बेडरूम में लेटे हुए मेरी आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। गगन मेरे बगल में गहरी नींद में सो रहा था, और उसकी साँसों की नियमित लय मेरे मन के तूफान के साथ एक अजीब सा तालमेल बिठा रही थी। मैंने अपने आपको समझाने की कोशिश की कि जो हुआ, उसे भूल जाऊँ। लेकिन चाचा की हर छुअन, उसकी हर हरकत मेरे शरीर में इस कदर समा गई थी कि उसे भुलाना नामुमकिन सा लग रहा था। मैंने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया और धीरे से रोने लगी। मेरे मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा था—क्या मैं सचमुच इतनी कमजोर हूँ कि अपने शरीर की चाहतों को काबू नहीं कर सकती?
अगली सुबह गगन जल्दी उठ गया। वह ऑफिस के लिए तैयार हो रहा था, और उसकी नजरें मुझ पर पड़ीं। "निधि, तुम ठीक तो हो न? तुम्हारी आँखें लाल क्यों हैं?" उसने चिंता से पूछा।
"कुछ नहीं, बस नींद पूरी नहीं हुई," मैंने झूठ बोलते हुए कहा और उसकी नजरों से बचने की कोशिश की।
"अच्छा, ध्यान रखना। मैं शाम को जल्दी आ जाऊँगा," उसने मेरे माथे को चूमते हुए कहा और निकल गया। उसकी गर्मजोशी और प्यार मेरे मन में और ग्लानि भर गया। वह मुझ पर इतना भरोसा करता था, और मैं हर बार उसे धोखा दे रही थी।
किचन में चाय बनाते वक्त मेरे कानों में चाचा की आवाज़ पड़ी। "निधि, मेरे लिए भी एक कप बना दो," उसने ड्राइंग रूम से कहा। उसकी आवाज़ सुनते ही मेरा शरीर सिहर उठा। मैंने उसे जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपने काम में लगी रही। लेकिन कुछ ही पलों बाद वह किचन में आ गया। उसकी नजरें फिर से मेरे शरीर पर टिक गईं, और उसकी वही चालाक मुस्कान मेरे सामने थी।
"क्या बात है, निधि? कल रात के बाद से मुझसे बात क्यों नहीं कर रही?" उसने मेरे पास आते हुए कहा।
"आप यहाँ से चले जाइए। मैं आपसे बात नहीं करना चाहती," मैंने ठंडे लहजे में कहा और उसकी ओर पीठ कर ली।
"अरे, इतना गुस्सा? मैं तो बस तुम्हें खुश करना चाहता हूँ," उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। उसका स्पर्श मेरे शरीर में फिर से बिजली सी दौड़ा गया। मैंने उसका हाथ झटक दिया और उसकी ओर गुस्से से देखा।
"आपको शर्म नहीं आती? मैं गगन की बीवी हूँ। आप मेरे चाचा हैं। ये सब गलत है," मैंने तेज आवाज़ में कहा।
"गलत-सही तो मन का खेल है, निधि। तेरा शरीर तो मेरे लिए तरस रहा है। कल रात तूने जो सिसकियाँ लीं, वो झूठ नहीं बोलतीं," उसने मेरे और करीब आते हुए कहा। उसकी बातें मेरे मन में एक तीर की तरह चुभ रही थीं। मैं जानती थी कि वह गलत नहीं कह रहा था। मेरा शरीर उसकी हर छुअन के लिए तड़प रहा था, लेकिन मेरा मन उससे नफरत कर रहा था।
"बाहर निकल जाइए!" मैंने चिल्लाते हुए कहा और उसे धक्का देने की कोशिश की। लेकिन उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और मुझे अपनी ओर खींच लिया। उसकी बाहों की मजबूती ने मुझे फिर से कमजोर कर दिया। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और मेरे शरीर में फिर से वही गर्मी फैलने लगी।
"निधि, तू कितना भी नाटक कर ले, लेकिन तुझे मेरी जरूरत है। और मुझे तेरी," उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छू लिया। उसका चुंबन गहरा और भूखा था। उसकी जीभ मेरे होंठों को चाट रही थी, और मेरे शरीर में आग सी भड़क रही थी। मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन मेरे हाथ उसकी छाती पर बेकार से पड़ रहे थे।
"नहीं... ये गलत है..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, लेकिन मेरे शब्द हवा में खो गए। उसने मेरी सलवार के नाड़े पर हाथ रखा और उसे खोल दिया। मेरी सलवार फर्श पर गिर गई, और उसने मुझे किचन की स्लैब के खिलाफ दबा दिया। उसकी उंगलियाँ मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी योनि पर फिरने लगीं, और मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।
"देख, तू कितनी गीली हो गई है," उसने मेरी पैंटी में हाथ डालते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ मेरी योनि के होंठों पर फिर रही थीं, और मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगीं। "आह्ह..." मैंने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया ताकि मेरी आवाज़ बाहर न जाए। उसने मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया और मेरी योनि पर अपनी उंगलियाँ फिरानी शुरू की। उसकी दो उंगलियाँ मेरी योनि में धीरे-धीरे अंदर गईं, और मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ गया।
"निधि, तू कितनी गर्म है," उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने मेरी कमीज़ को ऊपर उठा दिया और मेरी ब्रा को खोल दिया। मेरे उभार उसके सामने नंगे थे। उसने मेरे दायें उभार को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर फिर रही थी, और मेरे शरीर में आग सी भड़क रही थी। उसने मेरे बायें उभार को अपने हाथ से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल को रगड़ रही थीं।
"आह्ह... चाचा... बस..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, लेकिन मेरे शरीर ने पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिया था। उसने मेरी योनि में अपनी उंगलियाँ तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कीं, और मेरे मुँह से जोरदार सिसकियाँ निकलने लगीं। उसने मेरे क्लिटोरिस को अपनी उंगलियों से रगड़ा, और मेरे शरीर में एक और तूफान सा उठ गया। "आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ तेज हो गईं, और मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया। मेरे पैर काँप रहे थे, और मैंने स्लैब का सहारा लिया।
चाचा ने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकालीं और मुझे अपनी बाहों में उठा लिया। वह मुझे ड्राइंग रूम की ओर ले गया और सोफे पर लिटा दिया। उसने मेरे ऊपर झुकते हुए कहा, "अभी तो बहुत कुछ बाकी है, निधि।" उसने अपनी पैंट उतार दी, और उसका लिंग मेरे सामने था। उसका लिंग पहले से ही तनाव में था, और उसका सुपाड़ा चमक रहा था। उसने मेरे दोनों पैर फैलाए और मेरी योनि पर अपना मुँह रख दिया। जैसे ही उसकी जीभ ने मेरी योनि को छुआ, मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई।
"आह्ह... नहीं..." मैंने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया। उसकी जीभ मेरी योनि के हर हिस्से को चाट रही थी। वह मेरे क्लिटोरिस पर बार-बार अपनी जीभ घुमा रहा था, और मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी। उसने मेरी योनि के होंठों को अपने होंठों से चूसा, और मेरे मुँह से जोरदार सिसकियाँ निकलने लगीं। "श्ह्ह... धीरे, निधि," उसने हँसते हुए कहा, लेकिन उसकी जीभ रुकी नहीं। उसने मेरी योनि में अपनी जीभ डाल दी और उसे अंदर-बाहर करने लगा। मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ रहा था।
"आह्ह... बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। उसने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठों से चूसा, और मेरी योनि ने फिर से रस छोड़ दिया। मेरे पैर काँप रहे थे, और मेरा शरीर पसीने से तर था। उसने मेरी योनि से अपना मुँह हटाया और मेरे ऊपर लेट गया। उसने अपने लिंग को मेरी योनि के पास रखा और धीरे से अंदर धकेलना शुरू किया। उसका लिंग मेरी योनि को पूरी तरह भर रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे मुँह से सिसकियाँ निकल रही थीं।
"निधि... तू कितनी टाइट है..." उसने हाँफते हुए कहा। उसने मेरे दोनों उभारों को अपने हाथों से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल्स को चुटकी में लेकर रगड़ रही थीं। उसने अपनी गति बढ़ा दी, और अब उसके धक्के और तेज हो गए थे। उसका लिंग मेरी योनि में गहराई तक जा रहा था, और मेरे शरीर में एक और तूफान सा उठ रहा था।
"आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उसने मेरे दोनों पैर अपने कंधों पर रख लिए, जिससे उसका लिंग मेरी योनि में और गहराई तक जा रहा था। उसका हर धक्का मेरे शरीर को झकझोर रहा था, और मेरे मुँह से जोरदार सिसकियाँ निकल रही थीं। उसने मेरे दायें उभार को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर फिर रही थी, और मेरे शरीर में आग सी भड़क रही थी।
मैं अपने चरम की ओर बढ़ रही थी। उसने मेरी योनि में अपनी गति और तेज कर दी, और उसका लिंग मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रहा था। "आह्ह... चाचा... बस..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। मेरे शरीर में एक और तूफान उठा, और मैं फिर से झड़ गई। मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया, और मेरे पैर काँप रहे थे।
चाचा ने मुझे उल्टा कर दिया। अब मैं सोफे पर घुटनों के बल थी, और मेरे नितंब उसके सामने थे। उसने मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से फैलाया और मेरे पीछले छिद्र पर अपनी उंगली फिराई। "नहीं... वहाँ नहीं..." मैंने डरते हुए कहा, लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी। उसने अपने लिंग का सुपाड़ा मेरे पीछले छिद्र पर रखा और धीरे से अंदर धकेलना शुरू किया। पहले तो मुझे असहनीय दर्द हुआ, और मेरे मुँह से एक चीख निकल गई।
"आह्ह... नहीं... दर्द हो रहा है..." मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, लेकिन उसने मेरे कंधों को पकड़ रखा था। उसने धीरे-धीरे अपने लिंग को और अंदर धकेला। दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा, और मेरे शरीर में एक अजीब सा आनंद मिलने लगा। "देख, अब मजा आ रहा है न?" उसने मेरे नितंबों को मसलते हुए कहा। उसने अपने लिंग को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसका लिंग मेरे पीछले छिद्र को पूरी तरह भर रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी।
"आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ फिर से शुरू हो गईं। उसने मेरे नितंबों पर जोर से चाँटा मारा, और मेरे मुँह से एक चीख निकल गई। उसने मेरे पीछले छिद्र में अपनी गति बढ़ा दी, और कमरे में छप-छप की आवाज़ गूँज रही थी। मेरे शरीर में एक और चरम की लहर उठी, और मैं फिर से झड़ गई। मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा शरीर पसीने से तर था।
चाचा ने मेरे पीछले छिद्र से अपने लिंग को निकाला और मुझे फिर से सीधा कर दिया। उसने मेरे दोनों पैर फैलाए और अपने लिंग को मेरी योनि में डाल दिया। "आह्ह..." मेरे मुँह से फिर से सिसकी निकली। उसने मेरे दोनों उभारों को अपने हाथों से मसलना शुरू किया, और उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर फिर रही थी। उसने अपनी गति तेज कर दी, और उसका लिंग मेरी योनि को फिर से भर रहा था।
"निधि... मैं..." उसने हाँफते हुए कहा, और कुछ ही पलों में वह अपने चरम पर पहुँच गया। उसने अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाला और मेरे पेट और उभारों पर अपना वीर्य गिरा दिया। उसका गर्म वीर्य मेरे शरीर पर फैल गया, और मैं शर्म और ग्लानि से भरी हुई वहाँ पड़ी रही।
चाचा मेरे बगल में लेट गया। "मजा आ गया, निधि। तू सच में कमाल की है," उसने हँसते हुए कहा। मैं चुपचाप वहाँ पड़ी रही। मेरे मन में फिर से वही तूफान चल रहा था। मैंने फिर से गगन को धोखा दिया था। मैंने अपने आपको और कमजोर साबित कर दिया था।
"अब मुझे जाने दो..." मैंने धीरे से कहा और उठकर अपने कपड़े पहनने लगी। चाचा ने मुझे नहीं रोका। मैंने जल्दी से अपनी कमीज़, ब्रा, और सलवार पहनी और बिना उसकी ओर देखे अपने बेडरूम की ओर चल दी। बेडरूम में गगन अभी तक नहीं आया था। मैं बिस्तर पर लेट गई और अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश करने लगी। लेकिन मेरे मन का बोझ कम होने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने ठान लिया कि अब मैं चाचा को अपने जीवन से दूर रखूँगी। लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊँगी? ये सवाल मेरे मन में बार-बार गूँज रहा था।