


अर्जुन का हौसला

अगले दिन स्कूल में मैंने अर्जुन को सब कुछ बता देने का फैसला किया। मैं अब अकेले इस बोझ को नहीं ढो सकती थी। दोपहर में, जब स्कूल खाली था, मैंने उसे गार्डन में बुलाया।

“अर्जुन, मुझे तुमसे कुछ कहना है,” मैंने धीरे से कहा। मेरी आवाज़ काँप रही थी। अर्जुन ने मेरी ओर देखा, उसकी आँखों में वही सच्चाई थी। “बोलिए, राधिका जी। मैं सुन रहा हूँ।”

मैंने गहरी साँस ली और सब कुछ बता दिया—रघुवीर के साथ मेरी गलतियाँ, उसकी धमकियाँ, और गाँव की अफवाहें। मैंने अपनी आँखें झुका रखी थीं, मुझे डर था कि अर्जुन मुझे गलत समझेगा। लेकिन जब मैंने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में नफरत या शक नहीं, बल्कि दर्द और समझ थी।

“राधिका जी, आपने बहुत हिम्मत दिखाई जो ये सब मुझे बताया,” उसने कहा। “ठाकुर साहब गलत हैं। वो आपका फायदा उठा रहे हैं। लेकिन अब आप अकेली नहीं हैं। मैं आपके साथ हूँ।”

मेरे आँसू छलक आए। “अर्जुन, मैंने बहुत गलतियाँ की हैं। मैं अपने पति को धोखा दे चुकी हूँ। क्या मैं कभी इस बोझ से मुक्त हो पाऊँगी?”

अर्जुन ने मेरे कंधों पर हाथ रखा और कहा, “राधिका जी, गलतियाँ इंसान से होती हैं। लेकिन जो अपनी गलतियों से सीखता है, वही असली हिम्मत दिखाता है। आपने ठाकुर को चुनौती दी, ये कोई छोटी बात नहीं है। अब हमें मिलकर इसका हल निकालना होगा।”

उसने बताया कि उसका दोस्त, जो ठाकुर के घर काम करता है, कुछ सबूत इकट्ठा कर सकता है—जैसे ठाकुर की धमकियों के मैसेज या उनकी दूसरी हरकतों के बारे में जानकारी। “अगर हमें गाँव के कुछ बड़े लोगों का साथ मिल जाए, तो हम ठाकुर का रौब कम कर सकते हैं,” अर्जुन ने कहा।

मैंने उसकी बात सुनी, और मेरे मन में एक नई उम्मीद जगी। शायद मैं इस जाल से निकल सकती थी।


अनचाहा खतरा

उसी शाम, जब मैं घर लौट रही थी, रास्ते में एक अजीब सी हलचल थी। कुछ लोग मुझे देखकर फुसफुसा रहे थे। मैंने अनदेखा करने की कोशिश की, लेकिन तभी एक औरत मेरे पास आई और बोली, “राधिका, तूने ठाकुर साहब से पंगा लिया है? अब देख, गाँव में तेरी इज़्ज़त का क्या हाल होगा।”

मेरा दिल डूब गया। रघुवीर ने अपनी धमकी को सच करना शुरू कर दिया था। घर पहुँचते ही सासु माँ ने मुझे रोक लिया। “राधिका, ये क्या सुन रही हूँ? लोग कह रहे हैं कि तू ठाकुर साहब के साथ...” उनकी आवाज़ में गुस्सा और दर्द दोनों थे।

“माँ जी, ये सब झूठ है,” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में वो विश्वास नहीं था। सासु माँ ने मेरी ओर देखा और बोलीं, “बेटी, मैंने तुझे अपनी बेटी माना है। सच बता, क्या हुआ है?”

मैं टूट गई। मैंने सासु माँ को सब कुछ बता दिया—रघुवीर की हरकतें, उसकी धमकियाँ, और मेरी गलतियाँ। मैं रो रही थी, और सासु माँ चुपचाप सुन रही थीं। जब मैं रुकी, उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा, “राधिका, तूने गलती की, लेकिन तूने हिम्मत भी दिखाई। अब ये ठाकुर का अहंकार तोड़ना होगा।”

मैं हैरान थी। सासु माँ ने कहा, “मैं गाँव के कुछ और औरतों से बात करूँगी। ठाकुर ने पहले भी कई औरतों को परेशान किया है। अगर हम सब एकजुट हो जाएँ, तो उसका रौब खत्म हो सकता है।”


रात का तूफान

उस रात मैंने अर्जुन को फोन किया और सासु माँ की बात बताई। अर्जुन ने कहा, “राधिका जी, ये हमारा मौका है। मैं अपने दोस्त से कहूँगा कि वो ठाकुर के खिलाफ सबूत इकट्ठा करे। और आप सासु माँ के साथ मिलकर गाँव की औरतों को एकजुट करें।”

मेरे मन में एक नई ताकत जाग रही थी। मैं अब अकेली नहीं थी। सासु माँ, अर्जुन, और शायद गाँव की दूसरी औरतें—हम सब मिलकर रघुवीर के अहंकार को चकनाचूर कर सकते थे।

लेकिन मन के एक कोने में डर था। रघुवीर इतनी आसानी से हार नहीं मानेगा। और विशाल? अगर उसे मेरी गलतियों का पता चला, तो क्या वो मुझे माफ़ कर पाएगा? ये सुलगती रातें अब मेरे भाग्य का फैसला करने वाली थीं। क्या मैं इस तूफान से निकल पाऊँगी, या ये मुझे पूरी तरह निगल लेगा?

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मैं राधिका हूँ - भाग 7

रघुवीर के खिलाफ़ मेरी जंग अब सिर्फ़ मेरी नहीं रही थी। सासु माँ की हिम्मत, अर्जुन का साथ, और गाँव की औरतों की चुपके-चुपके होने वाली बातें—ये सब मेरे अंदर एक नई ताकत भर रहा था। लेकिन डर अभी भी मेरे मन में था। रघुवीर का रौब, उसकी धमकियाँ, और गाँव में मेरे बारे में फैल रही अफवाहें—ये सब मुझे हर पल डराता था। फिर भी, मैंने ठान लिया था कि मैं अब पीछे नहीं हटूँगी। ये मेरी ज़िंदगी थी, और इसे मुझे ही संभालना था।

सासु माँ ने कहा था कि वो गाँव की औरतों को एकजुट करेंगी। अर्जुन अपने दोस्त के ज़रिए रघुवीर के खिलाफ़ सबूत इकट्ठा कर रहा था। लेकिन मेरे मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा था—विशाल। मेरा पति, जो महीनों से ड्यूटी पर था, अगर उसे मेरी गलतियों का पता चला, तो क्या वो मुझे माफ़ कर पाएगा? और अगर मैं रघुवीर को हराने में कामयाब हो गई, तो क्या गाँव मुझे स्वीकार करेगा?


गाँव की औरतों की ताकत

अगले दिन सासु माँ ने मुझे अपने साथ गाँव के एक पुराने मंदिर के पास बुलाया। वहाँ करीब दस-पंद्रह औरतें इकट्ठा थीं। कुछ को मैं पहचानती थी—स्कूल की एक टीचर, पड़ोस की शांति मौसी, और कुछ ऐसी औरतें जिन्हें मैंने सिर्फ़ गाँव में देखा था। सासु माँ ने मुझे उनके सामने खड़ा किया और बोलीं, “राधिका, ये सब वो औरतें हैं जिन्हें ठाकुर ने कभी न कभी परेशान किया है। आज तू इनके सामने अपनी कहानी बता।”

मेरा गला सूख रहा था। मैंने नज़रें झुकाईं और धीरे-धीरे सब कुछ बताया—रघुवीर की शुरुआती मदद, उसकी चाहत, मेरी गलतियाँ, और अब उसकी धमकियाँ। मैं बोलते-बोलते रो पड़ी। मुझे लगा कि ये औरतें मुझे गलत समझेंगी, मुझे तिरस्कार करेंगी। लेकिन जब मैंने नज़रें उठाईं, तो उनकी आँखों में गुस्सा था—रघुवीर के लिए, और मेरे लिए सहानुभूति।

शांति मौसी ने आगे बढ़कर मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “राधिका, तू अकेली नहीं है। ठाकुर ने मेरी बेटी के साथ भी ऐसा ही करने की कोशिश की थी। मैंने चुप रहकर गलती की। लेकिन अब नहीं।” एक-एक करके औरतों ने अपनी कहानियाँ सुनाईं। कोई रघुवीर के डर से चुप थी, तो कोई उसकी सत्ता के आगे झुक गई थी। लेकिन आज वो सब एकजुट थीं।

सासु माँ ने कहा, “हम गाँव के पंचायत में ठाकुर के खिलाफ़ शिकायत करेंगे। लेकिन इसके लिए हमें सबूत चाहिए। राधिका, तू और अर्जुन जो कर रहे हो, वो जल्दी पूरा करो।” मैंने सिर हिलाया। मेरे मन में एक नई उम्मीद जाग रही थी।


अर्जुन का सबूत

उसी शाम अर्जुन मेरे घर आया। सासु माँ ने उसे अंदर बुलाया और चाय दी। अर्जुन ने एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ाया। “राधिका जी, मेरे दोस्त ने ठाकुर के कुछ पुराने मैसेज और उनके घर की एक डायरी निकाली है। इसमें कुछ और औरतों के नाम और ठाकुर की हरकतों का ज़िक्र है। ये सबूत पंचायत के सामने रखे जा सकते हैं।”

मैंने लिफाफा खोला। उसमें रघुवीर के कुछ मैसेज की कॉपियाँ थीं, जो उसने दूसरी औरतों को भेजे थे। डायरी में कुछ तारीखों और नामों का ज़िक्र था, जो ठाकुर की गलत हरकतों की ओर इशारा कर रहे थे। ये सबूत रघुवीर के खिलाफ़ एक मज़बूत केस बना सकते थे।

“अर्जुन, तुमने इतना सब कैसे किया?” मैंने हैरानी से पूछा।

उसने हल्का सा मुस्कुराया और कहा, “राधिका जी, मैंने आपको परेशान देखा तो चुप नहीं रह सका। मेरा दोस्त ठाकुर के घर में काम करता है, और उसने ये सब मेरे लिए जोखिम उठाकर निकाला।”

सासु माँ ने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा और बोली, “बेटा, तूने हमारी इज़्ज़त की रक्षा के लिए बड़ा काम किया है। अब हमें पंचायत को तैयार करना होगा।”


पंचायत का दिन

दो दिन बाद गाँव की पंचायत बुलाई गई। सासु माँ और गाँव की औरतों ने पहले ही कुछ बुजुर्गों और पंचायत के सदस्यों से बात कर ली थी। मैंने और अर्जुन ने सबूत तैयार किए। लेकिन मेरे मन में डर था। रघुवीर को जब इस पंचायत का पता चला, तो वो क्या करेगा?

पंचायत के दिन मंदिर के पास एक बड़ा सा पंडाल लगाया गया। गाँव के ज़्यादातर लोग वहाँ मौजूद थे। रघुवीर भी आया, उसके चेहरे पर वही पुराना रौब था, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की सी घबराहट थी। मैंने उसे देखा, और मेरे अंदर का डर गायब हो गया। मैं अब उसकी धमकियों से नहीं डरती थी।

सासु माँ ने पंचायत की शुरुआत की। “हम यहाँ ठाकुर रघुवीर सिंह के खिलाफ़ कुछ गंभीर आरोपों की बात करने आए हैं। ये आरोप सिर्फ़ मेरी बहू राधिका के नहीं, बल्कि गाँव की कई औरतों के हैं।”

रघुवीर ने बीच में टोकते हुए कहा, “ये सब झूठ है! राधिका और उसकी सास मेरे खिलाफ़ साजिश कर रही हैं।” लेकिन उनकी आवाज़ में वो पुराना जोश नहीं था।

मैंने हिम्मत जुटाई और सामने आकर कहा, “रघुवीर जी, आपने मुझे धमकाया, मेरे साथ गलत किया, और गाँव की दूसरी औरतों को भी परेशान किया। हमारे पास सबूत हैं।” मैंने अर्जुन की ओर इशारा किया, और उसने लिफाफा पंचायत के सामने रख दिया।

शांति मौसी और दूसरी औरतें भी आगे आईं और अपनी कहानियाँ सुनाईं। पंचायत के सदस्यों ने सबूत देखे। रघुवीर की सारी बातें खुलती चली गईं। गाँव वालों की भीड़ में से कुछ लोग रघुवीर के खिलाफ़ बोलने लगे। “ठाकुर ने हमेशा अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया है!” एक बुजुर्ग ने कहा।

रघुवीर ने आखिरी कोशिश की। “ये सब मेरे खिलाफ़ साजिश है! मैं गाँव के लिए इतना कुछ करता हूँ, और तुम लोग मेरे खिलाफ़ हो?” लेकिन इस बार उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। पंचायत ने फैसला सुनाया—रघुवीर को गाँव के मुखिया के पद से हटाया जाएगा, और उनके खिलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज की जाएगी।

रघुवीर चुपचाप वहाँ से चला गया। उसकी आँखों में हार की चमक थी। मैंने उसे जाते हुए देखा, और मेरे मन का बोझ हल्का हो गया।


नई शुरुआत

पंचायत के बाद गाँव का माहौल बदल गया। कुछ लोग मेरी तारीफ़ कर रहे थे, तो कुछ अभी भी मेरे बारे में फुसफुसा रहे थे। लेकिन सासु माँ और गाँव की औरतों का साथ मुझे हिम्मत दे रहा था। अर्जुन ने मुझसे कहा, “राधिका जी, आपने जो किया, वो हर औरत के लिए एक मिसाल है।”

मैंने उसकी ओर देखा और कहा, “अर्जुन, तुम्हारे बिना ये मुमकिन नहीं था। तुमने मुझे सिर्फ़ दोस्ती नहीं, बल्कि एक नई ताकत दी।” उसने मुस्कुराकर सिर झुका लिया, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और था—शायद वो ही एहसास जो मेरे दिल में भी धीरे-धीरे पनप रहा था।

कुछ दिन बाद मुझे विशाल का फोन आया। वो जल्दी लौटने वाला था। मैंने फैसला किया कि मैं उसे सब कुछ सच-सच बता दूँगी। शायद वो मुझे माफ़ न करे, लेकिन मैं अब झूठ के साथ नहीं जी सकती थी।


शीशे में राधिका

उस रात मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब न शर्म थी, न डर, न उलझन। वहाँ एक औरत थी, जो अपनी गलतियों से लड़ी थी, जिसने अपनी ताकत को पहचाना था। रघुवीर की वो सुलगती रातें अब मेरे अतीत का हिस्सा थीं। अर्जुन की दोस्ती और सासु माँ का प्यार मेरे भविष्य का रास्ता दिखा रहे थे।

विशाल के आने पर क्या होगा, ये मैं नहीं जानती थी। लेकिन मैं अब तैयार थी—हर सच का सामना करने के लिए, और एक नई राधिका बनने के लिए। ये सुलगती रातें मेरी कमज़ोरी नहीं, मेरी ताकत बन चुकी थीं।

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मैं राधिका हूँ - भाग 8

रघुवीर की हार और गाँव की पंचायत के फैसले ने मेरे जीवन में एक नया मोड़ ला दिया था। मैंने अपनी गलतियों का सामना किया, अपनी ताकत को पहचाना, और सासु माँ व गाँव की औरतों के साथ मिलकर एक ऐसी लड़ाई जीती, जो सिर्फ़ मेरी नहीं, बल्कि हर उस औरत की थी जिसे रघुवीर ने अपनी सत्ता के नीचे कुचलने की कोशिश की थी। लेकिन मेरे मन में अभी भी एक आखिरी डर बाकी था—विशाल। मेरा पति, जो महीनों बाद घर लौटने वाला था। मैंने ठान लिया था कि मैं उसे सब कुछ सच-सच बता दूँगी, लेकिन क्या वो मुझे माफ़ कर पाएगा? और अगर नहीं, तो मेरी ज़िंदगी का अगला कदम क्या होगा?

अर्जुन की दोस्ती मेरे लिए एक सहारा बन चुकी थी। उसकी आँखों में मेरे लिए जो सम्मान और प्यार झलकता था, वो मेरे दिल को एक अजीब सा सुकून देता था। लेकिन मैं अभी भी उलझन में थी। क्या मैं अर्जुन के लिए कुछ महसूस कर रही थी, या ये सिर्फ़ उसकी अच्छाई के प्रति कृतज्ञता थी? और गाँव—क्या ये मुझे पूरी तरह स्वीकार कर पाएगा, या मेरे अतीत की छाया हमेशा मेरे पीछे रहेगी?


विशाल का लौटना

एक सुबह, जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो रही थी, सासु माँ ने मुझे बुलाया। “राधिका, विशाल का फोन आया था। वो आज शाम को घर पहुँच रहा है।” उनकी आवाज़ में खुशी थी, लेकिन मेरे दिल में एक तूफान सा उठ गया। मैंने इतने दिनों से इस पल की कल्पना की थी, लेकिन अब जब वो सचमुच आ रहा था, मेरे पैर काँप रहे थे।

मैंने सासु माँ की ओर देखा और धीरे से कहा, “माँ जी, मुझे विशाल को सब कुछ बताना होगा। मैं झूठ के साथ नहीं जी सकती।” सासु माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोलीं, “बेटी, सच बोलना आसान नहीं होता, लेकिन ये तुझे आज़ाद करेगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

उस दिन स्कूल में मेरा मन नहीं लगा। अर्जुन ने मेरी बेचैनी देखी और पूछा, “राधिका जी, क्या हुआ? आप फिर से परेशान लग रही हैं।” मैंने उसे विशाल के लौटने की बात बताई। उसकी आँखों में एक पल के लिए दर्द उभरा, लेकिन उसने मुस्कुराकर कहा, “राधिका जी, आपने ठाकुर जैसे इंसान को हराया है। अपने पति को सच बताने की हिम्मत भी आप में है। मैं आप पर यकीन करता हूँ।”

अर्जुन की बातों ने मुझे थोड़ा हौसला दिया, लेकिन मेरे मन में डर था। क्या विशाल मेरे सच को बर्दाश्त कर पाएगा?


सच का सामना

शाम को विशाल घर पहुँचा। उसकी वर्दी, उसकी थकी हुई लेकिन गर्म मुस्कान—सब कुछ वही था, जो मुझे उससे प्यार करने की वजह बना था। उसने मुझे गले लगाया और कहा, “राधिका, मैंने तुम्हें बहुत मिस किया।” मैंने भी उसे गले लगाया, लेकिन मेरे सीने में एक बोझ सा था।

रात को, जब सासु माँ सो गईं, मैंने विशाल को अपने कमरे में बुलाया। “विशाल, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है,” मैंने धीरे से कहा। उसने मेरी ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चिंता थी। “बता, राधिका। क्या हुआ?”

मैंने गहरी साँस ली और सब कुछ बता दिया—रघुवीर के साथ मेरी गलतियाँ, उसकी धमकियाँ, गाँव की पंचायत, और मेरी लड़ाई। मैं बोलते-बोलते रो पड़ी। “विशाल, मैंने तुम्हें धोखा दिया। मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी। लेकिन मैं तुमसे झूठ नहीं बोल सकती थी।”

विशाल चुप रहा। उसका चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया था। कुछ देर बाद उसने कहा, “राधिका, तुमने जो किया, वो मेरे लिए एक धक्का है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारी शादी में ऐसा कुछ होगा। लेकिन तुमने सच बोलने की हिम्मत दिखाई। मुझे समय चाहिए, ये सब समझने के लिए।”

वो कमरे से बाहर चला गया। मैं बिस्तर पर बैठकर रोती रही। मेरे मन में एक अजीब सा खालीपन था। मैंने सच बोलकर अपने बोझ को हल्का कर लिया था, लेकिन क्या मैंने अपनी शादी को हमेशा के लिए खो दिया था?


अर्जुन का करीब आना

अगले दिन विशाल सुबह-सुबह कहीं चला गया। सासु माँ ने मुझे बताया कि वो अपने पुराने दोस्त से मिलने गया है। मैं स्कूल गई, लेकिन मेरा मन उदास था। अर्जुन ने मुझे देखते ही समझ लिया कि कुछ गलत हुआ है। उसने मुझे गार्डन में बुलाया और पूछा, “राधिका जी, आपने अपने पति से बात की?”

मैंने सिर हिलाया और सब बता दिया। अर्जुन ने मेरी ओर देखा और कहा, “राधिका जी, आपने जो किया, वो बहुत बड़ी बात है। सच बोलना आसान नहीं होता। आपका पति अगर आपको प्यार करता है, तो वो आपको माफ़ करेगा। लेकिन अगर नहीं, तो भी आप अकेली नहीं हैं।”

उसकी बातों में एक गर्मी थी, जो मेरे दिल को छू गई। उसने धीरे से मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “राधिका जी, मैंने हमेशा आपका सम्मान किया है। लेकिन मैं ये भी नहीं छुपा सकता कि मेरे दिल में आपके लिए कुछ और है। मैं इंतज़ार करूँगा, चाहे जो हो।”

मैं सन्न रह गई। अर्जुन की आँखों में एक सच्चाई थी, जो मुझे रघुवीर की जुनूनी चाहत से बिल्कुल अलग लगी। मैंने उसका हाथ छुड़ाया और कहा, “अर्जुन, मुझे समय चाहिए। मेरी ज़िंदगी अभी बहुत उलझी हुई है।”

उसने मुस्कुराकर सिर हिलाया। “मैं इंतज़ार करूँगा, राधिका जी। जितना समय चाहिए, लीजिए।”


गाँव का नया माहौल

कुछ दिन बाद गाँव में एक नया बदलाव दिखने लगा। रघुवीर के खिलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज हो चुकी थी, और उसने गाँव छोड़ दिया था। कुछ लोग कह रहे थे कि वो शहर में अपने रिश्तेदारों के पास चला गया है। गाँव की औरतें अब खुलकर बात करने लगी थीं। शांति मौसी और सासु माँ ने एक छोटा सा समूह बनाया, जो गाँव की औरतों को उनके हक के लिए जागरूक करने का काम कर रहा था।

मैं भी उस समूह का हिस्सा बनी। स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ मैं औरतों को सिलाई और पढ़ाई सिखाने लगी। गाँव वालों की नज़रों में मेरे लिए अब सम्मान था, हालाँकि कुछ लोग अभी भी मेरे अतीत के बारे में फुसफुसाते थे। लेकिन मैंने अब उन बातों को अनदेखा करना सीख लिया था।

विशाल कुछ दिन बाद लौटा। उसने मुझसे कहा, “राधिका, मैंने बहुत सोचा। तुमने जो किया, उसे मैं भूल नहीं सकता। लेकिन मैं ये भी देख सकता हूँ कि तुमने अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश की। मैं तुम्हें एक मौका देना चाहता हूँ। लेकिन हमें अपनी शादी को फिर से बनाना होगा।”

मेरे आँसू छलक आए। मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “विशाल, मैं तुम्हारा हर कदम पर साथ दूँगी।” उस रात हमने एक-दूसरे को गले लगाया, और मेरे मन का बोझ और हल्का हो गया।


शीशे में नई राधिका

कुछ महीने बीत गए। विशाल और मैं अपनी शादी को फिर से जीने की कोशिश कर रहे थे। वो अब ज़्यादा समय घर पर बिताने की कोशिश करता था। सासु माँ मेरे लिए माँ से ज़्यादा दोस्त बन चुकी थीं। गाँव की औरतें मुझे अपनी प्रेरणा मानती थीं।

अर्जुन अभी भी स्कूल में मेरा दोस्त था। उसने मेरे लिए अपने दिल की बात कभी दोहराई नहीं, लेकिन उसकी आँखों में वही गर्मी थी। मैं जानती थी कि मेरे दिल में भी उसके लिए एक खास जगह थी, लेकिन मैंने उसे दबा रखा था। मेरी ज़िंदगी अब विशाल के साथ थी, और मैं उस रास्ते को चुन चुकी थी।

एक रात मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब एक नई चमक थी—न शर्म, न डर, न उलझन। वहाँ एक औरत थी, जो अपनी गलतियों से ऊबर चुकी थी, जिसने अपनी ताकत को गले लगाया था, और जो अब अपनी ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जी रही थी। रघुवीर की सुलगती रातें मेरे अतीत का हिस्सा थीं, लेकिन मेरे भविष्य में अब सिर्फ़ रोशनी थी।

मैंने शीशे में मुस्कुराया। मैं राधिका थी—नई, मज़बूत, और आज़ाद।

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