मेरा नाम राधिका है। ये कहानी तब की है जब मैं अपनी शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल, एक छोटे से गाँव में, अपने नए जीवन की शुरुआत करने आई थी। मेरी उम्र उस वक्त 26 साल थी, और मेरे पति, विशाल, 35 साल के थे। वो नेवी में लेफ्टिनेंट थे, और उनकी ड्यूटी की वजह से हमारी नई-नई शादी का हनीमून भी अधूरा रह गया था। शादी के महज दस दिन बाद ही उन्हें एक इमरजेंसी कॉल आया, और उन्हें तुरंत ड्यूटी पर जाना पड़ा।
मैं उन्हें स्टेशन छोड़ने गई थी। ट्रेन के हॉर्न की आवाज़ और भीड़ के शोर में मेरे मन में एक अजीब सा खालीपन था। विशाल ने मुझे गले लगाया और कहा, “राधिका, मैं जल्दी लौटूँगा। गाँव में सब तुम्हारा ख्याल रखेंगे।” मैंने मुस्कुराने की कोशिश की, पर मन भारी था।
ट्रेन जैसे ही प्लेटफॉर्म पर रुकी, एक लंबा-चौड़ा आदमी, जिसके चेहरे पर रौब और आँखों में चमक थी, उतरा। विशाल ने मुझे उससे मिलवाया, “ये हैं ठाकुर रघुवीर सिंह, हमारे गाँव के मुखिया।” रघुवीर ने मेरी ओर देखा, उनकी नज़रें कुछ ज्यादा ही गहरी थीं। “राधिका जी, आप हमारे गाँव की शान हैं। कोई भी परेशानी हो, मुझे याद करना,” उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ में एक अजीब सी गर्माहट थी, जो मुझे थोड़ा असहज कर गई। मैंने सिर्फ़ “जी” कहा और सिर झुका लिया।
विशाल ट्रेन में चढ़ गए, और मैं अकेली स्टेशन पर खड़ी रह गई। रघुवीर ने एक बार फिर मेरी ओर देखा और मुस्कुराते हुए चले गए। मैं भारी मन से ससुराल लौट आई।
अगला दिन
अगले दिन मैं गाँव के स्कूल में बच्चों के लिए एक छोटी सी पेंटिंग वर्कशॉप में गई। मैंने हमेशा से बच्चों को पढ़ाने और कला सिखाने का शौक रखा था। उस दिन मैंने एक गहरे नीले रंग की साड़ी पहनी थी, जिसके साथ चांदनी रंग का ब्लाउज़ था। साड़ी का पल्लू हल्का-सा लहरा रहा था, और मुझे अपनी नई ज़िंदगी में कुछ अच्छा करने की उम्मीद थी।
शाम को स्कूल से लौटते वक्त सूरज डूब रहा था। मेरा घर स्कूल से करीब 8 किलोमीटर दूर था, और मैं पैदल ही निकल पड़ी। रास्ते में खेतों की हरियाली और हल्की ठंडी हवा मन को सुकून दे रही थी। लेकिन तभी अचानक आसमान में काले बादल छा गए। बिजली कड़की, और बारिश की बूंदें टपकने लगीं।
मैंने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाए, लेकिन बारिश तेज़ हो गई। मेरी साड़ी भीगकर शरीर से चिपकने लगी। मैं एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे रुक गई, पर बारिश इतनी तेज़ थी कि पेड़ की छांव भी बेकार थी। तभी मेरा फोन बजा। नंबर अनजाना था।
“हैलो?” मैंने डरते हुए फोन उठाया।
“राधिका जी, मैं रघुवीर बोल रहा हूँ। आप कहाँ हैं? बारिश में भीग रही हैं, मेरे घर आ जाइए। ये जगह ठीक नहीं है,” उनकी आवाज़ में वही रौब था, पर इस बार एक अजीब सी चिंता भी।
मैं हिचकिचाई, लेकिन बारिश और ठंड में मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। मैंने उनके बताए रास्ते पर चलना शुरू किया। कुछ ही मिनटों में मैं उनके बड़े से हवेली जैसे घर के सामने थी। दरवाज़ा खुला था। मैं अंदर गई।
रघुवीर सामने खड़े थे। उनकी शर्ट के बटन खुले थे, और गीले बालों से पानी टपक रहा था। “आइए, राधिका जी। भीग गई हैं आप। अंदर आकर कपड़े बदल लीजिए,” उन्होंने कहा। उनकी नज़रें मेरी साड़ी पर रुकीं, जो मेरे शरीर से चिपककर मेरी 34-26-36 की फिगर को साफ़ उभार रही थी।
मैंने शर्मिंदगी महसूस की, पर उनकी पत्नी घर पर नहीं थीं। “वो शहर गई हैं,” रघुवीर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा। मैंने कुछ नहीं कहा और उनके बताए कमरे में चली गई।
हवेली का कमरा
कमरे में एक बड़ा सा वार्डरोब था। मैंने उसे खोला तो उसमें ढेर सारी डिज़ाइनर ड्रेसेस थीं। मेरी नज़र एक काले रंग की साटन ड्रेस पर पड़ी, जो बिना बाहों की थी और घुटनों तक थी। मैंने अपनी गीली साड़ी उतारी, उसे ड्रायर में डाला, और वो ड्रेस पहन ली। ड्रेस मेरे शरीर पर बिल्कुल फिट थी, लेकिन थोड़ी टाइट होने की वजह से मेरी फिगर और उभर रही थी।
मैं बाहर आई तो रघुवीर ड्रॉइंग रूम में बैठे थे। टेबल पर गर्म चाय और प्याज़ के पकौड़े रखे थे। “आइए, गरमा-गर्म चाय पीजिए,” उन्होंने कहा। उनकी आँखों में एक चमक थी, जो मुझे असहज और उत्साहित दोनों कर रही थी।
मैं सोफे पर बैठ गई। ड्रेस थोड़ी छोटी थी, और मेरी जांघें साफ़ दिख रही थीं। रघुवीर की नज़रें बार-बार मेरी ओर जा रही थीं। मैंने चाय का कप उठाया और धीरे-धीरे पीने लगी।
“आप गाँव में अकेली हैं, राधिका जी। कोई चाहिए तो मुझे बता देना,” उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ में एक अजीब सा नशा था। मैंने हल्के से मुस्कुराकर “जी, शुक्रिया” कहा।
मैंने घर पर फोन किया और कहा, “माँ जी, बारिश बहुत तेज़ है। मैं एक सहेली के घर रुक रही हूँ। आज नहीं आ पाऊँगी।” माँ जी ने कहा, “ठीक है, बेटी। ख्याल रखना।”
रघुवीर ने मेरी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “चालाकी भी जानती हैं आप।” मैंने हँसकर जवाब दिया, “ज़िंदगी सिखा देती है।”
माहौल में गर्मी
माहौल अब हल्का और मस्ती भरा हो गया था। मैंने अपने पैर सोफे पर मोड़े और थोड़ा खुलकर बैठ गई। रघुवीर उठकर मेरे पास आए और मेरे बगल में बैठ गए। “पकौड़े खाइए, स्वादिष्ट हैं,” उन्होंने कहा।
उनकी नज़रें मेरी ड्रेस के गले से होते हुए मेरी जांघों तक जा रही थीं। मुझे उनकी ये बेबाकी पसंद आ रही थी। मैंने सोचा, क्यों न थोड़ा मज़ा लिया जाए? मैंने अपने बालों को खोलकर पीछे की ओर झटका दिया, जिससे मेरी गर्दन और कंधे साफ़ दिखने लगे।
रघुवीर की साँसें तेज़ हो गईं। उन्होंने धीरे से मेरी जांघ पर हाथ रखा और सहलाने लगे। मैंने हल्का सा विरोध किया, “ये ठीक नहीं है, ठाकुर साहब।” लेकिन मेरी आवाज़ में वो दम नहीं था।
वो और पास खिसक आए। उनकी उंगलियाँ मेरी ड्रेस के किनारे से अंदर चली गईं। मैं सिहर उठी। फिर उन्होंने मेरे कानों को धीरे से चूमा और मेरे सीने को सहलाने लगे। मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ रही थी।
मैंने उनकी कमर पर हाथ रखा और उनकी पैंट के अंदर हाथ डाल दिया। उनका मर्दाना अंग मेरे हाथ में आया, और मैंने उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। रघुवीर सिहर उठे। उन्होंने मेरी ड्रेस के बटन खोल दिए, और ड्रेस मेरी कमर तक सरक गई।
“राधिका, तुम आग हो,” उन्होंने कहा और मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। उनकी छाती मेरे सीने से सट गई, और उनका गर्म अंग मेरी नाभि को छू रहा था।
बेडरूम की आग
रघुवीर ने मुझे गोद में उठाया और बेडरूम में ले गए। बेड इतना बड़ा था कि उसमें चार लोग आसानी से सो सकते थे। उन्होंने मुझे बेड पर लिटाया और मेरी ड्रेस पूरी तरह उतार दी। मैं सिर्फ़ अपनी काली लेस वाली अंतर्वस्त्रों में थी।
वो मेरे ऊपर झुक गए और मेरे होंठों को चूमने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं भी उस पल में खो गई। फिर वो नीचे सरके और मेरे अंतर्वस्त्र उतार दिए। उनकी जीभ मेरे सबसे नाज़ुक हिस्से पर थी, और मैं सिसकारियाँ लेने लगी।
“रघुवीर, प्लीज़...” मैंने तड़पते हुए कहा।
“क्या चाहिए, राधिका? साफ़-साफ़ बोलो,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा।
मैं शर्म से लाल हो गई, लेकिन मेरे शरीर की आग मुझे बोलने पर मजबूर कर रही थी। “मुझे चाहिए तुम... अब और मत तड़पाओ,” मैंने कहा।
रघुवीर ने अपनी पैंट उतारी और मेरे ऊपर आ गए। उनका कठोर अंग मेरे नाज़ुक हिस्से को छू रहा था। उन्होंने धीरे से दबाव डाला, और मैं दर्द से चीख उठी। “आह... धीरे...” मैंने कहा।
वो रुक गए और मेरे आँसुओं को चूमने लगे। “आज तुम्हें स्वर्ग दिखाऊँगा,” उन्होंने कहा और फिर धीरे-धीरे अंदर आए। दर्द धीरे-धीरे मज़े में बदलने लगा। उनकी हर हरकत मेरे शरीर में बिजली दौड़ा रही थी।
कमरे में सिर्फ़ मेरी सिसकारियाँ और बेड की चरमराहट गूँज रही थी। रघुवीर ने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और तेज़ी से धक्के मारने लगे। मैं भी पूरी तरह उस मस्ती में डूब गई।
“राधिका, कहाँ?” उन्होंने तेज़ साँसों के बीच पूछा।
“बाहर... प्लीज़,” मैंने कहा।
उन्होंने मेरे पेट पर अपना रस गिराया और मेरे बगल में लेट गए। हम दोनों की साँसें तेज़ थीं। कुछ देर बाद मैंने देखा कि बारिश रुक चुकी थी।
घर वापसी
मैंने अपनी साड़ी पहनी और घर के लिए निकल पड़ी। रास्ते में ठंडी हवा मेरे चेहरे को छू रही थी, लेकिन मेरे मन में एक तूफान सा उठ रहा था। जो हुआ, वो गलत था या सही? क्या मैंने अपनी इच्छाओं को आज़ाद कर दिया, या ये सिर्फ़ एक कमज़ोर पल था?
घर पहुँचकर मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरे चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी। लेकिन मेरे मन में सवालों का सैलाब था। क्या मैं फिर कभी रघुवीर से मिलूँगी? या ये सिर्फ़ एक रात की सुलगती रात थी?
मैं राधिका हूँ - भाग 2
पिछली रात की घटना मेरे मन में एक तूफान की तरह उमड़ रही थी। रघुवीर के साथ बिताए वो पल, उनकी गर्म साँसें, और मेरे शरीर में उठी वो अजीब सी आग—सब कुछ मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहा था। मैं घर लौटी, सासु माँ ने मेरी ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, बारिश में ठीक तो हो ना?” मैंने हल्का सा सिर हिलाया और अपने कमरे में चली गई।
शीशे के सामने खड़े होकर मैंने खुद को देखा। मेरे गालों पर हल्की सी लाली थी, और आँखों में एक चमक, जो पहले कभी नहीं देखी थी। लेकिन मन में सवालों का सैलाब था। क्या मैंने गलत किया? विशाल के साथ मेरी नई ज़िंदगी अभी शुरू भी नहीं हुई थी, और मैंने ये क्या कर दिया? फिर भी, रघुवीर की वो बेबाक नज़रें, उनकी छुअन—ये सब मुझे बार-बार अपनी ओर खींच रहा था।
कुछ दिन बाद
करीब एक हफ्ता बीत गया। मैं रोज़ स्कूल जाती, बच्चों को पढ़ाती, और घर लौट आती। लेकिन हर रात, जब मैं बिस्तर पर लेटती, रघुवीर की यादें मेरे मन में हलचल मचातीं। मैं खुद को रोकने की कोशिश करती, लेकिन मेरे शरीर में एक अजीब सी बेचैनी थी। विशाल का कोई फोन नहीं आया था; उनकी ड्यूटी ऐसी थी कि हफ्तों तक संपर्क नहीं हो पाता था।
एक दिन स्कूल में एक नया टीचर आया—अर्जुन। वो करीब 30 साल का था, लंबा, गोरा, और उसकी मुस्कान में एक अजीब सा जादू था। उसने मुझसे हाथ मिलाया और कहा, “राधिका जी, मैंने सुना है आप बच्चों को पेंटिंग बहुत अच्छे से सिखाती हैं। कभी मुझे भी सिखाइएगा।” उसकी बातों में मासूमियत थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और ही कहानी थी। मैंने हँसकर टाल दिया, लेकिन मेरे मन में एक नई हलचल शुरू हो गई।
उसी शाम, स्कूल के बाद अर्जुन ने कहा, “राधिका जी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपको घर तक छोड़ दूँ? मेरा रास्ता भी उधर से होकर जाता है।” मैं हिचकिचाई, लेकिन फिर उसकी बाइक पर बैठ गई। रास्ते में वो हल्की-फुल्की बातें करता रहा—गाँव की, स्कूल की, और अपनी पुरानी नौकरी की। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा सुकून था, जो मुझे अच्छा लग रहा था।
घर के पास पहुँचकर मैं उतरी और उसका शुक्रिया अदा किया। उसने कहा, “राधिका जी, अगर कभी कॉफी पीने का मन हो तो बताइएगा। गाँव में अच्छी कॉफी मिलना मुश्किल है, लेकिन मैं कोशिश करूँगा।” मैंने मुस्कुराकर कहा, “देखते हैं।” लेकिन मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था।
रघुवीर का दोबारा आना
अगले दिन स्कूल में एक मीटिंग थी। गाँव के कुछ बड़े लोग स्कूल के लिए फंडिंग की बात करने आए थे, और उनमें रघुवीर भी थे। मीटिंग में मैं पीछे बैठी थी, लेकिन उनकी नज़रें बार-बार मुझ पर टिक रही थीं। मीटिंग खत्म होने के बाद वो मेरे पास आए और धीरे से बोले, “राधिका जी, आपसे अकेले में दो मिनट बात करनी है।”
मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। मैंने हल्का सा सिर हिलाया, और हम स्कूल के पीछे वाले गार्डन में चले गए। वहाँ कोई नहीं था। रघुवीर ने मेरी ओर देखा और कहा, “उस रात के बाद तुम मेरे दिमाग से नहीं निकल रही हो। मैंने कोशिश की, लेकिन तुम्हारी वो आँखें, तुम्हारी वो सिसकारियाँ—सब मुझे पागल कर रहा है।”
मैंने नज़रें झुका लीं। मेरे मन में भी वही आग सुलग रही थी, लेकिन मैंने कहा, “रघुवीर जी, वो गलत था। मैं शादीशुदा हूँ। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।”
वो हल्का सा मुस्कुराए और मेरे करीब आए। उनकी उंगलियाँ मेरे गाल पर फिरीं, और मेरे पूरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई। “राधिका, ज़िंदगी कुछ पलों की होती है। तुम्हें जो चाहिए, वो मैं दे सकता हूँ। विशाल को क्या पता चलेगा?” उनकी आवाज़ में एक अजीब सा नशा था।
मैंने खुद को पीछे खींचा और कहा, “मुझे समय चाहिए।” वो मुस्कुराए और बोले, “मैं इंतज़ार करूँगा। लेकिन याद रखना, ये आग सिर्फ़ मेरे अंदर नहीं, तुममें भी जल रही है।”
अर्जुन के साथ कॉफी
अगले दिन अर्जुन ने फिर मुझे घर छोड़ा। इस बार उसने रास्ते में रुककर कहा, “राधिका जी, सचमुच कॉफी पीने का मन है। पास में एक छोटा सा ढाबा है, वहाँ चाय-कॉफी अच्छी मिलती है। चलें?” मैंने हामी भर दी।
ढाबे पर हम एक कोने में बैठे। अर्जुन ने कॉफी ऑर्डर की और बातें शुरू कीं। वो अपनी ज़िंदगी के बारे में बता रहा था—कैसे वो शहर छोड़कर गाँव आया, कैसे उसे बच्चों को पढ़ाना पसंद है। उसकी बातों में एक सच्चाई थी, जो मुझे रघुवीर की बेबाकी से अलग लगी।
कॉफी पीते वक्त उसकी उंगलियाँ गलती से मेरे हाथ को छू गईं। वो झट से हट गया और माफी माँगने लगा। मैंने हँसकर कहा, “कोई बात नहीं।” लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी गुदगुदी थी। अर्जुन की मासूमियत और रघुवीर की जुनूनी चाहत—दोनों मुझे अलग-अलग तरह से खींच रहे थे।
रात की मुलाकात
उसी रात, करीब 10 बजे, मेरे फोन पर एक मैसेज आया। रघुवीर का था। “राधिका, हवेली पर आ जाओ। आज रात सिर्फ़ तुम और मैं।” मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। मैंने सासु माँ से कहा कि मुझे स्कूल का कुछ काम है और मैं देर से लौटूँगी।
मैं हवेली पहुँची। रघुवीर दरवाज़े पर खड़े थे। उन्होंने मुझे अंदर खींचा और दरवाज़ा बंद कर दिया। “राधिका, तुमने आकर मुझे बचा लिया,” उन्होंने कहा और मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी साँसें मेरे गालों पर थीं, और मेरे शरीर में फिर वही आग सुलगने लगी।
वो मुझे बेडरूम में ले गए। इस बार कोई हिचकिचाहट नहीं थी। उन्होंने मेरी साड़ी उतारी, और मैंने उनकी शर्ट के बटन खोल दिए। उनकी छाती पर हल्के-हल्के बाल थे, और उनकी मांसपेशियाँ मेरे हाथों में सख्त महसूस हो रही थीं।
वो मेरे ऊपर आए और मेरे होंठों को चूमने लगे। उनकी उंगलियाँ मेरे शरीर पर नाच रही थीं। मैंने उनकी कमर पकड़ी और उन्हें और करीब खींच लिया। “रघुवीर, आज कोई रुकावट नहीं,” मैंने फुसफुसाते हुए कहा।
उनका कठोर अंग मेरे नाज़ुक हिस्से को छू रहा था। उन्होंने धीरे से दबाव डाला, और मैं सिसकारी लेने लगी। इस बार दर्द कम था, और मज़ा ज़्यादा। वो तेज़ी से हिलने लगे, और मैं भी उनकी लय में खो गई। कमरे में सिर्फ़ हमारी साँसों और सिसकारियों की आवाज़ थी।
करीब आधे घंटे बाद वो रुक गए। “राधिका, तुम जादू हो,” उन्होंने कहा और मेरे पेट पर अपना रस गिराया। हम दोनों एक-दूसरे से लिपटकर लेट गए।
सुबह का सच
सुबह जब मैं घर लौटी, मेरा मन फिर से सवालों से घिर गया। रघुवीर के साथ ये रातें मुझे एक अजीब सा सुकून दे रही थीं, लेकिन क्या ये सही था? और अर्जुन? उसकी मासूमियत मुझे एक अलग तरह का एहसास दे रही थी। क्या मैं इन दोनों के बीच फँस रही थी, या ये मेरी अपनी चाहतों का खेल था?
मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब शर्म कम और आत्मविश्वास ज़्यादा था। लेकिन ये आग, ये सुलगती रातें—क्या ये मुझे जला डालेंगी, या मुझे एक नई राधिका बनाएँगी?
मैं राधिका हूँ - भाग 3
रघुवीर के साथ बिताई वो दूसरी रात मेरे मन में एक गहरी छाप छोड़ गई थी। हर बार जब मैं अपनी आँखें बंद करती, उनकी गर्म साँसें, उनकी मजबूत बाहें, और वो जुनूनी पल मेरे सामने आ जाते। लेकिन साथ ही, अर्जुन की मासूम मुस्कान और उसकी सादी बातें भी मेरे दिल में जगह बना रही थीं। मैं खुद को समझाने की कोशिश करती कि ये सब गलत है, कि मुझे विशाल के प्रति वफादार रहना चाहिए। लेकिन मेरे शरीर और मन में उठ रही ये आग मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी।
सुबह जब मैं तैयार होकर स्कूल के लिए निकली, सासु माँ ने मेरी ओर देखकर कहा, “राधिका, तुम्हारे चेहरे पर आजकल एक अलग सी चमक है। सब ठीक तो है ना?” मैंने हँसकर बात टाल दी, “हाँ, माँ जी, बस स्कूल का काम और बच्चों की मस्ती मुझे खुश रखती है।” लेकिन मेरे मन में डर था कि कहीं मेरे चेहरे की चमक मेरे राज़ न खोल दे।
स्कूल में नया मोड़
स्कूल में उस दिन अर्जुन मेरे पास आया। उसने एक छोटा सा स्केचबुक मेरी ओर बढ़ाया और कहा, “राधिका जी, मैंने आपके लिए कुछ बनाया है। देखिए तो।” मैंने स्केचबुक खोला। उसमें एक खूबसूरत स्केच था—एक औरत का, जो साड़ी में खेतों के बीच खड़ी थी। उसकी आँखों में एक गहरी उदासी और होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। मुझे तुरंत समझ आ गया कि ये स्केच मेरा था।
“अर्जुन, ये तो बहुत खूबसूरत है,” मैंने कहा, मेरी आवाज़ में हल्की सी कृतज्ञता थी। उसने शरमाते हुए कहा, “बस, आपकी आँखों में जो कुछ दिखता है, मैंने उसे कागज़ पर उतारने की कोशिश की।” उसकी बातों में एक सच्चाई थी, जो मेरे दिल को छू गई। लेकिन साथ ही, मुझे रघुवीर की वो जुनूनी नज़रें याद आ रही थीं। मैं इन दोनों के बीच उलझती जा रही थी।
उस दिन स्कूल के बाद अर्जुन ने फिर कहा, “राधिका जी, आज फिर कॉफी? इस बार मैंने एक नई जगह ढूंढी है, वहाँ का माहौल बहुत अच्छा है।” मैंने हामी भर दी। मुझे नहीं पता था कि मैं क्यों हाँ कह रही थी—शायद अर्जुन की सादगी मुझे रघुवीर की तीव्रता से एक राहत दे रही थी।
नई जगह, नई बातें
अर्जुन मुझे अपनी बाइक पर गाँव के बाहर एक छोटे से रेस्तरां में ले गया। ये जगह गाँव से थोड़ी दूर थी, और चारों तरफ हरियाली थी। रेस्तरां के बाहर लकड़ी की मेज़ें थीं, और हल्की सी ठंडी हवा चल रही थी। हमने कॉफी ऑर्डर की और बातें शुरू कीं।
अर्जुन ने अपनी ज़िंदगी के बारे में और बताया। “मैं शहर में एक बड़ा स्कूल चलाता था, लेकिन वहाँ की भागदौड़ मुझे खा रही थी। यहाँ गाँव में सुकून है, और बच्चों के साथ समय बिताना मुझे खुशी देता है।” उसकी बातें सुनकर मैं सोच में पड़ गई। क्या मैं भी सुकून की तलाश में थी? या मेरी ये बेचैनी कुछ और ही चाह रही थी?
बातों-बातों में उसने पूछा, “राधिका जी, आप इतनी चुप-चुप क्यों रहती हैं? जैसे आपके मन में कोई भारी बोझ हो।” मैं चौंक गई। क्या मेरे चेहरे पर मेरे राज़ इतने साफ़ दिख रहे थे? मैंने हँसकर कहा, “बस, नई जगह, नया जीवन। थोड़ा समय लगता है।”
लेकिन अर्जुन की नज़रें मेरी आँखों में कुछ ढूंढ रही थीं। उसने धीरे से मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “राधिका जी, अगर कभी मन भारी हो, तो मुझसे कहना। मैं अच्छा दोस्त हूँ।” उसकी उंगलियों की गर्मी ने मेरे शरीर में एक हल्की सी सिहरन पैदा की। मैंने जल्दी से हाथ खींच लिया और कहा, “चलो, देर हो रही है।”
रघुवीर का नया दांव
उसी रात, जब मैं घर पर थी, मेरा फोन बजा। रघुवीर का नंबर था। मेरे दिल की धड़कन फिर से तेज़ हो गई। मैंने फोन उठाया। “राधिका, कल रात गाँव के मंदिर में एक छोटा सा आयोजन है। तुम्हें वहाँ आना है। मैं तुम्हें लेने आऊँगा।” उनकी आवाज़ में वही रौब था, लेकिन इस बार एक अजीब सी जलन भी थी।
मैंने हिचकिचाते हुए कहा, “रघुवीर जी, मैं नहीं आ पाऊँगी। सासु माँ को बता नहीं पाऊँगी।” लेकिन वो हँसे और बोले, “तुम्हारी सासु माँ को मैं मना लूँगा। तुम बस तैयार रहना।” फोन कट गया।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। रघुवीर की बातों में एक अजीब सा आकर्षण था, जो मुझे बार-बार उसकी ओर खींच रहा था। लेकिन अर्जुन की सादगी और उसकी दोस्ती का एहसास भी मेरे मन में जगह बना रहा था। मैं रात भर करवटें बदलती रही।
मंदिर की रात
अगली शाम, रघुवीर सचमुच मेरे घर आया। उसने सासु माँ से कहा, “माँ जी, मंदिर में आज विशेष पूजा है। गाँव के सभी लोग जा रहे हैं। राधिका को भी साथ ले जाना चाहता हूँ।” सासु माँ ने हँसकर हामी भर दी। मैंने एक लाल रंग की साड़ी पहनी, जो मेरे शरीर पर जादू की तरह फिट थी। रघुवीर की नज़रें मुझे देखते ही चमक उठीं।
हम मंदिर पहुँचे। वहाँ भीड़ थी, लेकिन रघुवीर ने मुझे एक तरफ ले जाकर कहा, “पूजा के बाद तुम मेरे साथ हवेली चलोगी।” मैंने विरोध करने की कोशिश की, “रघुवीर जी, ये ठीक नहीं है। लोग देखेंगे।” लेकिन वो मुस्कुराए और बोले, “लोग मेरी बात से डरते हैं। तुम फिक्र मत करो।”
पूजा के बाद, जब भीड़ छटने लगी, रघुवीर ने मुझे अपनी जीप में बिठाया और हवेली की ओर चल पड़ा। रास्ते में वो मेरी जांघ पर हाथ रखकर बोला, “राधिका, तुम्हें देखकर मेरी सारी थकान गायब हो जाती है।” मैं चुप रही, लेकिन मेरे शरीर में फिर वही सिहरन शुरू हो गई।
हवेली की आग
हवेली पहुँचते ही रघुवीर ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। “राधिका, आज कोई जल्दबाज़ी नहीं। ये रात सिर्फ़ तुम्हारी और मेरी है,” उन्होंने कहा। उनकी आँखों में वो जुनून था, जो मुझे हर बार पिघला देता था।
वो मुझे बेडरूम में ले गए। इस बार उन्होंने धीरे-धीरे मेरी साड़ी उतारी, जैसे हर पल को जीना चाहते हों। उनकी उंगलियाँ मेरे कंधों, मेरी कमर, और फिर मेरे सीने पर रेंग रही थीं। मैंने उनकी शर्ट उतारी और उनकी छाती को चूमने लगी। उनकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
“राधिका, तुम्हें पता है तुम क्या कर रही हो?” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया। मैंने हँसकर कहा, “शायद तुम्हें पागल कर रही हूँ।” मेरी बात सुनकर वो और जोश में आ गए।
उन्होंने मुझे बेड पर लिटाया और मेरे पूरे शरीर को चूमना शुरू किया। उनकी जीभ मेरे सबसे नाज़ुक हिस्सों पर थी, और मैं सिसकारियों के साथ तड़प रही थी। “रघुवीर, अब और मत तड़पाओ,” मैंने कहा।
वो मेरे ऊपर आए और धीरे-धीरे मेरे अंदर आए। इस बार दर्द बिल्कुल नहीं था—सिर्फ़ एक गहरा सुख। हम दोनों एक-दूसरे में खो गए। कमरे में सिर्फ़ हमारी साँसों और बेड की चरमराहट की आवाज़ थी।
करीब एक घंटे बाद, जब हम दोनों थककर एक-दूसरे से लिपटे हुए लेटे थे, रघुवीर ने कहा, “राधिका, तुम मेरी आदत बन रही हो।” मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन मेरे मन में डर था। ये आदत मुझे कहाँ ले जाएगी?
अर्जुन का सामना
अगले दिन स्कूल में अर्जुन ने मेरी ओर देखकर कहा, “राधिका जी, आप कल मंदिर में थीं ना? मैंने आपको ठाकुर साहब की जीप में देखा।” उसकी आवाज़ में एक हल्की सी चुभन थी। मैं घबरा गई। “हाँ, वो मुझे पूजा के लिए ले गए थे,” मैंने झूठ बोला।
अर्जुन ने मेरी आँखों में देखा और कहा, “राधिका जी, मैं आपका दोस्त हूँ। अगर कुछ है जो आपको परेशान कर रहा है, तो मुझसे कहिए।” उसकी बातों में इतनी सच्चाई थी कि मेरे आँसू छलक आए। मैंने कहा, “अर्जुन, कुछ चीज़ें समझाना मुश्किल होता है।”
उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “मैं इंतज़ार करूँगा। जब आप तैयार हों, मुझे बताना।” उसकी गर्मी और रघुवीर की आग—दोनों मुझे अलग-अलग दिशाओं में खींच रहे थे।
मन का तूफान
उस रात मैंने खुद से सवाल किया—मैं क्या चाहती हूँ? रघुवीर का जुनून मुझे एक अजीब सा नशा दे रहा था, लेकिन अर्जुन की सादगी मुझे सुकून दे रही थी। और विशाल? वो मेरे पति थे, लेकिन उनकी गैरमौजूदगी ने मेरे जीवन में एक खालीपन भर दिया था।
मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब न शर्म थी, न डर। वहाँ सिर्फ़ एक औरत थी, जो अपनी चाहतों को जीना चाह रही थी। लेकिन ये सुलगती रातें मुझे कहाँ ले जाएँगी? क्या मैं इन आग में जल जाऊँगी, या इनसे एक नई राधिका निकलेगी?
मैं राधिका हूँ - भाग 4
रघुवीर के साथ बिताई हर रात मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी, लेकिन अर्जुन की सादगी और उसकी गहरी नज़रें मेरे मन में एक अलग तरह का तूफान उठा रही थीं। मैं खुद को समझाने की कोशिश करती कि ये सब एक अस्थायी नशा है, कि विशाल के लौटने पर सब ठीक हो जाएगा। लेकिन सच तो ये था कि मैं उस आग में डूब चुकी थी, और अब पीछे हटना मेरे बस में नहीं था।
अर्जुन के उस सवाल—“मैंने आपको ठाकुर साहब की जीप में देखा”—ने मेरे मन में एक डर पैदा कर दिया था। क्या गाँव में मेरे और रघुवीर के बारे में कोई बातें शुरू हो चुकी थीं? सासु माँ अभी तक कुछ नहीं बोली थीं, लेकिन उनकी नज़रें कभी-कभी मुझे टटोलती सी लगती थीं। मैं हर पल इस डर में जी रही थी कि मेरा राज़ खुल न जाए।
स्कूल में तनाव
अगले दिन स्कूल में अर्जुन मेरे पास आया। उसकी आँखों में वही सच्चाई थी, लेकिन इस बार एक हल्की सी उदासी भी। “राधिका जी, मैंने सुना है कि ठाकुर साहब आपके घर अक्सर आते हैं। क्या सब ठीक है?” उसकी आवाज़ में चिंता थी, लेकिन मैं उस चिंता के पीछे जलन भी महसूस कर सकती थी।
मैंने ठंडी साँस लेते हुए कहा, “अर्जुन, वो गाँव के मुखिया हैं। स्कूल के काम से या गाँव की बातों के लिए आते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है।” मेरा जवाब जितना सधा हुआ था, मेरे दिल की धड़कन उतनी ही बेकाबू थी।
अर्जुन ने मेरी आँखों में देखा और धीरे से कहा, “राधिका जी, मैं आपका दोस्त हूँ। अगर कभी आपको मेरी ज़रूरत पड़े, मैं हूँ।” उसकी बातों ने मेरे मन को और उलझा दिया। मैंने सिर्फ़ मुस्कुराकर सिर हिलाया और वहाँ से चली गई।
स्कूल के बाद मैं घर लौटी, लेकिन मेरा मन बेचैन था। मैंने सोचा कि शायद मुझे रघुवीर से मिलना बंद कर देना चाहिए। लेकिन तभी मेरा फोन बजा। रघुवीर का मैसेज था: “राधिका, आज रात हवेली। मैं तुम्हें लेने आऊँगा।” मेरे मन ने विरोध किया, लेकिन मेरे शरीर ने उस मैसेज को पढ़ते ही सिहरन महसूस की। मैंने जवाब दिया, “ठीक है।”
रघुवीर की जलन
शाम को रघुवीर मेरे घर आया। सासु माँ से कुछ औपचारिक बातें करने के बाद उसने कहा, “राधिका, गाँव में एक मीटिंग है। तुम्हें भी चलना चाहिए। स्कूल के लिए कुछ बातें तय करनी हैं।” सासु माँ ने हामी भर दी, और मैं रघुवीर की जीप में बैठ गई।
रास्ते में रघुवीर ने मेरी ओर देखा और कहा, “राधिका, मैंने सुना है तुम उस नए टीचर के साथ काफ़ी वक्त बिता रही हो। क्या चल रहा है?” उनकी आवाज़ में एक अजीब सी जलन थी। मैं चौंक गई। “रघुवीर जी, अर्जुन सिर्फ़ मेरा सहकर्मी है। हम बस स्कूल की बातें करते हैं।”
वो हँसे, लेकिन उनकी हँसी में कड़वाहट थी। “राधिका, मुझे बेवकूफ़ मत समझो। मैं तुम्हारी आँखों में वो चमक देख सकता हूँ जो पहले सिर्फ़ मेरे लिए थी।” उनकी बात ने मुझे असहज कर दिया, लेकिन साथ ही मेरे अंदर एक अजीब सा गुस्सा भी जागा। “रघुवीर जी, आप मुझ पर हक नहीं जता सकते। मैं आपकी ना पत्नी हूँ, ना प्रेमिका।” मेरी आवाज़ में तल्खी थी।
रघुवीर ने जीप रोक दी। उनकी आँखों में एक खतरनाक चमक थी। “राधिका, तुम मेरी हो। और मैं अपनी चीज़ किसी के साथ बाँटना पसंद नहीं करता।” उनकी बात ने मुझे डरा दिया, लेकिन मेरे अंदर की औरत ने बगावत कर दी। “मैं किसी की जागीर नहीं हूँ, रघुवीर।”
वो चुप रहे, और फिर जीप स्टार्ट करके हवेली की ओर चल पड़े।
हवेली में तूफान
हवेली पहुँचते ही रघुवीर ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे दीवार से सटा लिया। उनकी साँसें तेज़ थीं, और उनकी आँखों में एक जुनून था जो मुझे डराने के साथ-साथ आकर्षित भी कर रहा था। “राधिका, तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती। तुम्हारी ये आग मेरे लिए जली है, और मैं इसे बुझने नहीं दूँगा।”
मैंने विरोध करने की कोशिश की, “रघुवीर, ये गलत है। हमें ये सब बंद कर देना चाहिए।” लेकिन मेरी आवाज़ में वो दम नहीं था। उनकी उंगलियाँ मेरी साड़ी के पल्लू को खींच रही थीं, और मेरे शरीर ने फिर से उस आग में समर्पण कर दिया।
वो मुझे बेडरूम में ले गए। इस बार उनकी हर हरकत में एक अजीब सी तीव्रता थी। उन्होंने मेरी साड़ी उतारी और मेरे शरीर को इस तरह चूमा जैसे वो हर इंच पर अपना हक जता रहे हों। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, लेकिन मेरे मन में एक अजीब सा डर भी था। क्या मैं रघुवीर के इस जुनून में फँस चुकी थी?
उनका कठोर अंग मेरे नाज़ुक हिस्से को छू रहा था। उन्होंने बिना रुके मुझे अपने में समेट लिया। इस बार हमारी मुलाकात में मज़ा कम और एक अजीब सा तनाव ज़्यादा था। जब सब खत्म हुआ, रघुवीर मेरे बगल में लेट गए और बोले, “राधिका, तुम चाहे जितना भाग लो, तुम मेरे पास ही लौटोगी।”
मैं चुप रही। मेरे मन में सिर्फ़ एक सवाल था—क्या मैं सचमुच उनकी हो चुकी थी?
अर्जुन का क़दम
अगले दिन स्कूल में अर्जुन ने मुझे फिर से रोका। “राधिका जी, मैं आपसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहता हूँ।” उसकी आवाज़ में एक गंभीरता थी। हम स्कूल के पीछे गार्डन में गए।
वहाँ अर्जुन ने मेरी आँखों में देखकर कहा, “राधिका जी, मैं जानता हूँ कि आप ठाकुर साहब के साथ कुछ ऐसी स्थिति में हैं जो आपको परेशान कर रही है। मैंने गाँव में कुछ बातें सुनी हैं। अगर आप चाहें, तो मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।”
मैं स्तब्ध रह गई। “अर्जुन, तुम्हें क्या पता है?” मैंने डरते हुए पूछा।
उसने गहरी साँस ली और कहा, “राधिका जी, मैंने देखा है कि ठाकुर साहroring आपके साथ ज़्यादा समय बिताते हैं। गाँव में कुछ लोग बातें कर रहे हैं। मुझे नहीं पता सच क्या है, लेकिन मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ। अगर आप चाहें, तो मैं आपको इस गाँव से दूर ले जा सकता हूँ।”
उसकी बात ने मेरे दिल को छू लिया, लेकिन साथ ही मुझे गुस्सा भी आया। “अर्जुन, तुम्हें क्या लगता है, मैं कोई कमज़ोर औरत हूँ जो किसी की मदद के बिना नहीं जी सकती? मैं अपनी ज़िंदगी खुद संभाल सकती हूँ।”
अर्जुन ने माफी माँगी, लेकिन उसकी आँखों में दर्द साफ़ दिख रहा था। “राधिका जी, मैं बस आपका भला चाहता हूँ।” वो चुपचाप चला गया।
मन का फैसला
उस रात मैंने बहुत सोचा। रघुवीर का जुनून मुझे एक खतरनाक रास्ते पर ले जा रहा था। उनकी बातें, उनका हक जताना—ये सब मुझे अब डराने लगा था। दूसरी ओर, अर्जुन की सादगी और उसका मेरे लिए सम्मान मुझे एक नया रास्ता दिखा रहा था। लेकिन विशाल? वो मेरे पति थे, और उनकी गैरमौजूदगी ने ही मुझे इस भँवर में धकेला था।
मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब न शर्म थी, न डर, न आत्मविश्वास। वहाँ सिर्फ़ एक औरत थी, जो अपनी चाहतों और गलतियों के बीच फँसी थी। मैंने फैसला किया कि मुझे इस आग से निकलना होगा, लेकिन कैसे?
अगली सुबह, मैंने रघुवीर को मैसेज किया: “हमें मिलना बंद करना होगा। ये सही नहीं है।” जवाब में सिर्फ़ इतना आया: “राधिका, तुम मेरे बिना नहीं रह सकती। मैं तुम्हें समय देता हूँ।”
मेरे मन में एक अजीब सा डर और आज़ादी का एहसास एक साथ उमड़ा। क्या मैं सचमुच रघुवीर से दूर रह पाऊँगी? और अर्जुन—क्या वो मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त था, या कुछ और? ये सुलगती रातें अब मुझे कहाँ ले जाएँगी?
मैं राधिका हूँ - भाग 5
रघुवीर को भेजा मेरा मैसेज—“हमें मिलना बंद करना होगा। ये सही नहीं है।”—मेरे मन में एक अजीब सा बोझ हल्का कर गया था। लेकिन उनके जवाब—“राधिका, तुम मेरे बिना नहीं रह सकती। मैं तुम्हें समय देता हूँ।”—ने मेरे डर को और गहरा कर दिया। उनकी आवाज़, उनकी वो जुनूनी नज़रें, और उनका हक जताने वाला अंदाज़ मेरे मन में बार-बार गूँज रहा था। मैं जानती थी कि रघुवीर इतनी आसानी से मुझे जाने नहीं देंगे।
दूसरी ओर, अर्जुन की बातें मेरे दिल को सुकून दे रही थीं। उसकी सादगी, उसका मेरे लिए सम्मान, और उसकी चिंता—ये सब मुझे एक नई ताकत दे रहा था। लेकिन क्या मैं सचमुच इस आग से निकल पाऊँगी, या रघुवीर की वो जुनूनी चाहत मुझे फिर से अपनी ओर खींच लेगी?
गाँव में सनसनी
अगले दिन सुबह, जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो रही थी, सासु माँ ने मुझे रोककर कहा, “राधिका, गाँव में कुछ बातें हो रही हैं। लोग कह रहे हैं कि ठाकुर साहब तुम्हारे साथ ज़्यादा वक्त बिता रहे हैं। ये सब क्या है?” उनकी आवाज़ में चिंता थी, लेकिन उनकी आँखों में एक सख्ती भी थी।
मेरा दिल धक-धक करने लगा। मैंने हँसने की कोशिश की और कहा, “माँ जी, लोग तो कुछ न कुछ कहते रहते हैं। ठाकुर साहब स्कूल के काम से मिलते हैं। इसमें गलत क्या है?” लेकिन मेरी आवाज़ में वो आत्मविश्वास नहीं था। सासु माँ ने कुछ देर मुझे देखा और फिर बोलीं, “बेटी, तुम नई बहू हो। तुम्हारा हर कदम गाँव की नज़रों में है। सावधान रहना।”
उनकी बातें मेरे सीने में चुभ गईं। मैं स्कूल के लिए निकली, लेकिन मेरा मन भारी था। रास्ते में कुछ औरतें मुझे देखकर फुसफुसाने लगीं। उनकी नज़रें मेरे शरीर को जैसे भेद रही थीं। मुझे एहस–सासु माँ की चेतावनी और गाँव की अफवाहें मेरे ऊपर एक अनदेखा बोझ बन चुकी थीं।
स्कूल में अर्जुन का साथ
स्कूल में अर्जुन मेरे पास आया। उसने मेरे चेहरे की उदासी देखी और धीरे से पूछा, “राधिका जी, आप ठीक तो हैं? आप आज बहुत चुप हैं।” मैंने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में वही सच्चाई थी, जो मुझे हर बार सुकून देती थी। लेकिन मैं उससे सच नहीं कह सकती थी।
“बस, थोड़ा सिरदर्द है,” मैंने झूठ बोला। अर्जुन ने मेरी बात पर यकीन नहीं किया, लेकिन उसने ज़्यादा दबाव नहीं डाला। “राधिका जी, अगर आप चाहें तो आज स्कूल के बाद हम कहीं बाहर घूमने जा सकते हैं। थोड़ा मन हल्का हो जाएगा।” उसकी बात में एक मासूमियत थी, जो मेरे मन को छू गई।
मैंने हामी भर दी। शायद अर्जुन की संगत मुझे उस तनाव से बाहर निकाल सकती थी।
स्कूल के बाद, अर्जुन मुझे अपनी बाइक पर पास के एक तालाब के किनारे ले गया। वहाँ चारों तरफ हरियाली थी, और पानी की सतह पर सूरज की किरणें चमक रही थीं। हम एक पेड़ के नीचे बैठे। अर्जुन ने अपनी पानी की बोतल मेरी ओर बढ़ाई और कहा, “राधिका जी, आप कुछ छुपा रही हैं। मैं आपका दोस्त हूँ। मुझे बताइए, क्या परेशानी है?”
उसकी बात ने मेरे दिल को हिला दिया। मेरे आँसू छलक आए। मैंने नज़रें फेर लीं और कहा, “अर्जुन, कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिन्हें बोलना आसान नहीं होता। मैं बस... उलझन में हूँ।”
अर्जुन ने धीरे से मेरा हाथ पकड़ा। उसकी उंगलियों की गर्मी ने मेरे शरीर में एक सिहरन पैदा की। “राधिका जी, मैं आपकी तकलीफ़ नहीं बढ़ाना चाहता। लेकिन मैंने देखा है कि ठाकुर साहब आपके आसपास ज़्यादा रहते हैं। अगर वो आपको परेशान कर रहे हैं, तो मैं उनकी शिकायत कर सकता हूँ।”
मैं चौंक गई। “नहीं, अर्जुन! ऐसा कुछ नहीं करो। इससे बात और बिगड़ जाएगी।” मेरी आवाज़ में डर साफ़ झलक रहा था। अर्जुन ने मेरी आँखों में देखा और कहा, “राधिका जी, मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ। लेकिन मैं आपको इस तरह डरते हुए नहीं देख सकता।”
उसकी बातों ने मेरे मन में एक अजीब सा सुकून और डर दोनों पैदा किया। मैंने उसका हाथ छुड़ाया और कहा, “मुझे घर जाना होगा।”
रघुवीर का दबाव
उसी रात, जब मैं घर पर थी, मेरा फोन बजा। रघुवीर का नंबर था। मैंने फोन उठाने से पहले कई बार सोचा, लेकिन आखिरकार उठा लिया।
“राधिका, तुमने सोच लिया?” उनकी आवाज़ में वही रौब था, लेकिन इस बार एक अजीब सी ठंडक भी।
“रघुवीर जी, मैंने कह दिया था। हमें ये सब बंद करना होगा। ये गलत है। मेरी शादी है, मेरा परिवार है।” मेरी आवाज़ काँप रही थी।
वो हँसे, और उनकी हँसी में एक खतरनाक गूँज थी। “राधिका, तुम भूल रही हो कि मैं इस गाँव का ठाकुर हूँ। तुम्हारा परिवार, तुम्हारा स्कूल, सब मेरे इशारे पर चलता है। अगर मैं चाहूँ, तो तुम्हारी ज़िंदगी को और मुश्किल कर सकता हूँ।”
मेरा दिल डूबने लगा। “आप ऐसा नहीं कर सकते,” मैंने धीरे से कहा।
“कर सकता हूँ, और करूँगा। लेकिन मैं तुम्हें मजबूर नहीं करना चाहता, राधिका। मैं तुम्हें चाहता हूँ, तुम्हारी वो आग, तुम्हारी वो सिसकारियाँ। कल रात हवेली आओ। अगर नहीं आई, तो गाँव में तुम्हारी और मेरी बातें हर गली में गूँजेंगी।” फोन कट गया।
मैं सन्न रह गई। मेरे हाथ काँप रहे थे। रघुवीर की धमकी ने मेरे सारे सपनों को जैसे कुचल दिया। मैं रात भर सो नहीं पाई। मेरे सामने दो रास्ते थे—रघुवीर की बात मानकर उसकी चाहत का हिस्सा बन जाऊँ, या सब कुछ दाँव पर लगाकर उसका सामना करूँ।
अर्जुन का राज़
अगले दिन स्कूल में मैं पूरी तरह खोई हुई थी। बच्चों की हँसी, उनकी मासूमियत—कुछ भी मुझे सुकून नहीं दे रहा था। अर्जुन ने मेरी हालत देखी और दोपहर में मुझे एक तरफ ले गया।
“राधिका जी, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ,” उसने गंभीर आवाज़ में कहा। “मैंने ठाकुर साहब के बारे में कुछ पता किया है। वो पहले भी गाँव की औरतों के साथ ऐसा कर चुके हैं। उनकी पत्नी को सब पता है, लेकिन वो चुप रहती हैं क्योंकि ठाकुर का रौब गाँव पर है।”
मैं स्तब्ध रह गई। “अर्जुन, तुमने ये सब कैसे पता किया?” मैंने डरते हुए पूछा।
उसने गहरी साँस ली और कहा, “मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया। वो ठाकुर के घर काम करता है। राधिका जी, आपको इस गाँव से चले जाना चाहिए। ठाकुर आपको चैन से नहीं जीने देंगे।”
मैंने उसकी आँखों में देखा। उसकी चिंता सच्ची थी, लेकिन उसकी बात ने मेरे मन में एक नया डर पैदा कर दिया। “अर्जुन, मैं कहाँ जाऊँ? मेरा पति, मेरा परिवार—सब यहीं है। मैं भागकर क्या हासिल करूँगी?”
अर्जुन ने मेरे कंधों पर हाथ रखा और कहा, “राधिका जी, मैं आपके साथ हूँ। अगर आप चाहें, तो मैं आपके लिए एक नई शुरुआत का इंतज़ाम कर सकता हूँ। मेरे कुछ दोस्त शहर में हैं, वो आपकी मदद करेंगे।”
उसकी बात ने मेरे दिल को छू लिया, लेकिन साथ ही मुझे गुस्सा भी आया। “अर्जुन, तुम मुझे क्या समझते हो? मैं कोई कमज़ोर औरत नहीं हूँ जो हर बार किसी के सहारे की ज़रूरत पड़े। मैं अपनी लड़ाई खुद लड़ूँगी।”
अर्जुन ने चुपचाप सिर झुका लिया। “मैं बस आपका भला चाहता हूँ, राधिका जी।” वो चला गया, और मैं अकेली खड़ी रह गई।
रात का फैसला
उस रात मैंने बहुत सोचा। रघुवीर की धमकी, अर्जुन की चिंता, सासु माँ की चेतावनी, और गाँव की फुसफुसाहट—सब कुछ मेरे सिर पर बोझ बनकर लद गया था। मैंने शीशे में खुद को देखा। मेरी आँखों में अब न आँसू थे, न डर। वहाँ एक औरत थी, जो अपनी गलतियों से सीख चुकी थी और अब अपनी ज़िंदगी को अपने हाथों में लेना चाहती थी।
मैंने रघुवीर को मैसेज किया: “मैं आज रात हवेली आऊँगी। लेकिन ये हमारी आखिरी मुलाकात होगी।” जवाब में सिर्फ़ इतना आया: “आओ, राधिका। मैं इंतज़ार कर रहा हूँ।”
मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था। मैं जानती थी कि ये रात मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ होगी। क्या मैं रघुवीर के सामने झुक जाऊँगी, या उसकी धमकियों को चकनाचूर कर दूँगी? और अर्जुन—क्या वो मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त था, या मेरे दिल में उसके लिए कुछ और जाग रहा था? ये सुलगती रातें अब मेरे भाग्य का फैसला करने वाली थीं।