बिन बुलाया मेहमान
 
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बिन बुलाया मेहमान

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गगन से मेरी शादी एक साल पहले हुई थी। शादी के बाद कुछ दिन हम गगन के पेरेंट्स के साथ ही रहे भोपाल में। मगर 2 महीने बाद ही हमें दिल्ली आना पड़ा क्योंकि गगन का ट्रांसफर दिल्ली हो गया था। हमने मुखर्जी नगर में एक घर रेंट पर ले लिया और तब से यहीं पर हैं। मैं भी किसी जॉब की तलाश में हूँ पर कोई आस पास के एरिया में सही जॉब मिल नहीं रही और दिल्ली जैसे शहर में घर से ज्यादा दूर जॉब मैं करना नहीं चाहती।

मैंने गगन का नंबर डायल किया। फिर से वो आउट ऑफ कवरेज एरिया आया। पता नहीं कहाँ घूम रहा है गगन। मैं इरिटेट हो कर अपने बेडरूम में आ गई। मैं बहुत हताश थी। कोई जब भी घूमने का प्रोग्राम बनाओ कुछ अजीब ही होता है मेरे साथ। घर की चार दीवारी ही मेरी दुनिया बन गई है। मैं इन खयालों में खोई थी कि अचानक डोर बेल बजी। मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। मगर मैंने गगन को गुस्सा दिखाने के लिए अपने चेहरे पर आई खुशी छुपा ली। मैंने भाग कर दरवाजा खोला।

गगन सामने खड़ा मुस्कुरा राह था।

"थोड़ा और लेट आना चाहिए था तुम्हें ताकि मूवी जाने का स्कोप ही खत्म हो जाये।"

गगन अंदर आया और दरवाजा बंद करके मुझे बाहों में भर लिया। उसके हाथ मेरे नितंबों पर थे।

"क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे।"

"बहुत प्यारी लग रही हो इस साड़ी में। क्या इरादा है आज।" गगन ने मेरे नितंबों को मसलते हुए कहा।

"बातें मत बनाओ मुझे आज हर हाल में मूवी देखनी है।" मैंने गुस्से में कहा।

"मूवी भी देख लेंगे पहले अपनी खूबसूरत बीवी को तो देख लें।"

"हम लेट हो रहे हैं गगन..."

"ओह हाँ..." गगन ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा। "मैं 2 मिनट में फ्रेश हो कर आता हूँ। बस 2 मिनट।"

"अगर मेरी मूवी छूट गई ना तो देखना। मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

गगन वॉशरूम में घुस गया और 2 मिनट की बजाये पूरे 5 मिनट में बाहर निकला।

"सॉरी हनी...चलो चलते हैं।"

हमने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया ही था कि डोर बेल बज उठी।

"कौन हो सकता है इस वक्त?" मैंने पूछा।

"आओ देखते हैं" गगन ने कहा।

गगन ने दरवाजा खोला।

हमारे सामने एक कोई 40 साल की उमर का हट्टा कट्टा व्यक्ति खड़ा था। उसके कपड़ों से लगता था कि वो देहाती है। गले में एक गमछा डाल रखा था उसने और सर पर पगड़ी थी उसके। बड़ी बड़ी मूँछे थी उसकी। हम दोनों की तरफ वो कुछ ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे कि बरसों की जान पहचान हो। मुस्कुराते वक्त उसके पीले दांत साफ दिखायी दे रहे थे।

"जी कहिए...क्या काम है।"

"अरे गग्गु पहचाना नहीं का अपने चाचा को।"

"जी नहीं कौन है आप और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं।"

"अरे बेटा तुम्हारे पापा तुम्हे कई बार हमारे गाँव लेकर आए थे। तुम बहुत छोटे थे। भूल गए क्या वो आम की बगिया में आम तोड़ना चुप चुप कर। अरे हम तुम्हारे राघव चाचा हैं।"

गगन को कुछ ध्यान आया और उसने तुरंत चाचा जी के पाँव छू लिए। मेरे तो सीने पर जैसे साँप ही लोट गया। मुझे मूवी का प्रोग्राम बिगड़ता नजर आ रहा था।

"चाचा जी ये मेरी बीवी है निधि....निधि पाँव छूवो चाचा जी के।"

मेरा उनके पाँव छूने का बिलकुल मन नहीं था पर गगन के कहने पर मुझे पाँव छूने पड़े।

"आओ च्चाचा जी अंदर आओ" देहाती मेरी तरफ हँसता हुआ अंदर घुस गया। उसकी हंसी कुछ अजीब सी थी।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। मैं गुस्से से तिलमिला रही थी। मैं बिना एक शब्द कहे अपने बेडरूम में आ गई। 2 मिनट बाद गगन कमरे में आया और बोला,"सॉरी डार्लिंग आज का प्रोग्राम कैंसिल करना होगा। अब हम घर आये मेहमान को अकेला छोड़ कर तो नहीं जा सकते ना"

"मुझे पता था पहले से कि आज भी कोई ना कोई मुसीबत आ ही जायेगी। वैसे है कौन ये देहाती। ना हमारी शादी में देखा इसे ना ही कभी घर चर्चा सुनी इसके बारे में। ये तुम्हारा चाचा कैसे बन गया अचानक।"

"अरे सगा चाचा नहीं है। डैडी इसे भाई की तरह ही मानते थे। कई बार गया हूँ इनके गाँव। इन्हें चाचा ही कहता था बचपन में।"

"मतलब बहुत दूर की रिश्तेदारी है...वो भी नाम मात्र की। ये यहाँ करने क्या आया है।"

"उसके बाल झड़ रहे हैं। उसी के इलाज के लिए दिल्ली आया है। किसी ने इन्हें हमारा पता दे दिया इसलिए यहाँ चला आये"

"इसी वक्त आना था इनको...सारा मूड खराब कर दिया मेरा। कब जायेगा ये वापिस।"

"ये पूछना अच्छा नहीं लगेगा निधि....जस्ट रिलैक्स। घर आये मेहमान की इज्जत करनी चाहिए। मैं उनके पास बैठता हूँ तुम चाय पानी का बंदोबस्त करो।"

"मैं कुछ नहीं करूँगी"

"देख लो तुम्हारी अच्छी बहु की इमेज जो तुमने घर पर बनायी थी वो खराब हो जायेगी। इनका डैडी से मिलने जाने का भी प्लान है।" गगन ने मुझे बाहों में भर कर कहा।

"ठीक है ठीक है जाओ तुम मैं चाय लाती हूँ।" मैंने ख़ुद को गगन की बाहों से आज़ाद करते हुए कहा।

मैं चाय और बिस्किट ले कर गई तो वो देहाती तुरंत मुझे घूरते हुए बोला,

"बड़ी सुंदर बहु मिली है तुम्हे बेटा। भगवान तुम दोनों की जोड़ी सलामत रखे।"

"शुक्रिया चाचा जी। जो कोई भी निधि को देखता है यही कहता है।" गगन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"आओ बेटा तुम भी बैठो....तुम्हारी शादी में नहीं आ पाया था। उस वक्त एक मुसीबत में फँसा हुआ था वरना मैं जरूर आता।" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"मुझे काम है आप दोनों बाते कीजिए।" मैं कह कर वहाँ से चल दी।

"बड़ी शर्मीली दुल्हनिया है तुम्हारी। अच्छी बात है। बेटा बहुत थक गया हूँ। नहा धो कर आराम करना चाहता हूँ।"

"बिलकुल चाचा जी। आप नहा लीजिए। तब तक खाना तैयार हो जायेगा। आप खा कर आराम कीजिएगा।"

सोचा था कि आज बाहर खायेंगे मगर इस बिन बुलाए मेहमान के कारण मुझे रसोई में लगना पड़ा।

जब मैं खाना सर्व कर रही थी डाइनिंग टेबल तो राघव चाचा मुझे घूर कर देख रहा था। उसकी नज़रे मुझे ठीक नहीं लग रही थी।

"अरे तुम भी आ जाओ ना।" गगन ने कहा। "हाँ बेटा तुम भी आ जाओ..." चाचा ने घिनौनी सी हंसी हँसते हुए कहा।

"नहीं आप लोग खाओ मैं बाद में खा लूँगी। अभी मुझे भूख नहीं है।" मैं कह कर किचन में आ गई।

मैंने चुपचाप किचन में ही खाना खा लिया और खाना खा कर नहाने चली गई।

बाथरूम में चाचा ने हर तरफ गीला कर रखा था।

"बदतमीज कहीं का। हर तरफ पानी बिखेर दिया। फर्श पर साबुन भी पड़ा हुआ है। कोई गिर गया तो।" मैं बड़बड़ाई।

नहा कर चुपचाप मैं बेडरूम में घुस गई। गगन ने चाचा के सोने का इंतजाम दूसरे कमरे में कर दिया था।

मैं गुस्से में थी और चुपचाप आकर बिस्तर पर लेट गई थी। मेरी कब आँख लग गई मुझे पता ही नहीं चला।

मेरी आँख तब खुली जब मुझे अपनी चूचियों पर कसाव महसूस हुआ। मैंने आँखे खोल कर देखी तो पाया कि गगन मेरे उभारों को मसल रहा है।

"छोड़ो मुझे नींद आ रही है।"

"आओ ना आज बहुत मूड है मेरा।"

"पर मेरा मूड नहीं है। तुम्हारे चाचा ने मेरा सारा मूड खराब कर दिया। इन्हें जल्दी यहाँ से दफा करो।"

"छोड़ो भी निधि ये सब। लाओ इन्हें चूमने दो।" गगन ने मेरे उभारों को मसलते हुए कहा।

मैंने कुछ नहीं कहा और अपनी आँखे बंद कर ली। गगन ने मेरे उभार बाहर निकाल लिए और उन्हें चूमने लगा। मैं खोती चली गई। उसने मुझे बहकते देख मेरा नाड़ा खोल कर मेरी टाँगे अपने कंधे पर रख ली और एक झटके में मुझ में समा गया। मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। मैं बहुत धीरे धीरे आवाज़ कर रही थी क्योंकि अब घर में हम अकेले नहीं थे। जब गगन ने स्पीड बहुत तेज़ बढ़ा दी तो मैं ख़ुद को रोक नहीं पाई और मैं जोर-जोर से चीखने लगी

"आह्ह्ह....गगन...यस....." गगन ने मेरे मुँह पर हाथ रख लिया और बोला।

"श्ह्ह क्या कर रही हो। चाचा जी को सब सुन रहा होगा।"

"सॉरी... सब तुम्हारी गलती है। मुझे पागल बना देते हो तुम।"

कुछ देर और गगन मेरे अंदर अपने लुंड को बहुत तेज़ी से रगड़ता रहा और फिर अचानक मेरे ऊपर निढाल हो गया। मेरा भी ऑर्गेज्म उसी वक्त हो गया। कुछ देर हम यूँ ही पड़े रहे। कब हमें नींद आ गई पता ही नहीं चला।

कोई 12 बजे मेरी आँख खुल गई। गगन मेरे बाजू में पड़ा खर्राटे भर रहा था। मुझे बहुत जोर का प्रेशर लगा हुआ था। मैंने कपड़े पहने बेडरूम से बाहर आ कर दबे पाँव टॉयलेट में घुस गई।

जब मैं बाहर निकली तो मेरे होश उड़ गए। टॉयलेट के दरवाजे पर चाचा खड़ा था।

"आप यहाँ??" मैंने गुस्से में कहा।

"माफ करना बेटी...मुझे लगा कि ग jobban है। इसलिए यहीं खड़ा हो गया।" चाचा ने कहा।

मैं नाक...मुँह सिकोड़ कर वहाँ से चल दी।

"आआह्ह्ह....खी..खी..खी" चाचा ने हँसते हुए कहा और टॉयलेट में घुस गया।

मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे टॉयलेट का बंद दरवाजा ही मिला।

"हाय भगवान। मतलब इसने सब सुन लिया। और बेशर्मी तो देखो...कैसे मजाक उड़ा रहा था। मुझे ये बात गगन को बतानी होगी।"

अगली सुबह मैं गगन से कोई बात नहीं कर पाई क्योंकि वो बहुत जल्दी में था ऑफिस जाने के लिए। जाते जाते गगन ने चाचा से पूछा, "चाचा जी आप तो हॉस्पिटल कल जायेंगे ना।"

"हाँ बेटा आज आराम ही करूँगा। कल जाऊँगा हॉस्पिटल।"

मैं अपने दांत भींच कर रह गई। हमारे घर में हमने एक काम वाली लगा रखी थी। वो रोज 10 बजे आकर 11 बजे तक सफाई करके चली जाती थी।

उसके जाने के बाद कोई 12 बजे जब मैं किचन में लंच की तैयारी में लग गई।

गगन तो टिफिन लेकर जाते थे सुबह। लंच पर वो घर नहीं आते थे। मुझे बस अपने और देहाती चाचा के लिए बनाना था। मैंने चाचा से उसकी पसंद पूछनी जरूरी नहीं समझी। मैंने सोचा बिन बुलाए मेहमान को जितना कम भाव दो उतना ही अच्छा होता है।

लंच बनाने के बाद में टॉयलेट में गई तो टॉयलेट सीट पर बैठते वक्त मेरा ध्यान टॉयलेट टैंक पर रखी एक डायरी पर गया। मैंने डायरी उठाई और सीट पर बैठ गई। डायरी खोलते ही जो मैंने पढ़ा मेरे होश उड़ गए।

पहले पेज पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था--- "कैसे, कब और कहाँ मैंने किसकी चूत मारी"

मैंने ये पढ़ते ही डायरी बंद कर दी। मैं सोच में पड़ गई कि ये किसकी डायरी है। लिखाई गगन की नहीं थी। तभी मेरा ध्यान चाचा पर गया। मैंने मन ही मन कहा, "कमीना कहीं का। देखने से ही लफंगा लगता है।"

पर मुझे ना जाने क्या हुआ मैंने डायरी का पन्ना पलटा और पढ़ना शुरू किया। मुझे क्यूरियॉसिटी हो रही थी उसकी करतूतों को जानने की।

डायरी से---------

मुझे आज भी याद है कैसे मैंने पहली बार चूत मारी थी। उस वक्त मैं कोई 19 साल का था। मुझे ही पता है कितना तड़पता था मैं अपने लुंड को किसी की चूत में डालने के लिए। बहुत कोशिश की मैंने यहाँ वहाँ मगर कोई फायदा नहीं हुआ। जब कोई बात बनती नहीं दिखी तो मेरा ध्यान मेरी भाभी पर गया। जब मेरा ध्यान भाभी पर गया तो मैंने उन्हें ध्यान से देखना शुरू किया। उनकी उमर उस वक्त कोई 30 या 31 की थी। मैंने कई बार उन्हें सोच सोच कर मुठ मारी।

भाभी बहुत लाड़ करती थी मेरा। कभी कभी लाड़ में मुझे गले भी लगा लेती थी। दोपहर को जब भाभी सो जाती थी तो मैं छुप छुप कर उसे देखता था।

भैया तो खेत में रहते थे सारा दिन। मेरे पास अच्छा मौका था। पर समझ नहीं आता था कि कैसे भाभी को पटाया जाये। मैंने एक प्लान बनाया। भाभी घर से बाहर गई हुई थी। उन्हें दुकान से कुछ सामान लाना था। जब मैंने उन्हें आते देखा तो मैं अपने कमरे में घुस गया और अपना लुंड बाहर निकाल कर उसे हिलाने लगा। साथ ही मुझे कुछ अश्लील बातें भी बोलनी थी। जब भाभी कमरे के पास से गुजरी तो मैंने बोलना शुरू किया।

"आह्ह्ह मेरा लुंड कब तक तरसेगा चूत के लिए। मैं कब तक यूँ ही हाथ से हिलाता रहूँगा। काश आज कोई चूत मिल जाये मुझे जिसमें मैं अपना ये लुंड घुसा सकूँ।"

भाभी ये सुनते ही मेरे कमरे के बाहर रुक गई। मैंने तुरंत अपना लुंड अंदर किया और दरवाजा खोल कर बाहर आ गया। मैंने नाटक करते हुए कहा, "ओह भाभी आप। आप कब आई।"

"किसने सिखाया तुम्हे ये सब?" भाभी ने पूछा।

"क्या मतलब मैं कुछ समझा नहीं।" मैंने कहा।

"मैंने सब सुन लिया है। किसने सिखाया तुम्हे ये सब।"

"भाभी माफ कर दो दुबारा ऐसा नहीं करूँगा। मेरी बहुत इच्छा हो रही थी इसलिए वो सब बोल रहा था।"

"अभी से इच्छा होने लगी तुम्हे?"

"भाभी भैया को मत बोलना नहीं तो वो मारेंगे।"

"किसने सिखाया तुम्हे ये सब।"

"पिछले हफ्ते दूसरे गाँव से एक मेहमान आया था मेरे दोस्त के घर। उसी ने बताया कि चूत में लुंड डालने से बहुत मजा आता है। पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं किसकी चूत में लुंड डालूँ।" मैंने हिम्मत करके बोल ही दिया क्योंकि मुझ पर हवस सवार थी। ये सुनते ही भाभी ने अपने मुँह पर हाँथ रख लिया।

"भाभी क्या आप अपनी चूत में डलवा सकती हैं मेरा। बस एक बार।"

"चुप रहो...ऐसी बातें नहीं करते।"

"कोई बात नहीं मैं कहीं और तलाश करता हूँ।" कह कर मैं बाहर आ गया।

दोपहर को भाभी अपने कमरे में सो रही थी तो मैं चुपचाप उनके कमरे में घुस गया और उनके पीछे लेट गया।

"राघव क्या कर रहे हो तुम यहाँ।"

"भाभी दे दो ना एक बार। मैं रोज आपको सोच सोच कर मुठ मारता हूँ।"

"तो मारते रहो ना। किसने रोका है।"

"नहीं अब मुझे असली में मजा लेना है। बस एक बार डलवा लो ना चूत में।"

"तुम्हारे भैया को पता चला ना तो मार डालेंगे मुझे।"

मुझे बात कुछ बनती नज़र आ रही थी। क्योंकि भाभी ने साफ साफ मना नहीं किया।

मैंने बभही की गांड को थाम लिया और उसे सहलाने लगा।

"बहुत मस्त गांड है आपकी भाभी।"

"हट पागल कैसी बातें करते हो। कुछ नहीं मिलेगा तुम्हे। कहीं और ट्राई करो।"

मैं भाभी के ऊपर आ गया और उनकी चूचियों को मसलने लगा। मौका देख कर मैंने भाभी के होठों को भी चूम लिया।

"दरवाजा खुला पड़ा है तुम मरवा ओगे मुझे।"

"मैं बंद कर देता हूँ। वैसे भी भैया तो शाम को ही आयेंगे।" मैंने उठ कर दरवाजा बंद कर दिया और वापिस भाभी पर चढ़ गया। भाभी ने सलवार कमीज़ पहन रखी थी। मैंने ज्यादा देर करना ठीक नहीं समझा और भाभी का नाड़ा खोलने लगा।

"क्या कर रहे हो रुक जाओ। ये सब ठीक नहीं है।" भाभी गिड़गिड़ाई

पर मैं रुकने वाला नहीं था। मैंने नाड़ा खोल कर सलवार नीचे सरका कर टाँगों से उतार दी। मैंने भी अपनी पैंट उतार दी और भाभी के ऊपर आ गया। मैंने कभी चूत देखी नहीं थी इसलिए नीचे झुक कर भाभी की चूत को निहारने लगा।

चूत पर हलके हलके बाल थे। मैंने अपने लुंड की हाथ में लिया और भाभी की चूत पर रगड़ने लगा।

"मेरे प्यारे लुंड ये है चूत जिसके अंदर तुझे घुसना है।" भाभी बहकने लगी थी और उन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली थी। अब मैं पूरी आज़ादी से भाभी को यहाँ वहाँ छू रहा था। मुझसे रुका नहीं जा रहा था। मैंने लुंड हाथ में लिया और भाभी की चूत में डालने लगा। पर बहुत कोशिश करने पर भी वो अंदर नहीं गया।

भाभी मेरे ऊपर हँसने लगी। "हाहाहा... ऐसे नहीं जायेगा ये अंदर।"

"मेरी मदद करो ना फिर...पहली बार चूत देखी है और पहली बार ही चूत मारने जा रहा हूँ।"

भाभी ने हाथ बढ़ा कर मेरे लुंड को थाम लिया। लुंड को हाथ में लेते ही वो चीला उठी, "हाय राम ये तो बहुत बड़ा है।"

"क्यों मजाक करती हो भाभी। क्या भैया के लुंड से भी बड़ा है।"

"हाँ उनके उस से तो ये बहुत बड़ा है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है भाभी। मैं तो भैया से छोटा हूँ।"

"मुझे नहीं पता। पर इतना बड़ा मैंने आज तक नहीं देखा।" भाभी ने मेरे लुंड को देखते हुए कहा।

"मतलब आपने भैया के लुंड के अलावा भी दुसरो के लुंड देखे हैं।"

"हाँ शादी से पहले 2 लड़कों के देखे थे। उन दोनों के तुम्हारे भैया से बड़े थे पर तुम्हारा तो कोई मुकाबला नहीं। ये तो राक्षस है।"

"वो सब तो ठीक है अब इसे अंदर तो ले लो भाभी।"

"मुझे डर लग रहा है। इतना बड़ा मैं नहीं ले सकती। मुझे माफ कर दो। मैं हाथ से हिला देती हूँ।"

"नहीं हाथ से तो मैं रोज हिला रहा हूँ। आज मुझे चूत के अंदर डालना है इसे।" मैंने लुंड को फिर से भाभी की चूत में डालने की कोशिश की पर फिर से मुझे रास्ता नहीं मिला।

मैंने भाभी से बहुत रिक्वेस्ट की तो उन्होंने दुबारा मेरे लुंड को हाथ में लिया और अपनी चूत के छेद पर रख दिया। जब उन्होंने मेरे लुंड को अपनी चूत के छेद पर रखा तो मुझे समझ में आया कि मैं क्यों नहीं घुस्सा पा रहा था। मैं तो हर वक्त उस छेद से ऊपर कोशिश कर रहा था।

मैंने जोर का धक्का मारा और भाभी की चीख निकल गई।

"ओह्ह्ह्ह....राघव निकाल बाहर बहुत दर्द हो रहा है।"

पर मेरे लुंड को पहली बार चूत मिली थी। और बड़ी मुश्किल से चूत में घुसने का रास्ता मिला था। मेरा बाहर निकालने का कोई इरादा नहीं था। मैंने एक और धक्का मारा और थोड़ा और लुंड अंदर सरक गया।

"नहीं राघव... आह्ह्ह्ह्ह बहुत दर्द हो रहा है।"

मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। मैंने धीरे धीरे अपना पूरा लुंड भाभी की चूत में उतार दिया और फिर बिना रुके धक्के मारने लगा। मैंने सुबह मुठ मारी थी इसलिए जल्दी झड़ने की चिंता नहीं थी। मेरे लुंड को चूत के अंदर होने का बहुत अच्छा अहसास हो रहा था। मैं पूरा बाहर निकाल कर वापिस अंदर डाल रहा था। भाभी अब शीशकिया ले रही थी मेरे नीचे पड़ी हुई। कोई आधे घंटे बाद मैंने अपना पानी छोड़ दिया भाभी के अंदर। इस दौरान भाभी कई बार झड़ चुकी थी। जब मैंने अपना लुंड भाभी की चूत से बाहर निकालने की कोशिश की तो भाभी ने मुझे जकड़ लिया।

"राघव इतना मजा कभी नहीं आया।"

"ये मजा आपको रोज मिलेगा भाभी। बस भैया को पता ना चलने पाये।"

इस तरह मेरे प्यासे लुंड को पहली चूत मिली। भाभी से ही मुझे पता चला कि मेरा लुंड बहुत बड़ा है। ये बात जान कर मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व हुआ था। डायरी के ये 2 पेज समाप्त करके जब मैं हटी तो मेरे माथे पर पसीने थे।

जींदगी में पहली बार मैंने ऐसा कुछ पढ़ा था। मेरी योनि गीली हो गई थी। फिर अचानक मुझे गुस्सा आ गया कि इस देहाती चाचा ने ये डायरी टॉयलेट में क्यों रख छोड़ी। मैं डायरी टैंक पर ही रख कर बाहर आ गई। मैं किचन की तरफ जा रही थी तो चाचा ने मुझे पीछे से आवाज़ दी, "बेटा मेरी एक डायरी नहीं मिल रही। तुमने देखी क्या कहीं। ब्लू रंग का कवर है उसका।"

"मैंने नहीं देखी..." कह कर मैं किचन में आ गई। मैंने चाचा के लिए डाइनिंग टेबल पर खाना रख दिया और अपना खाना लेकर अपने बेडरूम में आ गई।

मैंने अपने बेडरूम में ही खाना खाया और खाना खा कर सोने के लिए लेट गई। रोजाना लंच के बाद मुझे सोने की आदत थी। मगर आज आँखों से नींद गायब थी। डायरी में जो कुछ मैंने पढ़ा वो मेरे दिमाग में घूम रहा था।

"कैसे कोई इतनी गंदी बातें लिख सकता है। ये देहाती बहुत गंदा है। अपने मन की गंदगी निकाल रखी है इसने डायरी में। पर इसने वो डायरी टॉयलेट में क्यों रख छोड़ी थी। कहीं वो उसे मुझे तो पढ़ाना नहीं चाहता।"

ये सोचते ही मेरी आँखों में खून उतर आया। मैं ये सोच कर गुस्से से आग बबूला हो गई कि उसकी हिम्मत कैसे हुई वो डायरी मेरे लिए टॉयलेट में रखने की।

फिर मुझे ख़ुद पर गुस्सा आया कि मैंने उसकी डायरी के वो 2-3 पन्ने क्यों पढ़े। सोचते सोचते मेरी आँख लग गई।

अचानक मेरे बेडरूम पर हुई दस्तक से मेरी आँख खुल गई। मैंने दरवाजा खोला तो मेरे सामने चाचा खड़ा मुस्कुरा रहा था।

"कहिए क्या बात है?" मैंने पूछा।

"कुछ नहीं निधि बेटी। मुझे चाय की इच्छा हो रही थी। सोचा तुम्हे बता दूँ। कहीं तुम सो तो नहीं रही।"

"जी हाँ मैं सो रही थी।" मैंने गुस्से में कहा।

"ओह..फिर तो मैंने गलती कर दी तुम्हे उठा कर।"

"घर में दूध नहीं है। इसलिए चाय नहीं बना सकती आपके लिए अभी।"

"मुझे काली चाय पसंद है। दूध वाली मैं पीता भी नहीं।" चाचा ने घिनौनी हंसी के साथ कहा।

मन तो कर रहा था कि अभी उसके मुँह पर एक थप्पड़ जड़ दूँ पर मैं चुप रही। घर आये मेहमान की बेजती नहीं करना चाहती थी मैं।

"ठीक है आप थोड़ा इंतज़ार कीजिए मैं चाय बनाती हूँ।" मैंने कहा।

चाचा मुड़ कर जाने लगा मगर जाते जाते अचानक रुक गया और वापिस मेरी तरफ मुड़ कर बोला, "अरे हाँ निधि बेटी वो डायरी मुझे मिल गई थी। टॉयलेट में भूल गया था उसे। तुमने तो देखी होगी वहाँ। कहीं पढ़ तो नहीं ली।"

"म...म...मैं क्यों पढ़ूँगी आपकी डायरी। मैंने टॉयलेट में कोई डायरी नहीं देखी थी।" चाचा के अचानक पूछने पर मैं हड़बड़ा गई थी।

"हाँ बेटी किसी की निजी डायरी पढ़नी भी नहीं चाहिए।" चाचा कह कर चला गया।

मैं अपने पाँव पटक कर रह गई।

मैंने गुस्से में काली चाय बना कर चाचा को उनके कमरे में जाकर थमा दी, "ये लीजिए आपकी चाय।"

"अरे बहुत जल्दी बना दी। घर के कामों में माहिर हो तुम निधि बेटी। अच्छी बात है। गगन और तुम्हारी जोड़ी बहुत अच्छी है।"

"दोपहर को मैं सोई होती हूँ। प्लीज दुबारा मेरा दरवाजा मत खटखटाना"

"हाँ हाँ बेटी आगे से ध्यान रखूँगा। बेटी ये लो मेरी डायरी। इसमें मेरे जीवन की कुछ घटनाओं का विवरण है। पढ़ लो और पढ़ कर वापिस दे देना।" चाचा ने गंदी सी हंसी के साथ कहा।

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"जी नहीं मुझे कोई शौक नहीं है आपके जीवन के बारे में जानने का। अपनी डायरी अपने पास रखिए।" कह कर मैं बाहर आ गई। मैं गुस्से से तिलमिला रही थी।

"हिम्मत तो देखो इस देहाती की। मुझे अपनी अश्लील डायरी पढ़ने को दे रहा है। चाहता क्या है ये। शाम को मुझे गगन से मुझे बात करनी ही होगी। ऐसे व्यक्ति का हमारे घर में रहना ठीक नहीं है।"

.......शाम को मैंने गगन से कहा कि चाचा को जल्दी से यहाँ से रफा दफा करो। मैंने ये भी बोल दिया कि उसकी नजर ठीक नहीं है।

"अरे निधि चाचा जी भले इंसान हैं। पता है बाल ब्रह्मचारी हैं वो। आज तक उन्होंने शादी भी नहीं की जबकि बहुत रिश्ते आए थे उन्हें।"

"बाल ब्रह्मचारी किसने कहा तुम्हें ये।"

"चाचा जी ने ही बताया। ऑफिस से आकर मैं उनके कमरे में गया था तो उनसे बात हुई थी।"

"उनकी डायरी पढ़ो तुम्हें सब पता चल जायेगा कि कितना बड़ा बाल ब्रह्मचारी है वो।" मैंने मन ही मन कहा।

अगला दिन:

अगले दिन गगन ऑफिस चले गए और चाचा भी अपना चेक अप कराने हॉस्पिटल चला गया। घर के सभी काम निपटा कर मैं बेडरूम में रेस्ट कर रही थी तो अचानक मेरा ध्यान चाचा की डायरी पर गया।

"देखूं तो सही आगे क्या लिखा है उस देहाती ने।" मगर अगले ही पल दूसरा विचार आया, "नहीं नहीं मुझे ऐसी गंदी बातें नहीं पढ़नी चाहिए।"

फिर मैंने निर्णय लिया कि मैं बालिग हूँ अगर ये सब पढ़ भी लूँ तो क्या फर्क पड़ेगा। देखूं तो सही इस चाचा ने और क्या गुल खिलाए हैं।

मैं उठ कर चाचा के कमरे में आ गई। मैंने हर तरफ डायरी ढूंढी पर मुझे कहीं नहीं मिली। तभी मुझे ख्याल आया कि कहीं उसने डायरी टॉयलेट में तो नहीं रख छोड़ी फिर से। मैं टॉयलेट में आई तो मेरा शक सही निकला। डायरी को वहाँ देखते ही मेरा चेहरा गुस्से से लाल हो गया।

"जान बूझ कर मेरे लिए यहाँ डायरी छोड़ गया वो। बहुत बेशर्म है ये देहाती।"

डायरी ले कर मैं बेडरूम में आ गई और लेट कर आगे के पन्ने पढ़ने लगी।

डायरी के पन्नों से:

कैसे मेरे लुंड को पहली गांड मिली: हुआ यूँ कि एक दिन दोपहरी को मैं भैया से मिलने खेत जा रहा था। रास्ते में खेत ही खेत थे दोनों तरफ। अचानक मुझे कुछ आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही मैं रुक गया। मुझे अहसास हुआ कि हो ना हो खेतों में जरूर कोई रास लीला चल रही है। मैं दबे पाँव आवाज की दिशा में चल दिया। मैं वहाँ पहुंचा तो दंग रह गया।

बब्बन जो कि सरपंच का नौकर था उसकी बेटी कोयल को ठोक रहा था। कोयल कुत्तिया बनी हुई थी और बब्बन उसकी चूत में जोर जोर से धक्के मार रहा था। ये देखते ही मैं आग बबूला हो गया। कोयल को कई बार मैंने पटाने की कोशिश की थी। पर उसने हर बार मेरा मजाक उड़ाया था। कहती थी शीशे में शक्ल देखो जाकर। मुझसे रहा नहीं गया और आगे बढ़कर बब्बन को जोर से धक्का दिया।

"पीछे हट अब मैं लूँगा इसकी।" मैं चीखा।

"राघव ये क्या मजाक है।" बब्बन ने कहा।

"बब्बन चुप रह तू मुझे इस से हिसाब बराबर करना है।" मैंने कोयल की गांड को कस कर थाम लिया। कोयल घबराई हुई थी। वो तुरंत उठ कर खड़ी हो गई और बोली, "दफा हो जा यहाँ से।"

"हाँ चला जाता हूँ और तेरे बापू को यहाँ की तेरी सारी करतूत बताता हूँ। बब्बन तो मरेगा ही तू भी नहीं बचेगी।" मैं कह कर चल दिया।

"रुको राघव..." बब्बन ने आवाज दी।

मैं रुक गया। "बोलो क्या बात है।"

"सरपंच को कुछ मत बताना।" बब्बन गिड़गिड़ाया।

"ठीक है नहीं बताऊंगा। कोयल को बोल चुपचाप मेरे आगे झुक जाये आकर।"

"मैं ऐसा हरगिज नहीं करूँगी" कोयल चीखी।

"ठीक है फिर मैं चला तेरे बापू के पास।"

"रुको" बब्बन और कोयल दोनों चीखे।

मैं रुक गया और वापिस कोयल के पास आ गया, "चल झुक मेरे आगे।"

कोयल ने बब्बन की तरफ देखा और मेरे आगे झुक गई। जैसे वो बब्बन के लिए कुत्तिया बनी हुई थी वैसे ही मेरे लिए भी बन गई। मैंने उसकी गांड पर जोर से तमाचा मारा।

"ऊऊह... बब्बन इसे बोल दो कि दुबारा ऐसा ना करे।"

"आराम से कर ना राघव।" बब्बन गिड़गिड़ाया।

मैंने उनकी बात अनसुनी करके कोयल की गांड पर फिर से जोर से चांटा मारा। उसकी गांड लाल हो गई।

"तूने कभी मारी है क्या इसकी गांड?" मैंने बब्बन की और देखते हुए कहा।

"नहीं..." बब्बन ने जवाब दिया।

"आज मैं मारूँगा हाहाहा इसकी गांड।" मैंने कहा।

"नहीं मुझे वहाँ से अच्छा नहीं लगता।" कोयल गिड़गिड़ाई।

"चुप कर। तेरी पसंद पूछी क्या किसी ने।"

मैंने अपना लुंड बाहर निकाला और उसे कोयल की गांड पर रगड़ने लगा।

"अंदर मत डालना। मुझे अच्छा नहीं लगता।" कोयल ने पीछे मुड़ कर कहा। मगर जब उसकी नजर मेरे लुंड पर पड़ी तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गई।

"हाय भगवान ये तो बहुत बड़ा है। किसी का इतना बड़ा कैसे हो सकता है।" कोयल ने हैरानी में कहा।

बब्बन भी आँखें फाड़े मेरे लुंड को देख रहा था।

मैंने अपने लुंड पर बहुत सारा थूक लगा लिया और कोयल की गांड को फैला कर लुंड उसके छेद पर रख दिया।

"नहीं जायेगा ये अंदर। जब बब्बन का नहीं गया तो इतना बड़ा कैसे जायेगा।" कोयल गिड़गिड़ाई।

मैंने सवालिया नजरों से बब्बन की तरफ देखा।

"एक बार कोशिश की थी मैंने इसकी गांड में डालने की पर बहुत कोशिश करने पर भी नहीं गया था।" बब्बन ने कहा।

"आज जायेगा तू चिंता मत कर। देखता हूँ ये गांड मेरे लुंड को रास्ता कैसे नहीं देती।" मैंने फिर से जोर से चांटा मारा कोयल की गांड पर।

"तू इधर आ और इसकी गांड को फैला मेरे लुंड के लिए।" मैंने बब्बन से कहा।

बब्बन ने पास आकर कोयल की गांड को मेरे लिए फैला दिया।

"तू इसके छेद पर थूक गिरा दे जितना हो सके। मैं अपने लुंड को चिकना करता हूँ।" मैंने कहा।

बब्बन ने ढेर सारा थूक गिरा दिया कोयल की गांड के छेद पर। मैंने भी अपने लुंड को खूब चिकना कर लिया।

अपने चिकने लुंड को मैंने कोयल की गांड के चिकने छेद पर रख दिया और जोर से धक्का मारा।

"ऊऊयी मायी मर गई निकालो बाहर इसे।" कोयल चीखी।

"चुप कर अभी तो तुझे पूरा लुंड लेना है।" मैंने एक और धक्का मारते हुए कहा।

कोयल चीखती रही और मैं लुंड अंदर घुसाता रहा। जब अंडकोष तक लुंड उसकी गांड में उतर गया तो मैंने कहा, "अरे वाह कोयल। तूने तो पूरा ले लिया गांड में हाहाहा।"

"ऊह मुझे ही पता है कैसे लिया है।" कोयल ने कहा।

"बब्बन तू फैला कर रख इसकी गांड अब मैं इसे मारने जा रहा हूँ हाहाहा।" मैंने कहा।

मैंने कोयल की गांड मारनी शुरू कर दी। पूरा निकाल कर मैं वापिस अंदर डाल रहा था। कोयल अब मस्ती में झूम रही थी। उसकी सिसकियाँ खेत में गूँज रही थी। बहुत देर तक मैं यूँ ही मारता रहा कोयल की गांड।

"अब बस भी कर मेरे हाथ थक गए हैं।" बब्बन ने कहा।

"तू हट जा। अब मेरे लुंड ने अच्छा रास्ता बना दिया है।" मैंने कहा और अपने लुंड के धक्के लगाता रहा।

मुझे बहुत ज्यादा मजा आ रहा था। ये मजा किसी मायने में भी चूत से कम नहीं था। उस दिन मुझे आश्चर्य हुआ कि गांड मारने में भी इतना मजा आता है। कोयल की गांड बहुत टाइट थी। लुंड बहुत मुश्किल से घुस्सा था उसमें और वो मेरे लुंड को बहुत अच्छे से पकड़ रही थी। भीड़ रास्ते में लुंड को घुमाने का अपना ही मजा है ये मैं जान गया था।

जब मजा बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैंने अपनी स्पीड बहुत तेज कर दी और तेज तेज धक्के लगाते हुए कोयल की गांड को अपने पानी से भर दिया। जब मेरा पानी छूटा तो मैंने पाया कि बब्बन बड़ी ललचाई नजरों से कोयल की गांड को निहार रहा है। मैंने कोयल की गांड से लुंड बाहर निकाल लिया। मेरे निकालते ही बब्बन ने एक ही झटके में अपना लुंड कोयल की गांड में डाल दिया। उसने भी थोड़ी देर में अपना पानी कोयल की गांड में छोड़ दिया।

इस तरह मुझे पहली बार गांड मारने का मौका मिला। पहली गांड की चुदाई मुझे हमेशा याद रहेगी।

...............................

मैं डायरी पढ़ कर हटी तो मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी। कब मेरी योनि गीली हो गई थी मुझे पता ही नहीं चला था। मैं शर्म और ग्लानि से भर गई थी।

"वहाँ से सेक्स करता है क्या कोई ची। ये देहाती सच में बहुत गंदा है।"

मैं फौरन बिस्तर से उठी और उठ कर डायरी को वापिस टॉयलेट में रख आई।

मैं वापिस कमरे में आई तो अनजाने में ही मेरे हाथ मेरे नितंबों पर चले गए। "क्या इन्हें सेक्स के लिए यूज कर सकते हैं। गगन से बात करूँगी इस बारे में। मुझे तो ये बहुत गंदी और भद्दी बात लगती है।"

...........चाचा की डायरी में एनल सेक्स के बारे में पढ़ कर मन में अजीब सी हलचल हो रही थी। अचानक मन में ख्याल आया कि अगर गगन ने कभी मेरे साथ एनल सेक्स करने की कोशिश की तो क्या मैं उन्हें करने दूँगी?

मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। गगन सेक्स के दौरान मेरे नितंबों के गुम्बदों से खूब खेलते थे और उन्हें भरपूर मसलते थे मगर अभी तक उन्होंने कभी भी वहाँ अपना लिंग डालने की कोशिश नहीं की थी। मगर जब भी गगन मेरे नितंब के गुम्बदों को मसलते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था।

रात को मैंने गगन से बातों बातों में पूछा, "गगन क्या कोई एनल सेक्स भी करता होगा।"

"हाँ मेरा दोस्त राजीव खूब एनल सेक्स करता है अपनी बीवी के साथ उसकी मर्जी के बिना और खुश हो कर बताता भी है इस बारे में। मुझे बिलकुल पसंद नहीं एनल सेक्स क्योंकि वो मुझे अनहाइजीनिक लगता है और लड़कियों को पसंद भी नहीं आता क्योंकि बहुत पेनफुल रहता है। वैसे तुम ये सब क्यों पूछ रही हो।"

"यूँ ही पूछ रही थी।" मैंने कहा।

"तुम डरो मत तुम्हें वो सब नहीं सहना पड़ेगा। मुझे एनल सेक्स बिलकुल पसंद नहीं है।" गगन ने कहा।

आगे मैंने इस बारे में कोई बात नहीं की।

चाचा को 2 हफ्ते हमारे साथ ही रुकना था। डॉक्टर ने उन्हें 2 हफ्ते बाद फिर से बुलाया था। ये खबर मेरे लिए बहुत दुखदायी थी। मैं जल्द से जल्द चाचा को घर से दफा कर देना चाहती थी। गगन के जाने के बाद मुझे उसकी हवस भरी निगाहों का सामना करना पड़ता था।

डायरी वो रोज टॉयलेट में ही छोड़ने लगा था। 3 दिन में मैंने पूरी डायरी पढ़ ली। डायरी आधी भरी हुई थी। चौथे दिन जब मैंने उत्सुकता में डायरी उठाई तो मेरे पाँव के नीचे से जमीन निकल गई। मेरा सर घूमने लगा। चाचा ने मेरे बारे में लिख रखा था।

डायरी के पन्नों से:

निधि बहुत सुंदर है। इतनी सुंदर लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। भगवान ने बहुत फुर्सत से बनाया लगता है निधि को। मैं तो निधि की सूरत देखते ही उस पर फिदा हो गया था। इतना सुंदर चेहरा हर किसी को नहीं मिलता।

होंठ बहुत प्यारे हैं निधि के। हर वक्त कामुक रस टपकता रहता है उसके होंठों से। खुशनसीब है गगन जो कि उसे इतने रसीले होंठ चूसने को मिलते हैं।

निधि की चूचियों की तो बात ही निराली है। जब वो चलती है तो दोनों चूचियाँ कामुक अंदाज में ऊपर नीचे हिलती हैं। दिल बैठ जाता है मेरा उन्हें यूँ हिलते देख कर। चूचियों की मोटाई और गोलाई एक दम मस्त है। जो भी उन्हें देखता होगा उसके मुँह में पानी आ जाता होगा। जैसे मेरे मुँह में आ जाता है।

निधि की गांड के बारे में क्या लिखूँ कुछ समझ नहीं आ रहा। कातिल गांड है निधि की। मेरे दिल का कत्ल कर दिया निधि की गांड ने। इतनी मस्त गांड मैंने आज तक नहीं देखी। जब वो चलती है तो गांड के दोनों गोल गोल तरबूज बहुत कामुक अंदाज में हिलते हैं। नपुंसक के लुंड को भी खड़ा कर सकती है निधि की गांड। मेरा तो निधि की गांड के बारे में सोच कर ही बुरा हाल हो जाता है। लुंड बिठाए नहीं बैठता।

मुझे पूरा यकीन है कि इस अप्सरा की चूत भी कम कातिल नहीं होगी। बल्कि वो तो सबसे ज्यादा कयामत ढाती होगी।

लेना चाहता हूँ एक बार निधि की पर जानता हूँ कि ये मुमकिन नहीं है। गगन की बीवी है वो और मेरी बेटी के समान है। इसलिए उसकी लेने का ख्वाब हमेशा ख्वाब ही रहेगा। पर मुझे खुशी है कि ऐसी सुंदर अप्सरा के साथ मुझे एक ही घर की छत के नीचे रहने का मौका मिला।

डायरी पढ़ने के बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्ट करूँ। मेरे बारे में बहुत गंदी गंदी बातें लिख रखी थी चाचा ने डायरी में।

"इसका मतलब ये देहाती हर वक्त मुझे घूरता रहता है। कितना बेशर्म है ये।" मैंने सोचा।

डायरी टॉयलेट में ही रख कर मैं बाहर आ गई। मैं बहुत गुस्से में थी। लेकिन चाह कर भी मैं चाचा को कुछ नहीं कह सकती थी। मैं अपने बेडरूम में घुस ही रही थी कि चाचा ने पीछे से आवाज दी।

"बेटी आज का अखबार नहीं मिल रहा। क्या तुम्हारे पास है।"

"आप यहाँ अखबार पढ़ने आए हैं या इलाज कराने। मुझे नहीं पता कि अखबार कहाँ है।" मैंने गुस्से में कहा।

"गुस्सा क्यों कर रही हो। तमीज से बात करो। घर आए मेहमान से क्या ऐसे बात की जाती है।" चाचा ने कहा।

"हाय दफा हो जाओ यहाँ से जल्द से जल्द वरना इस से भी बुरा बर्ताव करूँगी मैं। हमारा ही घर मिला था तुम्हें...पूरी दिल्ली में।" मैं चीखी।

चाचा बिना कुछ कहे मेरी तरफ बढ़ा। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रखी थी।

मैं अपनी जगह खड़ी रही। मैं खुद बहुत गुस्से में थी। जानती थी कि मेहमान के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए पर उसने मुझे मजबूर कर दिया था।

"तुम्हें तमीज नहीं सिखाई क्या तुम्हारे माँ बाप ने।" चाचा ने कहा।

"उस से तुम्हें कोई मतलब नहीं है। मेरे माँ बाप को बीच में मत लाओ और जल्द से जल्द यहाँ से दफा हो जाओ।" मैंने गुस्से में कहा।

चाचा ने तुरंत आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और उसे मरोड़ दिया। मैं दर्द से कराह उठी पर वो नहीं रुका। जैसे जैसे वो हाथ मरोड़ रहा था मैं घूमती जा रही थी और जब वो रुका तब मेरी पीठ उसकी तरफ हो गई थी।

"छोड़ो मुझे...ये क्या कर रहे हो?" मैंने कहा।

"तुम्हें तमीज सिखा रहा हूँ। बोलो दुबारा बोलोगी इस तरह मुझसे।" चाचा ने कहा।

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई...छोड़ो मुझे।" मैं छटपटा रही थी। मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था।

अचानक चाचा का दूसरा हाथ मुझे मेरे नितंबों पर महसूस हुआ। मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

"छोड़ो मुझे...क्या कर रहे हो।"

"बहुत मुलायम है...रोज देखता था इसे प्यार से आज हाथ लगाने का मौका मिला हाहाहा।"

"हाथ हटा लो अपना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" मैं चीखी।

पर वो नहीं रुका। वो बारी बारी से मेरे नितंबों की दोनों गोलाइयों को दबोच रहा था। मैं सूट और सलवार पहनी हुई थी जिस कारण वो बहुत अच्छे से मेरे नितंबों को महसूस कर रहा था। अचानक जब मेरे नितंबों की दरार में उसने अपनी उंगली डाली तो मैं सिहर उठी। मैं थर थर काँपने लगी।

"तुम हटाते हो कि नहीं। मैं गगन को बता दूँगी हट जाओ।" मैंने चेतावनी दी।

"बता देना। नुकसान तुम्हारा ही होगा। हर कोई मेरी तरह गांड से नहीं खेल सकता।"

"शट अप। कुछ तो शर्म करो मैं तुम्हारी बेटी के समान हूँ।" मैंने कहा।

"तुमने बड़ा सम्मान दिया है मुझे। जबसे यहाँ आया हूँ तुम्हारी आँखों में तिरस्कार ही देखा है।"

"आह्ह्ह...छोड़ो मुझे...तुम मुझे यहाँ नहीं छू सकते।" मैंने कहा।

मेरे नितंबों के ऊपर सलवार के कपड़े को अंदर धकेलते हुए चाचा की उंगली मेरे नितंब के छिद्र तक जा पहुंची थी। आज तक किसी ने भी मुझे वहाँ नहीं छुआ था। मैं थर थर काँपने लगी थी।

"हम्म...बहुत मस्त गांड है तुम्हारी। गगन इसके साथ खेलता है कि नहीं।" चाचा ने घिनौनी आवाज में पूछा।

"तुम्हें उस से क्या मतलब। छोड़ो मुझे।"

चाचा ने मेरी बात अनसुनी करके मेरे नितंब के छिद्र को रगड़ना शुरू कर दिया।

मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था चाचा पर मगर जब वो मेरे पीछले छिद्र को उंगली से रगड़ रहा था तो मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही थी। सबसे बड़ा झटका मुझे तब लगा जब मुझे अपनी जांघों के बीच गीला गीला महसूस हुआ।

मेरे पीछले छिद्र पर हो रही रगड़ के कारण मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था। उस वक्त मैं बिलकुल खामोश हो गई थी।

"क्या हुआ अच्छा लग रहा है ना तुम्हें निधि बेटी।" चाचा ने बेशर्मी से कहा।

"तुम्हें शर्म आनी चाहिए ये सब करते हुए।"

"आ रही है पर दिल के हाथों मजबूर हूँ। क्या करूँ तुम्हारी गांड ही ऐसी है।"

"शट अप।"

अचानक चाचा ने कुछ अजीब तरीके से मेरे पीछले छिद्र को रगड़ा जिसके कारण मेरे मुँह से खुद ब खुद सिसकी निकल गई। "आह्ह्ह..."

चाचा ने मेरे नितंब से अपना हाथ हटा लिया और मेरे मरोड़े हुए हाथ को भी छोड़ दिया।

"आगे से तमीज से बात करना मेरे साथ समझी।" चाचा ने कहा।

"मैं शाम को गगन को सब बताऊँगी। देखना शाम को तुम्हारी खैर नहीं।" मैं चीखी और भाग कर अपने बेडरूम में घुस गई। बेडरूम में आते ही मैंने कुंडी लगा ली और बिस्तर पर गिर गई। मेरा शरीर थर थर काँप रहा था। आज तक कभी भी किसी ने मेरे साथ ऐसी हरकत नहीं की थी।

मैं अपने बिस्तर पर पड़ी हुई थर थर काँप रही थी। मेरे पीछले छिद्र पर मुझे अभी भी चाचा की उंगली महसूस हो रही थी। मैं विश्वास नहीं कर पा रही थी कि मेरे साथ मेरे ही घर में ऐसा हुआ है। मैं चाचा को बुरी तरह कोस रही थी।

"आज गगन के सामने इसकी पोल खोल दूँगी मैं। बड़ा बाल ब्रह्मचारी बना फिरता है। आज इसकी खैर नहीं।" मैंने निश्चय किया।

शाम को गगन ने डोर बेल बजाई तो मुझसे पहले चाचा ने दरवाजा खोल दिया।

"कुछ भी कर ले देहाती आज तू बचेगा नहीं।" मैंने मन ही मन कहा।

गगन चाचा के साथ उसके कमरे में चला गया। मैं टॉयलेट में गई तो मेरी आँखें चमक उठी। टॉयलेट टैंक पर चाचा की डायरी पड़ी थी। मैंने वो तुरंत उठाई और चाचा के कमरे में घुस गई। मैंने डायरी गगन को थमा दी और बोली,

"गगन ये चाचा जी की डायरी है। देखो इन्होंने कितना अच्छा अच्छा लिखा है अपने बाल ब्रह्मचारी जीवन के बारे में।"

गगन ने तुरंत डायरी ले ली।

चाचा ने तुरंत गगन से डायरी ले ली और बोला, "नहीं बेटा कुछ खास नहीं है इसमें रहने दो बाद में इत्मीनान से पढ़ना।"

"नहीं चाचा जी पढ़ने दीजिए ना इन्हें। गगन पढ़ो बहुत अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं इसमें।" मैंने तुरंत गगन को उकसाया। चाचा मेरी तरफ गुस्से में घूर रहा था।

"निधि इतना कह रही है तो पढ़ ही लेता हूँ चाचा जी।" गगन ने चाचा के हाथ से डायरी वापिस ले ली।

चाचा की हालत पतली होती दिख रही थी। गगन ने डायरी पढ़नी शुरू कर दी। मैं वही दीवार से सट कर खड़ी हो गई।

डायरी के 2 पेज पढ़ने के बाद गगन ने मेरी तरफ देखा और बोला, "सच में बहुत अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं इस डायरी में। ब्रह्मचर्य के बारे में बहुत अच्छा लिखा है चाचा जी ने। थैंक्स निधि मैं ये डायरी आज रात को पूरी पढ़ लूँगा।"

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मैंने तुरंत गगन के हाथ से डायरी खींच ली और पढ़ने लगी। उसमें सच में ब्रह्मचर्य के बारे में लिखा था। मेरा तो सर घूमने लगा।

"क्या हुआ बेटी। गगन को पढ़ने दो ना। तुम तो पढ़ ही चुकी हो।" चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाँ निधि मुझे दो। चाचा जी शायद ये दुबारा पढ़ना चाहती है। पर निधि अब पहले मैं पढ़ूँगा तब तुम दुबारा पढ़ना ओके।" गगन डायरी हाथ में लिए वहाँ से उठ गया और कमरे से बाहर चला गया।

मैं इतने सदमे में थी कि समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है। चाचा बेड से उठ कर मेरे पास आया और धीरे से बोला, "क्या हुआ तुम इतनी हैरान और परेशान सी क्यों हो गई अचानक निधि बेटी। सब ठीक तो है ना।"

"देख लूँगी तुम्हें मैं। छोड़ूँगी नहीं तुम्हें मैं।" मैंने कहा।

मैं कमरे से जाने लगी तो चाचा ने मेरे नितंबों पर जोर से हाथ मारा और बोला, "बहुत मस्त गांड है तुम्हारी। मजा आ गया आज।"

मैं दांत भींच कर रह गई और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर आ गई। मैं सीधा अपने बेडरूम में आई। गगन डायरी पढ़ने में मगन था।

"गगन चाचा जी वैसे नहीं हैं जैसे दिखते हैं।" मैंने कहा।

"हाँ ये पढ़ कर अब मुझे भी यही लग रहा है। बहुत ऊँची और गहरी बातें लिखी हैं जीवन के बारे में चाचा जी ने। थैंक्स अ लॉट डार्लिंग फॉर गिविंग दिस डायरी टू मी। और हाँ मैं बताना भूल गया। तुम तैयार हो जाओ। हम मूवी देखने जा रहे हैं।"

सुनते ही मैं झूम उठी। और तुरंत सब कुछ भूल कर तैयार होने लगी। जब हम निकलने लगे तो मुझे बहुत बड़ा शॉक लगा। गगन ने मुझे नहीं बताया था कि चाचा भी हमारे साथ मूवी देखने चल रहा है। वो तैयार खड़ा था दरवाजे के पास। मेरा उसे देखते ही सारा मूड खराब हो गया। हमने मेट्रो स्टेशन के लिए ऑटो किया और 5 मिनट में स्टेशन पहुंच गए। मेट्रो में बहुत भीड़ थी। लोग एक दूसरे से सट कर खड़े थे। बैठने को सीट नहीं थी सभी भरी हुई थी। मैं गगन और चाचा एक साथ खड़े हो गए थे। गगन मेरे बायीं तरफ था और चाचा मेरे पीछे। मुझे पूरा यकीन था कि चाचा जरूर कोई ना कोई छेड़खानी करेगा। मैंने प्लान बनाया कि जैसे ही वो मुझे कहीं छूएगा मैं गगन को बोल दूँगी देखने को कि देखो कौन छू रहा है मुझे। कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ।

अचानक मुझे मेरे नितंबों पर हाथ महसूस हुआ। मैंने धीरे से गगन के कान में कहा कि कोई मेरी बैक को टच कर रहा है। गगन ने मुझे चुप रहने को कहा ताकि टच करने वाले को रंगे हाथों पकड़ा जा सके। मैंने आँखों से इशारा किया कि हाथ अभी वही है तो गगन ने तुरंत वो हाथ पकड़ लिया। हैरत की बात ये थी कि वो हाथ चाचा का नहीं बल्कि मेरे दाहिनी तरफ खड़े आदमी का था। जैसे ही गगन ने उस आदमी का हाथ पकड़ा वो घबरा गया। चाचा ने मौका देख कर उसके मुँह पर एक थप्पड़ जड़ दिया। वो माफी माँगने लगा। बाकी लोगों ने भी उसे खरी खोटी सुनाई। मगर मेरा प्लान फिर से फेल हो गया था। चाचा फिर से बच गया था।

"सिनेमा में बहुत भीड़ थी। मैंने जानबूझ कर चाचा से दूर बैठी थी। चाचा को गगन की साइड वाली सीट पर बिठा दिया था। मुश्किल से 15 मिनट ही बीते थे कि गगन का मोबाइल बज उठा। गगन ये बोल कर बाहर चला गया कि बॉस का फोन है। गगन के बाहर जाते ही चाचा मेरे पास आ गया और मेरे कान में बोला,

"हर कोई तुम्हारी गांड के पीछे पड़ा है। पड़े भी क्यों ना गांड ही ऐसी है तुम्हारी।"

"चुपचाप मूवी देखो मुझे डिस्टर्ब मत करो।" मैंने कहा।

गगन आता दिखाई दिया तो चाचा वापिस अपनी सीट पर चला गया। गगन ने आकर मुझे बहुत बड़ा शॉक दिया।

"हनी मुझे जाना होगा। बॉस ने तुरंत ऑफिस बुलाया है कुछ अर्जेंट काम है। तुम लोग मूवी देख कर मेट्रो से ही वापिस चले जाना।"

"मैं चाचा के साथ मूवी कैसे देखूँगी।" मैंने धीरे से कहा।

"वो तो एक सीट छोड़ कर बैठे हैं। वैसे भी कॉमेडी मूवी है। प्लीज मुझे जाना ही होगा।" गगन चाचा की तरफ बढ़ गया बोल कर और उनके कान में कुछ बोल कर थिएटर से बाहर निकल गया।

मैं अपना सा मुँह लेकर रह गई। गगन के जाते ही चाचा मेरे पास वाली सीट पर आ गया।

"अब हम दोनों साथ में सिनेमा देखेंगे।" चाचा ने कहा।

"तुम्हारे गाँव में तो सिनेमा नाम की चीज भी नहीं होगी है ना। बड़ी मुश्किल से नसीब हुई है ये सिनेमा देखने की ऑपर्च्युनिटी तुम्हें। इसलिए चुपचाप मूवी देखो बैठ कर।" मैंने कठोरता से कहा।

"सच सच बताओ क्या कल तुम्हें मजा नहीं आया था। मेरा हाथ लगते ही औरत का अंग अंग थिरकने लगता है। तुम्हारी गांड के छेद को बहुत अच्छे से रगड़ा था मैंने। कहो तो आज फिर सेवा कर दूँ तुम्हारी थोड़ी सी।"

"तुम देखो मूवी बैठ कर मैं जा रही हूँ।" मैं उठने लगी तो चाचा ने हाथ पकड़ कर बैठा दिया मुझे वापिस।

"नहीं देखो तुम भी। मैं अब चुप रहूँगा।"

थोड़ी देर चाचा चुपचाप रहा। उसने कोई हरकत नहीं की। अचानक मुझे मेरी जांघ पर उसका हाथ महसूस हुआ तो मैं सिहर उठी। मैं चीख कर उसे हाथ हटाने को कहना चाहती थी पर मेरे बाजू में भी सीट पर एक लेडी बैठी थी अपने पति के साथ। मैंने चाचा का हाथ पकड़ कर चुपचाप मेरी जांघ से हटा दिया। मैं समझ गई कि चाचा मुझे परेशान करने वाला है। मैं बिना कुछ कहे वहाँ से उठ कर बाहर आ गई।

मैं जल्द से जल्द थिएटर से निकलना चाहती थी। मेरी नजर टॉयलेट पर पड़ी तो मुझे प्रेशर महसूस हुआ और मैं टॉयलेट में घुस गई। मैं खुद को रिलीव करके दरवाजा खोल कर बाहर निकली ही थी कि मेरे होश उड़ गए। मेरे सामने चाचा खड़ा था। मैं कुछ बोलने ही वाली थी कि उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और मुझे टॉयलेट में खींच लिया वापिस और कुंडी लगा दी। मैं बुरी तरह छटपटा रही थी। मुझे किसी के बोलने की आवाज आई तो मैं एक दम चुप हो गई। आखिर मेरी इज्जत का सवाल था।

चाचा ने मेरे मुँह से हाथ हटा लिया और मुझे चुप रहने का इशारा किया। मैं गुस्से से उसकी तरफ घूर रही थी। चाचा मुझे ऊपर से नीचे तक घूर रहा था। एक तरफ मुझे गुस्सा आ रहा था और एक तरफ मैं घबरा रही थी कि किसी ने मुझे चाचा के साथ टॉयलेट में देख लिया तो क्या होगा। मेरा दिमाग बुरी तरह घूम रहा था। चाचा मेरी तरफ देख कर मद्धम मद्धम मुस्कुरा रहा था। मुझसे सहा नहीं गया और मैंने घुमा कर एक थप्पड़ जड़ दिया चाचा के मुँह पर। चाचा बौखला गया और दोपहर की तरह उसने मेरा हाथ मरोड़ दिया और मुझे टॉयलेट के दरवाजे से सटा दिया। मेरी पीठ उसकी तरफ थी।

"ये कैसी आवाज थी।" बाहर से आवाज आई।

"पता नहीं शायद कोई टॉयलेट में है। लगता है हम ही बोर नहीं हो रहे मूवी से। बड़ी बेकार मूवी है यार।"

"हाँ सही कहा।"

मैं बिलकुल खामोश दीवार से सटी खड़ी थी। मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा था। चाचा ने हाथ बड़ी बेरहमी से मरोड़ रखा था। फिर जैसा कि दोपहर को हुआ था। चाचा के हाथ मेरे नितंबों से खेलने लगे। मगर एक मिनट बाद ही चाचा का हाथ ऊपर बढ़ता गया और उसने मेरे उभारों को मसलना शुरू कर दिया।

"तुम्हारे संतरे बहुत बड़े बड़े हैं निधि बेटा। कैसे इतने बड़े किए तुमने।" चाचा ने मेरे कान में कहा।

मैं शर्म से पानी पानी हो गई। उसे जोर से गाली देना चाहती थी पर अपनी इज्जत के कारण मजबूर थी।

चाचा ने अचानक बहुत जोर से मेरे उभारों को दबाया। मेरी चीख निकलते निकलते बची। मेरे उभारों को मसलते हुए मेरे बहुत नजदीक आ गया। मुझे मेरे नितंबों पर कुछ हार्ड सी चीज महसूस हुई तो मेरी साँस अटक गई।

"तेरी गांड को छू रहा है मेरा लुंड। बता कैसा लग रहा है।" चाचा ने मेरे कान में कहा।

"तुम एक नंबर के कमीने हो।" मैंने धीरे से कहा।

अचानक चाचा का हाथ मेरे उभारों से नीचे की और बढ़ा। मैं समझ गई कि उसका क्या इरादा है।

"खबरदार मेरे वहाँ हाथ लगाया तो।"

"क्या कर लोगी। चीखोगी। चीखो। हाहाहा।" चाचा ने मेरी योनि पर हाथ रख दिया और हाथ रख कर मुझे पीछे को धक्का दिया। मेरे नितंब चाचा के लिंग के और ज्यादा नजदीक पहुंच गए। अब उसका लिंग बहुत ज्यादा फील हो रहा था मुझे मेरे नितंबों पर। पहली गगन के लिंग के अलावा कोई दूसरा लिंग मेरे इतने नजदीक था। मुझे बहुत ही अजीब सी बेचैनी हो रही थी।

चाचा ने कपड़े के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी। मेरा हाथ अभी भी बहुत जोर से मरोड़ रखा था उसने और दर्द के कारण मैं खुद को असहाय महसूस कर रही थी।

चाचा मेरी योनि को बुरी तरह से रगड़ रहा था। कपड़े के ऊपर से ही उसने मेरी योनि की पंखुड़ियों को उंगलियों के बीच जकड़ लिया था और उन्हें बुरी तरह रगड़ रहा था। ना चाहते हुए भी मेरे शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ रही थी। कब मेरी योनि गीली हो गई और कब उसने पानी छोड़ दिया मुझे पता भी नहीं चला।

अचानक चाचा हट गया और मेरे कान में बोला, "चलो घर चलते हैं। कब तक यहाँ टॉयलेट में खड़ी हुई अपनी चूत रगड़वाती रहोगी। किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी।"

मैंने बिना कुछ कहे चाचा को घूर कर देखा।

"पहले तुम जाओ। मैं बाद में आता हूँ।" चाचा ने धीरे से कहा।

मैं दरवाजा खोल कर तुरंत बाहर आ गई और बाहर आते ही थिएटर के एग्जिट की तरफ लपकी। मैंने मेट्रो से जाने की बजाये ऑटो पकड़ा और सीधा घर आ गई। चाचा से मुझे कोई लेना देना नहीं था कि वो अनजान शहर में कैसे घर तक आएगा।

"अच्छा हो कि कहीं मर जाये कमीना।" मैंने मन में बहुत गालियाँ दी चाचा को।

ऑटो में बैठते वक्त मुझे ख्याल भी नहीं आया था कि मैं एक नई मुसीबत में फंस सकती हूँ। ऑटो वाला हर स्टॉप पर पीछे मुड़ कर मुझे देखता था। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने पूछ ही लिया कि क्या बात है। वो दांत निकाल कर हंसने लगा।

"आपने मुझे पहचाना नहीं क्या। मैं गंगू का भाई हूँ।"

मुझे तुरंत याद आ गया। गंगू हमारे घर रोज सुबह दूध देने आता था। एक दिन वो बीमार था तो उसकी जगह ऑटो वाला दूध देने आया था।

उसकी उमर कोई 31 या 32 साल थी।

"मेरा नाम प्रकाश है। शायद मैंने बताया था आपको?"

"ओके...जरा जल्दी करो मैं लेट हो रही हूँ।"

"क्या करूँ मैडम जी हर तरफ ट्रैफिक ही ट्रैफिक है। दिल्ली में ये सबसे बड़ी दिक्कत है।"

मैं उसकी बातों पर रिएक्ट नहीं कर रही थी। मगर कुछ ना कुछ बोले जा रहा था। अचानक उसने ऑटो रोक दिया।

"क्या हुआ?"

"मैडम जी आपकी इजाजत हो तो एक पान ले लूँ।"

"ठीक है...जल्दी करो।"

5 मिनट बाद वो पान चबाता हुआ ऑटो की तरफ आ रहा था। मेरी नजर उस पर पड़ी तो उसने बड़े अश्लील तरीके से अपनी पैंट में तने हुए लिंग को मेरी तरफ देखते हुए मसला। मैंने तुरंत अपना सर घुमा लिया।

"क्या आपने कभी पान खाया है मैडम जी।"

"नहीं...जरा जल्दी करो।"

"मैडम जी साहब क्या काम करते हैं?"

"तुमसे मतलब...तुम ऑटो चलाने पर ध्यान दो।"

उसने मुझे घर के बाहर उतार दिया। मैंने पैसे पूछे तो उसने मना कर दिया।

"रहने दीजिए मैडम जी। आपके यहाँ दूध देते हैं हम।"

"वो तो तुम्हारा भाई देता है ना।"

"अगले महीने वो कुछ काम से बाहर जा रहा है। फिर मैं ही देने आऊँगा।"

"जो भी हो पैसे तो तुम्हें लेने ही पड़ेंगे। बताओ कितने हुए?"

"आप इतना कह रही हैं तो 100 दे दीजिए।"

100 मुझे ज्यादा लगे मगर फिर भी मैंने तुरंत उसे पर्स से निकाल कर दे दिए।

मगर जाते जाते वो कुछ अजीब बोल गया।

"मैडम जी मेरे लिए लड़की ढूंढी जा रही है। काश आपके जैसी लड़की मुझे मिल जाये।"

मैं उसे देखती रह गई और बिना कुछ कहे घर की तरफ चल दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वो ऑटो लिए वही खड़ा था। कमीना हिलते हुए मेरे नितंबों को घूर रहा था।

घर में घुसते ही मुझे एक प्लान सूझा। मैंने किचन में एक कैमरा फिट कर दिया ताकि जब भी चाचा मुझे छेड़े उसकी करतूत कैमरे में रिकॉर्ड हो जाये।

जैसे ही मैं कैमरा फिट करके हटी डोर बेल बज उठी। मैंने दरवाजा खोला तो चाचा मेरे सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था।

"तुम सिनेमा से अकेली भाग आई। हम साथ आते तो अच्छा रहता। चलो कोई बात नहीं।"

मन तो कर रहा था कि उसके मुँह पर दरवाजा पटक दूँ और उसे घर में ना घुसने दूँ पर अपने प्लान का ख्याल आने पर मैंने खुद को थाम लिया।

मैं चुपचाप बिना कुछ कहे किचन में आ गई और कैमरा ऑन कर दिया। प्लान के मुताबिक मुझे किचन में ही रुकना था। मुझे पूरा यकीन था कि वो किचन में आकर छेड़खानी जरूर करेगा। मैं किचन के छोटे मोटे कामों में लग गई।

"गगन कब तक आएगा निधि?"

मैंने मुड़ कर देखा तो चाचा किचन के दरवाजे पर खड़ा था।

"मुझे नहीं पता। उन्होंने फोन नहीं किया। शायद देर हो जायेगी उन्हें आने में। आप बैठिए मैं खाना तैयार करके आपको बुला लूँगी।" मैंने जानबूझ कर शालीनता से जवाब दिया क्योंकि सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा था और ये रिकॉर्डिंग मुझे गगन को दिखानी थी।

मैं वापिस अपने काम में लग गई। मैं आलू काट रही थी। अचानक मुझे चाचा के कदम अंदर की और आते महसूस हुए तो मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। मेरे पूरे शरीर में अजीब सी हलचल होने लगी।

"बस अब ये मेरे नितंबों को छूएगा और सब कुछ रिकॉर्ड हो जायेगा। जैसे ही ये मेरे नितंबों को छूएगा मैं घूम कर इसे चांटा मारूँगी। फिर ये और ज्यादा बदतमीजी करेगा तो सब कुछ रिकॉर्ड होता जायेगा।" मैं एक साथ बहुत सारी बातें सोच रही थी। मगर जैसा मैं सोच रही थी वैसा कुछ नहीं हुआ। वो पानी पी कर चुपचाप बिना कुछ कहे किचन से बाहर चला गया।

मैं असमंजस में पड़ गई कि आखिर उसने मुझे छेड़ा क्यों नहीं।

गगन रात को 12 बजे वापिस आए। इस दौरान मैंने कई बार किचन में चक्कर लगाए पर चाचा ने कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की।

अगले दिन मैंने कैमरा ड्राइंग रूम में फिट कर दिया। गगन के जाने के बाद मैं मैक्सिमम बाहर ही घूमती रही। चाचा मुझे घूरता था मगर मुझे छेड़ने की कोशिश नहीं करता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है।

मुझे ये भी लगा कि कहीं उसे मेरे प्लान का पता तो नहीं चल गया। मैं उसे हर हाल में सबक सिखाना चाहती थी पर ना जाने क्यों वो जाल में फंस ही नहीं रहा था।

मैं दोपहर को बेडरूम में सोने की बजाये ड्राइंग रूम में ही फेमिना मैगजीन लेकर बैठ गई। चाचा कुछ देर बाद अपने कमरे से निकला और टॉयलेट में घुस गया। मैं तुरंत उठ कर खिड़की पर आकर खड़ी हो गई और बाहर देखने का नाटक करने लगी। चाचा कुछ देर बाद टॉयलेट से निकला और सोफे पर आकर बैठ गया। उसने फेमिना मैगजीन उठा ली। अब मुझे कुछ ना कुछ होने की आशंका होने लगी थी। मेरे दिमाग में कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे थे।

मैं सोच रही थी कि अभी चाचा उठेगा और मेरे नितंबों को थाम कर उन्हें मसलने लगेगा और मेरे नितंबों के बीच में उंगली भी डालेगा ताकि मेरे छिद्र को अच्छे से रगड़ सके। ये सब ख्याल आते ही मेरी योनि नम हो गई। जब मुझे मेरी जांघों में गीला गीला महसूस हुआ तब मुझे अहसास हुआ कि मैं कितनी बेहूदा बातें सोच रही हूँ। मैं हैरान थी कि चाचा की हरकतों को सोच कर ही मेरी योनि गीली हो गई थी। मैं खुद को कोसने लगी कि मैं कैसे इस देहाती के बारे में सोच कर उत्तेजित हो सकती हूँ।

मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि चाचा मैगजीन में खोया था। वो पन्ने पलट पलट कर बड़े गौर से हर पेज को देख रहा था। अचानक उसने मैगजीन टेबल पर वापिस रख दी। मैंने तुरंत अपनी गर्दन खिड़की की तरफ घुमा ली।

"अब ये उठेगा और मेरे नितंबों को दोनों हाथों में थाम लेगा और सब कुछ कैमरे में रिकॉर्ड हो जायेगा। आज इसकी खैर नहीं।"

चाचा उठ कर मेरे पीछे आ गया और बोला, "क्या देख रही हो बाहर निधि बेटी।"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें बंद कर ली। मेरी टाँगें काँपने लगी थी और मेरी योनि फिर से पानी छोड़ने लगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं चाचा के हाथों की छूवन के लिए मरी जा रही हूँ।

"क्या हुआ निधि बेटी। तुम कुछ परेशान सी हो।" चाचा ने पूछा।

"आप क्यों कर रहे हैं ये सब मेरे साथ।" मैंने चीख कर कहा।

"अब तो मैं कुछ भी नहीं कर रहा। अब क्या दिक्कत है तुम्हें?" चाचा ने बहुत धीरे से कहा और कह कर अपने कमरे में चला गया। मैं ठगी सी उसे जाते हुए देखती रही।

चाचा के जाने के बाद मैं कैमरा ऑफ करके ड्राइंग से अपने बेडरूम में आ गई। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर चाचा ने अचानक मेरे साथ छेड़खानी करना क्यों बंद कर दी। मुझे बार बार यही लग रहा था कि उसे मेरे प्लान की भनक लग गई है। हो सकता है उसने कैमरा लगा देख लिया हो। पर मुझे ये भी लग रहा था कि उस देहाती को कैमरे के बारे में जानकारी कहाँ होगी।

लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये परेशान कर रही थी कि ड्राइंग रूम में चाचा की छेड़खानी को सोचने भर से ही मेरी योनि नम हो गई थी। ऐसा क्यों हुआ मुझे समझ में नहीं आ रहा था। अचानक मुझे ख्याल आया।

"क्या मुझे उसकी छेड़खानी पसंद आने लगी है। हाउ डिसगस्टिंग... ऐसा नहीं हो सकता। कहाँ वो बदसूरत देहाती और कहाँ मैं।" मैं बौखला उठी। मैंने मन ही मन ठान लिया कि गगन के सामने हर हाल में उसका पर्दाफाश करके रहूँगी। मैं इन विचारों में खोई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई।

"आज फिर ये चाय माँगेगा। दे देती हूँ इसे चाय। क्या पता ये मेरे जाल में फंस जाये।" सोचते हुए मैंने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला।

"बेटी मेरे लिए एक कप चाय बना दोगी।" चाचा ने कहा।

"जी हाँ बिलकुल आप ड्राइंग रूम में बैठिए मैं अभी चाय लेकर आती हूँ।" मैंने जान बूझ कर उसे ड्राइंग रूम में बैठने को बोल दिया।

"ठीक है निधि बेटी।" वो हँसता हुआ वहाँ से चला गया।

किचन में जाते वक्त उसे टॉयलेट में जाते देखा तो मैंने तुरंत कैमरा ऑन कर दिया और फुर्ती से किचन में घुस गई ताकि उसे शक ना हो। चाय बना कर मैं ड्राइंग रूम में आई तो चाचा सोफे पर बैठा फेमिना मैगजीन लिए बैठा था। वो लेडीज़ अंडरगारमेंट्स की एडवर्टाइजमेंट वाले पेज को खोले बैठा था। उसमें एक खूबसूरत मॉडल सिर्फ ब्रा और पैंटीज में एक पेड़ के सहारे खड़ी थी। चाचा उसके उभारों पर हाथ फेर रहा था। मैंने बिना कुछ कहे चाचा की तरफ चाय बढ़ाते हुए कहा, "लीजिए चाचा जी चाय।" क्योंकि सब रिकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं उसे कुछ ज्यादा ही इज्जत दे रही थी।

"कितनी सुंदर चूचियाँ हैं इस लड़की की। गांड भी एक दम मस्त है। मगर तुम्हारे आगे ये कुछ भी नहीं है। तुम्हारी चूचियाँ और गांड तो जबरदस्त हैं।"

"आपको ऐसी बातें सोभा नहीं देती चाचा जी।" मैंने शालीनता से कहा।

"जब से तुम्हारी गांड पकड़ कर मसली है तुम्हें तमीज आ गई है। ऐसा ही होना चाहिए। हमेशा तमीज से बात करनी चाहिए तुम्हें।"

"चाचा जी आपको मेरे साथ ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।"

"कैसी बातें निधि बेटी हाहाहा।" वो हँसते हुए बोला।

"आपको मेरे साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए।"

"देखो तुम्हारे जैसा शरीर बहुत कम लड़कियों को मिलता है। इसका भरपूर आनंद लो। वक्त दुबारा नहीं आएगा। आओ मेरी गोद में बैठ जाओ और प्रेम से अपने अंगों को मेरे हाथों से मसलवाओ। तुम्हें भरपूर आनंद आएगा।"

"चाचा जी जुबान संभाल कर बात कीजिए। आप होश में तो हैं। आप अपने भतीजे की पत्नी से बात कर रहे हैं।"

"छोड़ भी ये नाटक। तू भी खूब मजे करती है मेरे साथ। सिनेमा के टॉयलेट में तूने बड़ी जल्दी अपना पानी छोड़ दिया था। ऐसा तबही होता है जब छोकरी मजे लुटाती है। मान ले मेरी बात तुझे मुझसे अपनी गांड और चूत मसलवाना अच्छा लगता है।"

मैं ये सुनते ही आग बबूला हो गई।

"शट अप यू बास्टर्ड... ऐसा कुछ नहीं है। मैं कोई मजे नहीं लुटाती हूँ। शर्म आनी चाहिए तुम्हें ऐसी बातें करते हुए।"

"अगर मजे नहीं लुटाती हो तो फिर ये बताओ तुम्हारी चूत क्यों पानी बहा रही थी सिनेमा के टॉयलेट में।"

"फिजूल की बातें मत करो देहाती ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो। एक तो यहाँ जबरदस्ती हमारे घर में घुस गए हो ऊपर से इतनी गिरी हुई हरकतें करते हो।"

चाचा ने फुर्ती से सोफे से उठ कर मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने बहुत जद्दोजहद की पर फिर से उसने मेरा हाथ मरोड़ ही दिया।

"छोड़ो मेरा हाथ देहाती।" मैं छटपटाते हुए बोली।

"चलो अभी देख लेते हैं कि तुम्हारी चूत पानी छोड़ती है कि नहीं।" चाचा ने मेरे नितंबों को मसलते हुए कहा।

"ऐसा कुछ नहीं होगा...छोड़ो मेरा हाथ।"

"देखने तो दो मेरी रानी।" चाचा ने अब मेरी योनि पर हाथ रखते हुए कहा।

"हाथ हटा लो अपना।"

"रुको तो मेरी रानी। आज तो ये और ज्यादा गर्म लग रही है। मेरा हाथ लगते ही फड़क रही है। तुम्हारी चूत को मेरे हाथों की छूवन अच्छी लगती है।"

"ऐसा कुछ नहीं है। छोड़ो मुझे।" मैं उसकी पकड़ से छूटने की पूरी कोशिश कर रही थी। पर उसने पूरी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था। उसके बायें हाथ ने मेरे एक हाथ को मरोड़ रखा था और उसका दायाँ हाथ मेरी अश्लीलता से योनि पर घूम रहा था।

कुछ देर तक वो सलवार के ऊपर से ही मेरी योनि को तरह तरह से मसलता रहा और मैं छटपटाती रही। अचानक उसका हाथ मेरे नाड़े की तरफ बढ़ा।

"अंदर हाथ मत डालना।" मैं तुरंत चीखी।

"क्यों ना डालूँ। तुम्हारी चूत खुद मेरे हाथ को बुला रही है।"

"शट अप यू पिग।"

"इंग्लिश मुझे समझ नहीं आती हिंदी में बोलो।"

"तुम सूअर हो।"

"कोई बात नहीं ये सूअर तुम्हारी चूत को खूब मजे देगा हाहाहा। बस थोड़ा सा इंतज़ार करो।" चाचा ने मेरे कान में धीरे से कहा।

चाचा ने मेरी सलवार में हाथ डाल दिया। उसने पैंटीज के अंदर भी हाथ सरका दिया और धीरे धीरे मेरी योनि की तरफ बढ़ने लगा। मेरी साँसें तेज चलने लगी। पहली बार गगन के शिवा कोई और मेरी योनि को इतनी नजदीकी से छूने जा रहा था।

"रुक जाओ मैं कहती हूँ। कुछ तो शर्म करो। गगन को पता चलेगा तो वो क्या सोचेगा।"

"गगन को कुछ पता नहीं चलेगा। तुम बस मजे लूटो।"

"मुझे कोई मजा नहीं लूटना छोड़ो मुझे।" मैंने छटपटाते हुए कहा।

जब चाचा का हाथ मेरी योनि पर टिका तो मैं काँप उठी। चाचा ने मेरी योनि को दो उंगलियों से फैलाया और मेरी योनि को पंखुड़ियों को मसलने लगा।

मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ने लगी। मेरी टाँगें थर थर काँप रही थी। जब चाचा ने मेरी योनि के भग्नासा (क्लिटोरिस) पर उंगली टिकाई तो मेरी हालत और ज्यादा खराब हो गई। मेरे पूरे शरीर में बिजली की लहरें दौड़ने लगी।

"मजा आ रहा है ना। क्या गगन खेलता है इस तरह तुम्हारी चूत के साथ जैसे मैं खेल रहा हूँ।"

"नहीं। वो ऐसा कुछ नहीं करते। मुझे छोड़ दो वरना...आह्ह्ह्ह" बोलते बोलते मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था।

"बड़ी जल्दी पानी छोड़ दिया। बातें तो बड़ी बड़ी करती हो। देखो खुद अब कैसे मजे लूट रही है तुम्हारी चूत।"

"ये जबरदस्ती करवाया तुमने।"

"जबरदस्ती चूत का पानी नहीं निकलवा सकता कोई।"

"तुम एक नंबर के कमीने हो आह्ह्ह्ह।" मैं चीख पड़ी क्योंकि चाचा ने मेरी योनि में उंगली डाल दी थी। गीली होने के कारण उंगली बड़ी जल्दी अंदर घुस गई थी।

"वाह क्या चिकनी चूत है तुम्हारी। मैंने ठीक ही अंदाजा लगाया था। तुम्हारी चूत तुम्हारी गांड के जैसी ही कयामत है। अच्छा एक बात बताओ। हफ्ते में कितनी बार मारता है गगन तेरी चूत।"

"तुम्हें उस से क्या मतलब उंगली बाहर निकालो अपनी।"

चाचा ने मेरी योनि में हर तरफ अपनी उंगली घुमानी शुरू कर दी और बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है अभी तो बस घुस्साई ही है।"

फिर ना जाने चाचा ने उंगली के साथ क्या किया मैं बहुत जोर से चीखी और मेरी योनि ने फिर से पानी छोड़ दिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। जबकि मैं तो पूरी कोशिश कर रही थी कुछ भी फील ना करने की। मगर उसकी उंगली मेरी योनि में कुछ अजीब सा जादू कर रही थी।

चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरे बायें उभार को थाम कर उसे मसलने लगा। अब चाचा का एक हाथ मेरे उभार पर था और एक हाथ मेरी योनि पर। मेरे नितंबों पर हल्का हल्का चाचा का लिंग महसूस हो रहा था। मैं इतनी मधोश हो चुकी थी कि अब मैं वहाँ चुपचाप आँखें बंद किए खड़ी थी और चाचा मेरे पीछे खड़ा मनचाहे ढंग से मेरे अंगों से खेल रहा था।

डोर बेल बजी तो मैं होश में आई। मैंने तुरंत चाचा को जोर से धक्का दिया और वहाँ से भाग कर अपने बेडरूम में आ गई। अंदर आते ही मैंने कुंडी लगा ली। मेरा दिल बहुत जोर जोर से धड़क रहा था।

अभी मैं संभली भी नहीं थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई।

"निधि बेटी तुम्हारी कोई चिट्ठी आई है। तुम्हें हस्ताक्षर करने होंगे।" चाचा ने बाहर से आवाज दी।

मैंने दरवाजा खोला और बिना चाचा की तरफ देखे सीधा मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गई। मैंने चिट्ठी लेकर साइन कर दिए। चिट्ठी लेकर मैं अपने बेडरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि चाचा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला,

"छोड़ा ना पानी तेरी चूत ने आज फिर। तू सच में मजे लुटाती है मेरे साथ।"

"तुम्हें तुम्हारे किए की सजा जरूर मिलेगी देहाती। बस देखते जाओ।" उसका हाथ झटक कर मैं दौड़ कर अपने बेडरूम में घुस गई।

"आज तुम्हारा पर्दाफाश कर दूँगी मैं गगन के सामने। बड़े बाल ब्रह्मचारी बने फिरते हो हह...." मैंने मन ही मन सोचा।

शाम को जब गगन घर आए तब ही मैं अपने बेडरूम से बाहर निकली। मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि आज गगन के सामने चाचा का झूठा नकाब उतर जायेगा। ड्राइंग रूम में जब कोई नहीं था तब मैंने चुपचाप कैमरा उठाया और कैमरा लेकर टॉयलेट में चली गई।

गगन को दिखाने से पहले मैं खुद रिकॉर्डेड क्लिप को देखना चाहती थी। मगर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा। कैमरे में ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड नहीं हुआ था जिस से चाचा का पर्दाफाश किया जा सके। दरअसल चाचा की छेड़खानी रिकॉर्ड होने से पहले ही मेमोरी कार्ड फुल हो गया था और रिकॉर्डिंग बंद हो गई थी।

"ओह नो मुझे इतना कुछ सहना पड़ा पर इसमें कुछ भी रिकॉर्ड नहीं हुआ। अब फिर से वही सब सहना पड़ेगा।" ये ख्याल आते ही मेरे तन बदन में बिजली की लहर सी दौड़ गई। मैंने खुद को बहुत कोसा क्योंकि मेरा शरीर पता नहीं क्यों फिर से चाचा के हाथों का खिलौना बनने के लिए तैयार था।

"चाचा को फंसाते फंसाते मैं कहीं खुद ही ना उसके जाल में फंस जाऊँ। उसकी छेड़खानी याद आते ही अजीब सी हलचल होती है तन बदन में। ऐसा लगता है जैसे मुझे ये सब अच्छा लगता है।"

"नहीं नहीं मुझे ये सब अच्छा कैसे लग सकता है। वो बदसूरत देहाती मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।"

"पर मेरे अंग प्रत्यंग उसके हाथों के इशारे पर नाचते हैं। आज फिर से उसने मेरी योनि को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया जबकि मैं खुद को संभालने की पूरी कोशिश कर रही थी। बहुत समझा रही थी मैं अपनी योनि को कि ऐसा कुछ नहीं करना है। पर मेरी एक नहीं चली और फिर से मेरी पैंटीज गीली हो गई। सच यही है कि मुझे ये सब अच्छा लगता है।"

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नहीं हो सकता ऐसा। मुझे ये सब अच्छा बिल्कुल नहीं लग सकता। उसने जबरदस्ती करवाया मुझसे सब कुछ।

जबरदस्ती ऑर्गेज्म नहीं करवा सकता कोई निधि। सच को स्वीकार करो तुम्हें ये सब अच्छा लगता है। गगन को ये सब बता दोगी तो नुकसान तुम्हारा ही होगा। फिर ये सब एंजॉय करने को नहीं मिलेगा।

मैं कोई एंजॉय नहीं कर रही हूँ। सब कुछ मुझ पर थोपा जा रहा है।

हाँ ये सच है कि सब कुछ थोपा जा रहा है पर ये मत भूलो कि तुम्हें ये सब अच्छा लगने लगा है। देखा था न तुमने। जब तुम खिड़की में खड़ी थी तब तुम्हारी योनि चाचा की छेड़खानी सोच कर ही गीली हो गई थी।

वो इत्तेफाक था।

हाहाहा खुद को धोखा दे रही हो तुम। और चाचा सिर्फ तुम्हें छेड़ता ही तो है। असली में सेक्स तो करने की कोशिश नहीं कर रहा है वो। फिर क्यों गगन को सब कुछ बता कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारती हो।

आज उसने उंगली डाल दी थी अंदर। और क्या रह गया। मैं ये सब नहीं होने दे सकती।

बस उंगली ही तो डाली थी उसने। अपना मोटा वो तो नहीं डाला न। और उसने अपनी डायरी में लिखा भी था कि वो तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं करेगा क्योंकि तुम गगन की बीवी हो।

बुलशिट। अंदर उंगली डालना कोई छोटी बात नहीं होती। जो भी हो मैं ये सब नहीं होने दूँगी मेरे साथ और चाचा के चेहरे से उसका झूठा नकाब हटा कर रहूँगी। मैं दुबारा कैमरा लगा कर सब कुछ रिकॉर्ड करूँगी। इस बार खाली मेमोरी कार्ड लगाऊँगी कैमरे में।

सोच लो। फिर ये एंजॉयमेंट नहीं मिलेगा तुम्हें। छोड़ो कैमरे को और सब एंजॉय करो। वैसे भी सिर्फ कुछ ही दिन की बात और है फिर वो चला जाएगा।

चाचा के कारण मेरे मन में अंतर्द्वंद्व हो गया था। मेरा मन दो हिस्सों में बट गया था।

निधि कहाँ हो तुम? बाहर से गगन की आवाज़ आई तो मेरा ध्यान टूटा।

मुझे इस देहाती से नफरत है और मैं इसका पर्दाफाश करके रहूँगी। मैं दृढ़ निश्चय करके टॉयलेट से बाहर आ गई।

गगन को अपने ऑफिस की एक फाइल नहीं मिल रही थी। इसलिए मुझे ढूँढ रहे थे।

अगले दिन दोपहर को अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। छत पर कपड़े सूख रहे थे। कपड़े उतारने के लिए मैं तुरंत छत की तरफ भागी। कपड़े उतार कर मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि मेरा पाँव फिसल गया और मैं धड़ाम से नीचे गिर गई। मेरी कमर जोर से नीचे टकराई थी। दर्द की लहर पूरे शरीर में दौड़ गई थी।

धड़ाम की आवाज़ सुन कर चाचा ऊपर दौड़ कर आया। तब तक मैं पूरी भीग चुकी थी।

अरे निधि बेटी क्या हुआ? चाचा मुझे उठाने के लिए आगे बढ़ा।

दूर रहो मुझसे। मैं खुद उठ जाऊँगी। मैं चिल्लाई।

किसी तरह मैं धीरे से उठी। मेरी कमर दायें पाँव में बहुत दर्द हो रहा था। मेरे पहने कपड़े भी भीग गए थे और जो कपड़े मैं उतारने आई थी वो भी भीग गए थे। कपड़े गीले होने के कारण मेरे शरीर से चिपक गए थे जिसके कारण मेरे उभारों और नितंबों की शेप बिल्कुल साफ दिखने लगी थी। चाचा की आँखें चमक रही थी ये नजारा देख कर। वो एकटक मुझे घूरे जा रहा था।

कमीना कहीं का। मौके का फायदा उठा रहा है। मैं सोचा।

मैंने जब सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाया तो मुझे दायें पाँव में बहुत दर्द महसूस हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे कि पाँव में मोच आ गई हो। बड़ी मुश्किल से मैं नीचे उतरी।

मैंने गर्म पानी से नहा कर कपड़े बदले मगर फिर भी दर्द से राहत नहीं मिली। पाँव में दर्द बढ़ता ही जा रहा था। जब दर्द असहनीय हो गया तो मैंने गगन को फोन मिलाया और उन्हें सारी बात बताई।

क्या जरूरत थी इतनी तेज बारिश में तुम्हें छत पर जाने की। गगन मुझे डाँटने लगे।

कपड़े थे न ऊपर। वो उतारने गई थी। दर्द तो कमर में भी है पर पाँव की ये मोच बहुत परेशान कर रही है।

तुम ऐसा करो फोन चाचा जी को दो।

क्यों...वो सो रहे होंगे।

दोपहर को नहीं सोते हैं वो। जाओ मेरी बात करवाओ उनसे।

पर बात क्या है?

उन्हें पाँव की मोच उतारनी आती है। मैं उनको बोल देता हूँ वो मोच उतार देंगे।

व्हाट...तुम होश में तो हो। मैं उनसे अपनी मोच नहीं उतरवाऊँगी।

क्यों...वो एक्सपर्ट हैं। एक बार गाँव में जब मेरे पाँव में मोच आ गई थी तो उन्होंने झट से मोच उतार दी थी। तुम उन्हें फोन तो दो।

मरती क्या न करती। मैं चाचा के कमरे की तरफ चल दी। चाचा अपने बिस्तर पर आँखें बंद किए पड़ा था। मैंने दरवाजा खटखटाया तो वो उठ कर बैठ गया।

अरे निधि बेटी आओ आओ।

गगन आपसे बात करना चाहते हैं। मैंने फोन चाचा को थमा दिया और बाहर आकर ड्राइंग रूम में बैठ गई। चाचा फोन पे बात करता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला।

तुम चिंता मत करो गगन बेटा। मैं अभी निधि बेटी की मोच उतार देता हूँ। तुम अपने काम पर ध्यान दो।

चाचा ने मुझे फोन देते हुए कहा, यहीं मोच उतारूँ तुम्हारी या तुम्हारे कमरे में।

मुझे कोई मोच वोच नहीं उतरवानी। आप अपना काम कीजिए।

नखरे मत करो। एक पल में दर्द गायब हो जाएगा तुम्हारा। लाओ पाँव आगे करो।

दूर रहो मुझसे। मैंने चाचा को डाँट दिया।

तभी फिर से गगन का फोन आ गया।

चाचा को बोल दिया है मैंने। उन्होंने शुरू की क्या पाँव की मालिश।

नहीं अभी नहीं।

चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और खींच कर मुझे सोफे से उठा दिया।

फोन दो उन्हें मैं उन्हें जल्दी करने को बोलता हूँ। मोच का दर्द बहुत बेकार होता है। गगन ने कहा।

शुरू करने वाले हैं तुम चिंता मत करो बाय। मैंने फोन काट दिया क्योंकि चाचा मुझे खींच कर अपने कमरे तक ले आया था।

रुको मेरे बेडरूम में चलते हैं। मैंने कहा। मेरा प्लान था कि मैं अपने बेडरूम में कैमरा लगा लूँगी ताकि चाचा की हर हरकत रिकॉर्ड होती जाए।

जैसी तुम्हारी मर्जी।

आप थोड़ी देर रुकिए मैं बेडरूम में बिखरे अपने कपड़े समेट लूँ।

ठीक है।

मैंने झटपट अपने बेडरूम में आकर कैमरा फिट किया। मैं कैमरा ऑन करके हटी ही थी कि चाचा की आवाज़ आई। आ जाऊँ क्या बेटी।

कितना उतावला हो रहा है मोच के बहाने मेरे साथ छेड़खानी के लिए। आज तुम्हारी खैर नहीं।

जी आ जाइए।

चाचा अंदर आ गया और बोला तुम आराम से बिस्तर पर लेट जाओ। चिंता की कोई बात नहीं है। अभी मोच उतार देता हूँ।

देखो पाँव के अलावा कहीं और हाथ मत लगाना। मैंने चेतावनी दी।

ठीक है...तुम लेटो तो सही।

क्योंकि सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं पीठ के बल लेट गई। चाचा ने मेरे दायें पाँव को दोनों हाथों में लिया तो मेरा शरीर काँपने लगा। चाचा ने भी मेरी काँप काँपी को महसूस किया।

क्या हुआ? मजे लेने लगी अभी से। बहुत प्यासी लगती हो। लगता है गगन ठीक से ध्यान नहीं दे रहा तुम पर।

बकवास मत करो देहाती। मोच ठीक करने पर ध्यान दो। चाचा ने मेरे पाँव की मालिश शुरू कर दी। 10 मिनट तक वो मेरे पाँव की मालिश करता रहा पर दर्द में जरा भी राहत नहीं मिली।

कुछ आराम मिला क्या।

नहीं अभी नहीं। आप रहने दीजिए मैं डॉक्टर को दिखा लूँगी।

नस बहुत बुरी तरह चढ़ी हुई है एक दूसरे के ऊपर। तुम पीठ के बल गिरी थी न?

आपने देखा तो था।

हाँ देखा था। तुम्हारे चूतड़ों की नसें भी खींच गई हैं। इसलिए सिर्फ यहाँ मालिश करने से बात नहीं बनेगी।

ये सब बहाने बाजी है तुम्हारी वहाँ हाथ लगाने के लिए। मैं खूब अच्छे से जानती हूँ।

जब मुझे हाथ लगाना होता है मैं लगा ही लेता हूँ। तुम्हारी इजाजत नहीं माँगता। मैं सच कह रहा हूँ तुम्हारे पाँव के दर्द को दूर करने के लिए मुझे वहाँ हाथ लगा कर देखना ही होगा। वहाँ भी नसें एक दूसरे पर चढ़ी होंगी। तुम्हें हल्का हल्का वहाँ दर्द भी हो रहा होगा।

दर्द तो गिरने के कारण होगा। वहाँ मोच का क्या मतलब।

मतलब है निधि। नसें आपस में जुड़ी होती हैं। जब तक तुम्हारे चूतड़ों की नसों का खींचाव नहीं हटेगा पाँव की मोच ठीक नहीं होगी।

बुलशिट। मैं नहीं मानती।

क्या कहा हिंदी में बोलो। मुझे इंग्लिश नहीं आती।

ये सब बकवास है। रहने दीजिए मैं शाम को डॉक्टर को दिखवा लूँगी।

तुम्हारी मर्जी। मैं तो तुम्हारे भले के लिए बोल रहा था।

मेरा कितना भला चाहते हैं आप मैं जानती हूँ। मैं खूब समझ रही हूँ कि आप मोच के बहाने मेरे शरीर के साथ गंदी हरकत करेंगे।

वो तो मैं वैसे भी कर सकता हूँ। इस वक्त सिर्फ तुम्हारा दर्द दूर करना चाहता हूँ मैं। देखो कैसी छमाछम बारिश हो रही है। ऐसे में दर्द में पड़ी रहोगी तुम तो बारिश का मजा नहीं ले पाओगी।

दर्द तो मुझे बहुत हो रहा था। दर्द के कारण मेरी जान निकली जा रही थी। चाचा की ये बातें सुन कर मैं सोच में पड़ गई थी। ये बात सही थी कि चाचा चाहता तो फिर से मेरे साथ जबरदस्ती करके मुझे कहीं भी छू सकता था।

मगर मैं खुद उसे छूने की इजाजत नहीं दे सकती थी। लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। मैं गगन को कोस रही थी। उसने मुझे अजीब मुसीबत में फँसा दिया था।

सोच क्या रही हो...तुम ऐसे नहीं मानोगी। चाचा बिस्तर पर चढ़ गया और मुझे कंधों से पकड़ कर बेड पर उल्टा घुमा दिया। पहले मैंने रेसिस्ट करने की कोशिश की पर अपने दर्द का सोच कर मैंने अपना रेसिस्टेंस त्याग दिया। चाचा मेरे दायिन तरफ मेरे घुटनों के बल बैठ गया।

देखो सिर्फ मोच उतारने पर ध्यान देना। अगर कोई भी ऐसी वैसी हरकत की तुमने तो मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी।

बता देना जो बताना है। तुम्हारे भले के लिए करूँगा जो भी करूँगा।

चाचा ने मेरे दायें नितंब के गुम्बद के शीर्ष पर बीचों बीच अपना दायाँ अंगूठा रख दिया। मेरे नितंब की गोलाई पर चाचा का अंगूठा टिकते ही एक तेज लहर सी मेरे बदन में दौड़ गई।

क्या हुआ?

क...क..कुछ नहीं। कितना टाइम लगेगा इसमें।

ज्यादा टाइम नहीं लगेगा घबराओ मत। चाचा ने अंगूठे से मेरे नितंब की दायिन गोलाई को जोर से प्रेस किया और बोला, कुछ फर्क पड़ा पाँव में।

नहीं मैंने तुरंत कहा।

चाचा ने अपना दायाँ अंगूठा मेरे बायें नितंब की गोलाई पर रख कर जोर से दबाया और बोला, अब कुछ फर्क पड़ा।

नहीं।

कोई बात नहीं अब फर्क पड़ेगा। चाचा ने अपने दोनों हाथ फैला कर मेरे नितंबों की गोलाई पर रख दिए और उन्हें जोर से प्रेस किया। मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी चाचा की इन हरकतों से। मगर फिर भी मैं दम साधे चुपचाप वहाँ पड़ी रही। कुछ देर तक चाचा मेरे नितंब के दोनों गुम्बडों को हाथों से नीचे की ओर दबाता रहा। मगर अचानक उसने मेरी दोनों गोलाइयों को आटे की तरह गूँदना शुरू कर दिया। उसकी इस हरकत से मेरी साँसें तेज चलने लगी और रह रह कर एक अजीब सी तरंग शरीर में दौड़ने लगी। कब मेरी योनि गीली हो गई मुझे पता ही नहीं चला।

कमबख्त मेरे अंग इसके हाथों का खिलौना बन जाते हैं। फिर से मेरी गीली हो गई। ऐसा क्यों होता है मेरे साथ। मैं खुद को कोसने लगी।

कुछ फर्क पड़ा निधि?

कुछ फर्क नहीं पड़ा। आप मोच के बहाने अपनी हवस पूरी कर रहे हैं। हट जाओ। मुझे नहीं उतरवानी मोच तुमसे।

संयम से काम लो निधि। देखो नस एक दूसरे पर चढ़ जाए तो मुश्किल से उतरती है। यहाँ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कपड़ों के कारण मुझे तुम्हारी नसें दिखायी नहीं दे रही।

आ गए न अपनी औकात पर। अब सब साफ हो गया। तुम ये सब अपनी हवस के लिए कर रहे हो। मुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा कि मोच मेरे पाँव में है और तुम कहीं और ही लगे हुए हो।

देखो सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हैं। तुम देखना पाँव की मोच यहीं से ठीक होगी। तुम बस थोड़ी सी सलवार नीचे सरका लो।

एक नंबर की बकवास है ये। मैं यहाँ दर्द से मरी जा रही हूँ और तुम्हें बस अपने काम से मतलब है।

ऐसा नहीं है निधि। थोड़ा नीचे सरकाओ सलवार। जितनी जल्दी नीचे सरकाओगी सलवार उतनी जल्दी तुम्हारा दर्द दूर होगा।

तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए। गगन को पता चलेगा तो तुम्हारी खैर नहीं।

तभी मेरा मोबाइल बज उठा। फोन गगन का था।

कुछ आराम मिला क्या?

नहीं अभी तक कोई आराम नहीं मिला।

क्यों चाचा जी ने मोच नहीं उतारी क्या अभी तक।

वो लगे हुए हैं पर कोई फायदा नहीं हो रहा।

कोई बात नहीं चाचा जी पर भरोसा रखो। वो एक्सपर्ट हैं इस काम में।

मैं गगन के साथ बातों में लगी थी कि चाचा ने एक झटके में कमर से दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरी सलवार का नाड़ा पकड़ लिया। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती नाड़ा खुल चुका था।

नहीं.... मैं जोर से चिल्लाई।

चाचा ने वापस मुझे फोर्सफुली नीचे लेटा दिया और फुर्ती से मेरी सलवार नीचे सरका दी। अब मेरे नितंबों के गुम्बद सिर्फ मेरी पतली सी पैंटी में ढके हुए चाचा की आँखों के सामने थे।

क्या हुआ निधि। इतनी जोर से क्यों चिल्लाई। गगन ने पूछा।

मेरे एक हाथ में मोबाइल था और दूसरे हाथ से मैं अपनी सलवार ऊपर करने की कोशिश कर रही थी। मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूँ। मैं उठने की कोशिश कर रही थी पर मुझे चाचा ने दोनों हाथों से दबा रखा था। मैं छटपटा रही थी।

क्या हुआ निधि कुछ तो बोलो।

क...क कुछ नहीं बहुत दर्द हुआ अचानक से।

होता है...ये मोच बड़ी बेकार चीज होती है।

नहीं हटो... मैं फिर से चिल्लाई क्योंकि इस बार चाचा ने मेरी पैंटी नीचे सरका दी थी। मैं तो शर्म और ग्लानि से मरी जा रही थी। मेरे नितंब पहली बार गगन के अलावा किसी और की आँखों के सामने नंगे थे।

अब क्या हुआ। गगन ने पूछा।

गगन ये मोच चाचा जी से नहीं उतरेगी। मैं उन्हें फोन दे रही हूँ। तुम उन्हें बोल दो कि रहने दें। मैंने गर्दन घुमा कर फोन चाचा की तरफ बढ़ा दिया।

हाँ गगन बेटा.............नहीं नहीं तुम चिंता मत करो। दरअसल नसों पर नस बुरी तरह चढ़ी हुई है। थोड़ा टाइम लगेगा। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी गंभीर मोच आज तक नहीं देखी..............हाँ हाँ तुम चिंता मत करो मैं निधि का दर्द दूर करके ही दम लूँगा।

चाचा ने फोन पर बात करते वक्त भी मुझे उठने का कोई मौका नहीं दिया। मेरी कमर पर उसने अपना गोदड़ा टिका रखा था और एक हाथ से मेरे कंधों पर दबाव बना रखा था। गगन से बात करने के बाद चाचा ने फोन वापस मुझे दे दिया।

अरे निधि तुम्हायी मोच कोई मामूली मोच नहीं है। चाचा जी कह रहे हैं कि थोड़ा वक्त लगेगा। तुम धैर्य से काम लो और चाचा जी पर विश्वास रखो। चाचा जी सब ठीक कर देंगे।

मैंने गगन की बात सुन कर पीछे मुड़ कर देखा। चाचा मेरे निर्वस्त्र नितंबों को ललचायी नजरों से देख रहा था। वो मेरे नितंबों से ठीक नीचे मेरी जाँघों पर बैठा था और दोनों हाथ मेरी कमर पर रख रखे थे। मेरी उस से नजरें टकरायी तो कमीने ने अपने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आँख मार दी। मैं शर्म से पानी पानी हो गई। दिल तो कर रहा था कि उसी वक्त गगन को सब कुछ बता दूँ पर ये सोच कर रुक गई कि फोन पर ये बात करना ठीक नहीं होगा क्योंकि फोन पर मैं गगन को डिटेल में नहीं समझा पाऊँगी। वैसे भी कैमरे में चाचा की सारी हरकतें रिकॉर्ड हो रही थी। चाचा का पर्दाफाश करने के लिए मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ रही थी। मेरे बेचारे नितंब दाँव पर लग गए थे।

क्या हुआ निधि किस सोच में पड़ गई।

मुझे नहीं लगता कि चाचा ठीक कर पायेंगे।

नहीं वो कर देंगे तुम शांति रखो। उन्हें अपना काम करने दो।

चाचा ने एक हाथ से मुझे दबाये रखा और दूसरे हाथ को धीरे धीरे नीचे सरकाते हुए मेरे नितंबों के पास ले आये। मेरी योनि को तो वो छू ही चुका था और अंदर उंगली भी डाल चुका था। अब मेरे नितंब चाचा की हवस का शिकार होने वाले थे। और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।

जब चाचा ने मेरी दायिन गोलाई पर हाथ रखा तो मैं सिहर उठी। एक बिजली की लहर सी पूरे शरीर में दौड़ गई।

चाचा ने बड़े प्यार से मेरे नितंबों के दोनों गुम्बडों पर हाथ फिराया। फिर अचानक उसने बड़ी बेरहमी से उन्हें मसलना शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था जैसे कि आटा गूँद रहा हो। मेरी जो हालत हो रही थी वो मैं ही जानती थी। मेरे दोनों गुम्बद चाचा की इन छेड़खानियों से मचलने लगे थे। उनमें रह रह कर सिहरन सी हो रही थी। ये बात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी और मैं वहाँ से उठने के लिए छटपटा रही थी पर चाचा ने मुझे कुछ इस तरह से दबा रखा था कि मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने मोबाइल उठाया और बोली, हट जाओ तुम वरना मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी।

पागल मत बनो। अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मत मारो। तुम्हें ये अच्छा लग रहा है। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि इस वक्त तुम्हारी चूत रस टपका रही होगी। क्यों अपने मजे में खलल डालती हो।

शट अप मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा।

देखूँ तुम्हारी चूत पर हाथ लगा कर।

तुम्हें शर्म नहीं आती। मोच के बहाने मेरे साथ इतनी गंदी हरकतें कर रहे हो। मैं अभी गगन को सब कुछ बता दूँगी।

मैंने गगन का नंबर डायल किया पर उसने फोन नहीं उठाया। मैंने दुबारा नंबर डायल किया ही था कि मेरी साँसें एक दम से थम गई। चाचा ने मेरे नितंबों की दरार पर उंगली फिरा रहा था।

कितनी मस्त गांड है तुम्हारी। एक दम गोरी चिट्टी और चिकनी। कोई भी फिदा हो जाएगा इस गांड पर। गगन के तो खूब मजे लगे हुए हैं। बोलते हुए चाचा ने मेरे दोनों गुम्बडों को फैला दिया हाथों से और मेरे नितंब के छिद्र को निहारने लगा।

ऊह कया गांड कसम से। इसका छेद भी कितना चिकना है। एक भी बाल नहीं है। निधि सच कह रहा हूँ इतनी सुंदर गांड मैंने आज तक नहीं देखी।

शट अप यू पिग।

हिंदी में गाली दो न।

हट जाओ तुरंत नहीं तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ।

जो छोकरी मुझे पसंद आ जाती है उसके साथ मैं अपनी मर्जी चलाता हूँ। जो होगा देखा जाएगा।

चाचा ने मेरे पीछले छिद्र पर उंगली टिकायी तो मेरी कँपकँपी छूट गई।

क्या हुआ मचल उठी न।

अंदर मत डालना उंगली समझे नहीं तो खून पी जाऊँगी तुम्हारा।

देखो तुम्हारे पाँव की मोच का इलाज तुम्हारी गांड के छेद में छुपा है। अंदर उंगली डालनी ही पड़ेगी तुम्हारी मोच ठीक करने के लिए।

बुलशिट...बकवास है ये एक नंबर की। मोच के बहाने कुछ भी कर लो आआह्ह्ह्ह नहीं हट जाओ। बोलते बोलते मैं चीख पड़ी क्योंकि देहाती ने उंगली मेरे पीछले छिद्र में डाल दी थी। पहली बार उसमें कुछ अंदर गया था इसलिए असहनीय पीड़ा हो रही थी।

उफ्फ बहुत टाइट गांड है तुम्हारी। उंगली डालने में ही कितनी दिक्कत हो रही है।

मुझे दर्द हो रहा है हट जाओ। तुम मेरा दर्द कम करने की बजाये मुझे और तकलीफ दे रहे हो।

चुप रहो थोड़ी देर। देखो सारे दर्द अभी गायब हो जायेंगे।

मैं छटपटाती रही पर वो नहीं रुका। उसने धीरे धीरे अपनी पूरी उंगली मेरे नितंब के छिद्र में डाल दी। कुछ देर रुकने के बाद वो उंगली को बाहर की तरफ खींचने लगा। मुझे लगा कि वो बाहर निकाल लेगा। मगर उसने फिर से उंगली अंदर ढकेल दी। मैं सिसक उठी। मेरी सिसक में दर्द, उत्तेजना, शर्म और ग्लानि सब कुछ शामिल थे। मगर चाचा किसी भी बात की परवाह किये बिना उंगली मेरे टाइट होल में अंदर बाहर करने लगा।

कुछ आराम मिला मोच में।

शट अप ये सब तुम मेरे आराम के लिए नहीं कर रहे हो।

बस एक मिनट और दो मुझे अभी तुम्हारी मोच उतर जायेगी। चाचा ने मेरे नितंब के छिद्र में अपनी उंगली घुमानी बंद कर दी और अपनी उंगली के शिरे से मेरे छिद्र के अंदर कुछ टटोलने लगा। अचानक उसने एक जगह उंगली टिकायी और वहाँ जोर से दबा कर बोला, हिलना मत थोड़ी देर। वो नस मिल गई है जो सारे फसाद की जड़ है। हिलोगी तो फिर से उंगली रगड़नी पड़ेगी इस नस को ढूंढने के लिए इसलिए चुपचाप पड़ी रहो। मुझे चाचा की बात पर यकीन तो नहीं था मगर फिर भी मैं बिल्कुल स्थिर हो गई। मैं देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करेगा। चाचा मेरी जाँघों से उतर गया और मेरे दायिन तरफ आ गया। अपने बायें हाथ से उसने मेरे पाँव को पकड़ लिया और वहाँ पर एक जगह किसी नस पर अंगूठा रख कर जोर से दबाया। दबाने के बाद उसके आस पास के एरिया को वो मसलने लगा।

फिर उसने मेरे नितंब के छिद्र में उंगली उस एरिया के आस पास घुमानी शुरू कर दी जहाँ उसने उंगली टिका रखी थी।

दर्द गया कि नहीं?

बहुत ही अजीब बात थी। मेरे पाँव से दर्द एक दम गायब हो गया था। दर्द के जाते ही मैं राहत की साँस ली।

हाँ दर्द चला गया। जल्दी उंगली निकालो अब।

रुको उंगली से अभी मालिश करनी होगी अंदर तब ही पूरी तरह मोच उतरेगी वरना तो थोड़ी देर में फिर से दर्द शुरू हो जाएगा।

झूठ बोल रहे हो तुम।

नहीं सच बोल रहा हूँ। बस थोड़ी देर और लेटी रहो चुपचाप। मुझे अपना काम करने दो वरना गगन कहेगा कि मैंने ठीक से मोच नहीं उतारी।

चाचा फिर से मेरी जाँघों पर बैठ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ।

क्या बोलती हो। कर दूँ न मालिश। चाचा ने मेरे नितंब में धँसी उंगली को हल्का सा हिलाते हुए कहा।

उसकी उंगली की हरकत से मेरा छिद्र खुद ब खुद सिकुड़ने और फूलने लगा।

तुम्हारी गांड तो तैयार है। तुम ही नखरे कर रही हो। देखो कैसे बार बार मेरी उंगली को जकड़ रही है।

मैं शर्म से पानी पानी हो गई। आ..आ..ऐसा कुछ भी नहीं है समझे।

अच्छा ये बताओ मालिश करूँ कि नहीं। चाचा ने बेशर्मी से पूछा।

जैसे कि मेरे मना करने से तुम रुक जाओगे। अब तक क्या पूछ कर किया तुमने मुझसे? जो अब करोगे।

हाँ ये तो है। ये मैं गगन के कहने पे कर रहा हूँ।

गगन ने क्या यहाँ उंगली डालने को कहा था।

कहा तो नहीं था पर तुम्हारी मोच उतारने के लिए मुझे डालनी पड़ी। और अगर मोच दुबारा नहीं चाहती तो चुपचाप मुझे मालिश करने दो इस छेद की।

जल्दी करो जो करना है। मैं झल्ला कर बोली।

मरी जा रही हो मजे लेने के लिए और नखरे इतने दिखा रही हो।

चाचा ने बायें हाथ से मेरे गुम्बडों की दरार को चौड़ा कर दिया और जोर जोर से अपनी उंगली मेरे छिद्र में घिसने लगा। कुछ देर तक तो मैं चुपचाप पड़ी रही। मगर ना जाने क्यों मेरे मुँह से धीमी धीमी सिसकियाँ निकलने लगी। जब मैं उत्तेजित होती हूँ तो खुद को रोक नहीं पाती हूँ। गगन के साथ मैं खूब चिल्लाती हूँ। मगर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उस वक्त क्यों सिसकियाँ ले रही थी। शायद मेरे पीछले छिद्र को आनंद मिल रहा था। जो भी हो ये बात तय थी कि मैं मदहोश होती जा रही थी।

नहीं बस.... बस..... रुक..... जाओ...आआह्ह्ह...ऊऊह्ह्ह मेरी योनि ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया था।

मजा आ रहा है न। ये मस्त गांड इसी मजे के लिए मिली है तुम्हें और तुम नखरे करती हो। चाचा ने इंडेक्स फिंगर के साथ अपनी मिडिल फिंगर भी मेरे छिद्र में डाल दी और बोला, अब और ज्यादा मजा आएगा।

रुक जाओ देहाती आआह्ह्ह।

पर देहाती लगा रहा। उसकी उंगलियाँ बहुत तेजी से मेरे पीछले छिद्र में अंदर बाहर हो रही थी और छप छप की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। एक तरह से उंगलियों से देहाती मेरे साथ नितंब मैथुन कर रहा था। लेकिन मेरे लिए शर्म की बात ये थी कि मैं बहकती जा रही थी।

अचानक चाचा रुक गया। उसने धीरे से मेरे छिद्र से उंगलियाँ निकाल ली। मैं वहाँ बेहोश सी पड़ी थी। मेरी साँसें बहुत तेज चल रही थी। आँखों के आगे अंधेरा सा छा रहा था।

चाचा ने मेरे नितंब के गुम्बडों को फैलाया और मेरे छिद्र पर थूक गिरा दी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कर रहा है। मुझे होश जब आया जब मुझे अपने नितंब के छिद्र पर कुछ मोटी सी चीज महसूस हुई। उस मोटी सी चीज ने मेरे छिद्र के आस पास के बहुत बड़े एरिया को घेर लिया था।

य...य...तो वो है। मुझे ख्याल आया और मैं छटपटाने लगी।

हटो पीछे...तुमने तो हद कर दी है आज। मैंने पीछे गर्दन घुमा कर कहा। मेरे छटपटाने से उसका लिंग मेरे छिद्र से हट गया था और अब मेरे नितंबों के ठीक ऊपर मेरी आँखों के सामने झूल रहा था।

ओह माय गॉड ये क्या है?

लुंड है और क्या है...गगन का नहीं देखती क्या? चाचा का लिंग गगन के लिंग से दोगुना लंबा था और मोटाई भी उस से काफी ज्यादा थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि लिंग इतना भीमकाय भी हो सकता है। लिंग का सुपाड़ा पूरे लिंग के मुकाबले कुछ ज्यादा ही मोटा था। लिंग के नीचे देहाती के अंडकोष भी बड़े थे जो कि घने काले बालों में छुपे थे।

इतना बड़ा कैसे हो सकता है तुम्हारा।

तुम्हारी आँखों के सामने है…छू कर देख लो….हाहाहा चाचा बेशर्मी से हँसने लगा।

शट अप। तुम क्या करने जा रहे थे।

कुछ नहीं इतनी सुंदर गांड है तुम्हारी। मेरे इस बेचारे लुंड को दर्शन करवा रहा था। इसने आज तक ऐसी गांड नहीं देखी।

मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया। किसी ने भी आज तक मुझे ऐसी बात नहीं बोली थी।

देखो बहुत हो गया। हटो अब। मेरे पाँव का दर्द जा चुका है।

थोड़ी देर और रुक जाओ। बस थोड़ी सी मालिश बाकी है तुम्हारी।

मुझे और मालिश नहीं करवानी।

नहीं ये जरूरी है। दर्द फिर से आ गया तो।

आ जाने दो। देखा जाएगा। मैं खूब समझ रही हूँ तुम क्या करना चाहते हो। वो मैं नहीं होने दूँगी।

पता है मुझे। गगन की बीवी के साथ मैं भी ऐसा कुछ नहीं करूँगा। यकीन करो मैं ये अंदर नहीं डालूँगा।

तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है तुमने रख तो दिया था मेरे वहाँ अभी।

वो बस इसे एक बार तुम्हारी खूबसूरती का अहसास दिलाना चाहता था।

खूब समझती हूँ मैं तुम्हारे इरादे।

मैं हाथ से अपना काम कर लूँगा। बाहर रहने दो इसे।

नहीं....

अगर दुबारा मैं इसे तुम्हारे छेद पर रखूँ तो तुम तुरंत मुझे हटा देना। मैं हट जाऊँगा।

चाचा ने दोनों उंगलियाँ वापस मेरे नितंब के छिद्र में डाल दी और अपने बायें हाथ से अपने मोटे लिंग को हिलाने लगा। चाचा कुछ इस तरह से मेरी तरफ देख रहा था कि मैंने शर्म से अपनी नजरें घुमा ली। मैंने वापस अपना सर घुमा कर बिस्तर पर टिका दिया। मेरे नितंब के छिद्र में घूम रही चाचा की उंगलियाँ फिर से मुझे कुछ मजबूर सा कर रही थी और मैं खोती जा रही थी। तुरंत एक और ऑर्गेज्म ने मुझे घेर लिया और मैं जोर से चिल्ला कर झड़ गई।

कोई आधा घंटा ये सब चलता रहा। मुझे उसके हाँफने की भी आवाजें आ रही थी। अचानक मेरा मोबाइल बज उठा। मैं उठाना नहीं चाहती थी पर फोन गगन का था इसलिए उठाना पड़ा।

ह...हैलो।

क्या हुआ निधि।

क...क..कुछ नहीं।

मोच ठीक हुई कि नहीं।

हाँ हो गई।

इधर मैं बातों में लगी थी उधर चाचा ने मेरे छिद्र से उंगलियाँ निकाल ली थी और मेरे नितंब को अपने बायें हाथ से चौड़ा कर रखा था। बस सुकून ये था कि उसने वो मेरे वहाँ नहीं रखा था।

तुम्हें बेल नहीं सुनाई दी क्या कब से बजा रहा हूँ। दरवाजा खोलो। मैं बाहर खड़ा हूँ बारिश में।

क...क...क्या तुम बाहर खड़े हो।

तभी मुझे अपने पीछले छिद्र पर पानी की तेज धार सी महसूस हुई। चाचा ने ढेर सारा वीर्य मेरे छिद्र पर गिरा दिया था। दो उंगलियों के अंदर बाहर होने से मेरा छिद्र खुला हुआ था इसलिए काफी मात्रा में चाचा का गर्म गर्म वीर्य मेरे पीछले छिद्र में चला गया। गर्म गर्म वीर्य मेरे अंदर रिस्ता हुआ मुझे महसूस हो रहा था। मैं शर्म और ग्लानि से चकनाचूर होती जा रही थी। ऐसा नहीं होना चाहिए था पर हो गया था।

मैंने तुरंत फोन काट दिया और बोली, गगन आ गया है हटो जल्दी।

चाचा बुरी तरह हाँप रहा था। वो तुरंत मेरे ऊपर से हट गया। मगर हटाते हटाते उसने मेरे दायें गुम्बद पर जोर से चाँटा मारा।

आउच...ये क्या बदतमीजी है। मैं चिल्लाई।

मजा आ गया कसम से हाहाहा। वो हँसता हुआ बाहर चला गया।

मैंने फुर्ती से अपनी पैंटी और सलवार ऊपर चढ़ायी और अपने बाल ठीक करके मुख्य द्वार की और दौड़ी।

इतना टाइम क्यों लगाया तुमने। गगन गुस्से में था।

सॉरी मैं सो गई थी। कपड़े उलझ पुलझ हो रखे थे। चाचा घर में हैं कपड़े ठीक करके ही बाहर आयी हूँ।

हम्म… चाचा जी ने भी बेल की आवाज़ नहीं सुनी।

वो भी शायद सो रहे हैं। और बारिश के शोर में कुछ सुनाई भी तो नहीं दे रहा।

हाँ ये भी है। पर देखा चाचा जी ने ठीक कर दी न तुम्हारी मोच।

चाचा का वीर्य जो मेरे छिद्र से बाहर रह गया था वो टपकता हुआ मेरी जाँघों तक आ गया था। मुझे बहुत अनकम्फर्टेबल फील हो रहा था। मेरा सारा ध्यान टपकते वीर्य पर ही था। इसलिए गगन ने क्या कहा मुझे सुना ही नहीं।

अरे कहाँ खो गई। गगन ने मुझे कंधे से झकझोर कर कहा।

वो सो कर उठी हूँ न इसलिए।

मैं कह रहा था कि देखा चाचा जी ने मोच उतार दी न।

हाँ उतार तो दी पर.....

पर क्या। अब मैं कैसे कहती कि चाचा ने मोच के बहाने मेरे साथ क्या किया।

कैसे बताती गगन को कि चाचा ने अपना वीर्य मेरे नितंब में डाल दिया है।

नहीं बता सकती थी। धीरे धीरे मुझे होश आ रहा था और मैं शर्म और ग्लानि से मरी जा रही थी। मुझे चाचा का वीर्य अभी तक मेरे अंदर महसूस हो रहा था और मैं मन ही मन उसे बहुत गालियाँ दे रही थी।

पर क्या निधि।

कुछ नहीं आओ तुम्हें गर्मा गर्म चाय बना कर देती हूँ। मैंने बात को टालने की कोशिश की। मैंने गगन को ड्राइंग रूम में ही बैठा दिया क्योंकि बेडरूम में बिस्तर की हालत ठीक नहीं थी। बिस्तर की चादर बुरी तरह बिखरी हुई थी जैसे कि उस पर कबड्डी हुई हो। चादर का बड़ा हिस्सा मेरी योनि के रस से भीगा हुआ था। बेडरूम में चाचा के वीर्य की स्मेल भी फैली हुई थी क्योंकि शायद वीर्य की कुछ बूँदें कमीने ने चादर पर भी गिरा दी थी। ऐसे में गगन को बेडरूम में ले जाना ठीक नहीं था। वो वैसे ही दरवाजा देरी से खोलने को लेकर सवाल जवाब कर रहे थे। इस सब उधेड़बुन में मुझे टॉयलेट जाकर चाचा द्वारा मेरे ऊपर गिरायी गई गंदगी को साफ करने का मौका ही नहीं मिला। मैं अपने अंदर और बाहर देहाती का वीर्य लिए घूम रही थी। वैसे तो मैं चाय बना रही थी किचन में मगर मैं बार बार किचन से बाहर आकर देख रही थी कि कहीं गगन बेडरूम में न चला जाए। बेडरूम में कैमरा भी लगा था। उसे लेकर भी मैं बहुत परेशान थी। कैमरा मैंने चाचा का पर्दाफाश करने के लिए लगाया था। मगर अब मैं रिकॉर्डेड क्लिप गगन को नहीं दिखा सकती थी। उसमें मेरी सिसकियाँ भी रिकॉर्ड हो गई थी और मेरी वो चीखें भी रिकॉर्ड हो गई थी जो कि मैं हर चरम के वक्त करती थी।

मैं गगन के लिए चाय लेकर आयी तो चाचा भी अंगड़ाई लेता हुआ अपने कमरे से बाहर आ गया।

अरे गगन बेटा तुम आ गए, निधि बेटी एक कप चाय मेरे लिए भी लेती आओ।

अभी लाती हूँ। मैं चाचा को गुस्से में घूरती हुई वापस किचन में चली गई। मैंने चाय गैस पर रखी और तुरंत बेडरूम में जाकर सबसे पहले बिस्तर की बेडशीट बदली। उसके बाद मैंने कैमरे से रिकॉर्डेड क्लिप डिलीट की। अपने नितंब की सफाई करने का टाइम मेरे पास नहीं था। ये सब काम करके मैं वापस किचन में आयी तो चाय उबल रही थी। मैंने चाय कप में डाली और चाय लेकर ड्राइंग रूम की तरफ चल दी।

चाचा जी आपने भी बेल नहीं सुनी...इतनी गहरी नींद आ गई थी क्या आपको।

वो बेटा निधि को मोच उतारते उतारते बहुत थक गया था मैं। नसें बहुत बुरी तरह एक दूसरे पर चढ़ी थी।

चाचा जी चाय। मैंने उनकी बातों को काटते हुए कहा।

दूधो नहाओ पुटो फलो चाचा ने चाय का कप लेते हुए कहा। उसकी नजरें मेरी नजरों पर गड़ी थी। अजीब सी बेशर्मी थी उसकी आँखों में। मुझे अपनी नजरें झुकाने पर मजबूर कर दिया था उसकी नजरों ने।

चाचा जी जो भी हो...मान गए आपको। आपने मोच उतार ही दी। वैसे कैसे उतारते हैं आप मोच...मुझे भी सिखा दीजिए...दुबारा कभी जरूरत पड़ी तो मैं मोच उतार दूँगा निधि की।

निधि को सब सीखा दिया है मैंने। तुम इस से पूछो....

हाँ तो निधि बताओ क्या सीखा तुमने?

म...म...मैंने कुछ नहीं सीखा। म...मेरा मतलब मैं सब भूल गई। मैं विचलित हो गई।

भूल गई। कोई बात नहीं कल फिर से सिखा दूँगा तुम्हें। गर्म पानी तो याद है न तुम्हें। बताओ कहाँ डाला था मैंने।

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मेरा पीछला छिद्र अपने आप सिकुड़ने फूलने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो मुझे वहाँ चाचा के वीर्य के होने का अहसास दिला रहा हो। मुझसे कुछ बोले नहीं बन रहा था।

गर्म पानी मैं कुछ समझा नहीं। गगन ने आश्चर्य भाव में पूछा।

बताऊँगा पहले निधि को जवाब देने दो। कहाँ डाला था गर्म पानी मैंने निधि बेटी।

मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी क्योंकि वो गर्म पानी अभी भी मेरे नितंब के अंदर था। चाचा जानबूझ कर ऐसी बातें कर रहा था। मुझे गुस्सा आने लगा था। मैंने बात को संभालते हुए कहा, ओह हाँ पाँव पर टखने के पास ही तो डाला था आपने पानी।

हम्म..तुम्हें तो सब याद है। शाबास। चाचा ने कहा।

चाचा जी मुझे भी तो कुछ बतायें।

वो दरअसल मोच उतारने के बाद थोड़ा गर्म निधि की नसों पर डाला था। उस से आराम बना रहेगा। क्यों निधि बेटी आराम है कि नहीं।

जी हाँ है। मैं बोल कर तुरंत वहाँ से खिसक ली।

मैं बेडरूम में घुसी ही थी कि गगन भी मेरे पीछे पीछे बेडरूम में आ गए और मुझे बाहों में भर लिया।

तुम्हारे ऑफिस से जल्दी आया हूँ। इस बारिश ने आग लगा रखी है तन बदन में।

आओ कुछ हो जाए।

क्या हुआ आज तुम्हें...ये बारिश का असर है या कुछ और।

तुम बहुत प्यारी लग रही हो।

गगन ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे ऊपर लेट गए। उन्होंने मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। कब मेरा नाड़ा खुला और कब उनका लिंग मुझ में समा गया पता ही नहीं चला। हमेशा की तरह गगन ने संभोग का असीम आनंद दिया मुझे। उनके हर धक्के पर मेरी सिसकियाँ निकल रही थी। मैं 4 बार झड़ी गगन के साथ। गगन ने अपने चरम पर पहुँच कर मेरी योनि को अपने वीर्य से लबालब भर दिया। कुछ देर हम यूँ ही पड़े रहे। लेकिन मुझे किचन में खाना भी बनाना था। इसलिए मैं गगन को निर्वस्त्र ही छोड़ कर बाहर आ गई। जब मैं किचन में जा रही थी तब मुझे अचानक ये ख्याल आया कि उस वक्त मेरे अगले पीछले दोनों छिद्रों में वीर्य है। आगे मेरे पति का वीर्य है और पीछे कमीने देहाती का वीर्य। मैंने तुरंत नहाने का फैसला किया और बाथरूम में घुस गई।

चाचा को संडे को गाँव वापस जाना था। सैटरडे को हॉस्पिटल में चेक अप करवाकर वो जाने की बात कर रहा था। पर गगन ने उसे एक दिन और रुकने को मना लिया। अभी बुधवार चल रहा था। पूरे 3 दिन बाकी थे अभी चाचा की रवानगी में। मैं गगन की अनुपस्थिति में उसके साथ नहीं रहना चाहती थी। इसलिए मैंने रात को जिद करके गगन को 3 दिन की छुट्टी लेने के लिए मना लिया। गगन ने ये बात बड़े खुश हो कर चाचा को बतायी।

चाचा जी मैं घर पर ही रहूँगा तीन दिन। आपको ज्यादा वक्त नहीं दे पाया था काम के कारण। लेकिन अब आपको शिकायत नहीं रहेगी।

चाचा का चेहरा ये सुन कर लटक गया था। मैं चुपचाप खड़ी मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

जब गगन बेडरूम में थे तो मौका देख कर चाचा चुपचाप किचन में आया और धीरे से बोला, तुमने रोका है न गगन को घर पर।

जी हाँ मैंने सोचा उनको टाइम ही नहीं मिलता आपसे ज्यादा बात करने का। इसलिए उन्हें तीन दिन की छुट्टी लेने को कहा।

मेरा मजा खराब होगा तो तुम्हारा कौन सा बच जाएगा। मजा तो तुम भी लेती हो न मेरे साथ।

ज्यादा बकवास मत करो और मुझे खाना बनाने दो। मैंने कठोरता से कहा।

चाचा अपना सा मुँह लेकर चला गया। उसकी हालत देखने वाली थी। अब मैं घर में जानबूझ कर चाचा को जलाने के लिए मटक मटक कर घूम रही थी। चाचा घूर घूर कर मुझे देखता था मगर कुछ कर नहीं पाता था। मुझे उसे इस तरह से सताना अच्छा लग रहा था। उसकी हालत देखते ही बनती थी।

वो ड्राइंग में बैठा होता था तो मैं जानबूझ कर अपनी कमर लचकाती हुई उसके सामने से निकलती थी। बेचारा बस आह भर कर रह जाता था।

तीन दिन यूँ ही बीत गए। सैटरडे को हॉस्पिटल से आकर चाचा ने गगन से कहा,

बेटा कल सुबह 11 बजे की ट्रेन है। मन तो नहीं कर रहा यहाँ से जाने का पर जाना ही पड़ेगा।

मैं भी उस वक्त ड्राइंग रूम में गगन के साथ ही बैठी थी।

कोई बात नहीं चाचा जी। जब भी मौका लगे दुबारा जरूर आना यहाँ। ये आपका ही घर।

गाँव से निकलने का वक्त ही नहीं मिलता बेटा। खेती बाड़ी में ही उलझा रहता हूँ।

तुम दोनों आओ कभी गाँव। निधि बेटी को भी गाँव दिखाओ...अच्छा लगेगा इसे।

जरूर चाचा जी। कभी मौका मिला तो जरूर आएंगे। गगन ने कहा।

अच्छा मैं थोड़ा आराम कर लेता हूँ। बहुत थक गया आज मैं। बोल कर चाचा अपने रूम में चला गया।

शाम को जब मैं किचन में खाना बना रही थी तो चाचा मौका देख कर किचन में आया और धीरे से बोला, मन कर रहा है तुझें छूने का। पर चलो कोई बात नहीं। खुश रहना हमेशा।

मैं चुपचाप रोटियाँ सेंकने में लगी रही। मैंने बदले में कुछ नहीं कहा। कुछ कहने की जरूरत भी नहीं थी।

रात को डिनर के बाद मैं किचन के काम खत्म करके बेडरूम में घुसी तो गगन खर्राटे ले रहे थे। आज वो कुछ ज्यादा ही जल्दी सो गए थे जबकि अभी सिर्फ 11 ही बजे थे। मैं भी सोने के लिए लेट गई। पर मेरी आँखों से नींद गायब थी। मैं बार बार करवटें बदल रही थी। मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। 11 से 12 बज गए पर मेरी आँख नहीं लगी। गगन मजे से सोये पड़े थे। अचानक मुझे टॉयलेट का प्रेशर महसूस हुआ तो मैं धीरे से उठ कर बेडरूम से बाहर आ गई। टॉयलेट की तरफ जाते वक्त मैं अचानक चोंक कर रुक गई। ड्राइंग रूम में अंधेरे में सोफे पर चाचा बैठा था। उसे देखते ही मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। मैं वापस बेडरूम में चले जाना चाहती थी। मगर मन के एक कोने से आवाज़ आयी, जाते जाते एक मौका दे दो बेचारे को खुद को छूने को। और मेरे कदम टॉयलेट की तरफ बढ़ते चले गए।

चलते चलते मेरे पाँव डगमगा रहे थे। टॉयलेट में घुसते ही मैंने दरवाजा अंदर से अच्छे से बंद कर लिया। मैं कोई मौका नहीं दूँगी इस देहाती को। मैं हेट हिम। मैंने खुद से कहा।

मैं खुद को रिलीव करके टॉयलेट से बाहर निकली तो चाचा टॉयलेट के दरवाजे के पास ही खड़ा था। उसे अपने इतना करीब देख कर मैं घबरा गई। उसके इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। मैं बिना कुछ कहे अपने कमरे की तरफ चल दी।

मगर चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया।

थोड़ी देर रुक जा।

छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्ला कर गगन को बुला लूँगी।

पागल मत बनो। चलो थोड़ी देर बातें करते हैं बैठ कर।

मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी छोड़ो मेरा हाथ।

रुक जाओ न। इतने नखरे भी ठीक नहीं।

बेशरम हो तुम एक नंबर के। छोड़ो मेरा हाथ वरना मैं चिल्लाऊँगी।

तुम नहीं चिल्लाओगी मुझे पता है। सब नाटक है तुम्हारे। चाचा ने मेरे हाथ को जोर का झटका देते हुए कहा। अगले ही पल मैं उसकी बाहों में थी और आज़ाद होने के लिए छटपटा रही थी।

छोड़ दो मुझे। मैं गगन को बुला लूँगी तो क्या इज्जत रह जायेगी तुम्हारी।

कल मैं जा रहा हूँ निधि। कल से तुम्हें परेशान नहीं करूँगा। तुमने गगन को घर पर रोक कर पहले ही मुझ पर बहुत सितम ढा लिए हैं। अब और मत सताओ।

मैं तड़प रहा हूँ तुम्हारे लिए। मैं विनती करता हूँ तुमसे, बस आखिरी बार थोड़ा सा मजा ले लेने दे। बस थोड़ी सी देर रुक जाओ।

किस हक से रोक रहे हो तुम मुझे। तुम्हारा कोई हक नहीं है मुझ पर।

आशिक हूँ मैं तुम्हारा। दीवाना हूँ तुम्हारा। तुम्हें देखते ही लट्टू हो गया था तुम पर। तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की मैंने आज तक नहीं देखी।

इतनी ही प्यास है तुम्हें तो शादी क्यों नहीं कर लेते। क्यों दूसरों की बीवियों पर नजर रखते हो।

शादी हो नहीं पायी कभी। दो लड़कियों से बात चली थी पर वो शादी से पहले ही भगवान को प्यारी हो गई।

क्यों क्या हुआ ऐसा।

एक को साँप ने काट लिया और एक के ऊपर बिजली गिर गई। उसके बाद कोई रिश्ता ही नहीं लाया मेरे घर। लोग मुझे मनहूस समझने लगे।

फिर भी तुमने कुछ लड़कियाँ तो फँसायी होंगी। उनमें से किसी से शादी कर लेते।

तुम्हें कैसे पता मैंने लड़कियाँ फँसायी। तुमने मेरी डायरी पढ़ी क्या?

न...नहीं मैंने कोई डायरी नहीं पढ़ी।

झूठ क्यों बोलती हो। पढ़ी है तुमने मान लो।

पहले तुम मुझे छोड़ो।

थोड़ी देर मेरी बाहों में रहो न...बस थोड़ा सा ही तो वक्त है मेरे पास। जल्दी सुबह हो जायेगी और मैं चला जाऊँगा। बोलो पढ़ी थी न तुमने मेरी डायरी। चाचा ने मुझे अपने सीने से और ज्यादा कसते हुए कहा।

हाँ पढ़ी थी...बहुत ही गंदी गंदी बातें लिखी हैं उसमें आपने।

जो हुआ वो लिख दिया।

तो आप अपनी भाभी के पास जाओ न। क्यों मुझे परेशान करते हो।

भाभी अब नहीं देती। वैसे भी वो 4 बच्चों की माँ बन चुकी है और सेक्स में रुचि नहीं लेती। उसने चूत देनी बिल्कुल बंद कर दी है।

मेरे सामने गंदी भाषा मत बोलो। और छोड़ो मुझे नहीं तो चिल्लाऊँगी मैं अब सच में।

चाचा ने मेरी बात की परवाह न करते हुए अपने दोनों हाथों से मेरे दायें बायें दोनों नितंबों को थाम लिया और उन्हें कुचलने लगा।

थोड़ी देर ये मस्त गांड तो मसल लेने दे।

तुम मेरे साथ जबरदस्ती करते आये हो। हट जाओ तुरंत नहीं तो गगन को आवाज़ दे कर बुला लूँगी अभी।

पागल मत बन छोरी। ले लेने दे मुझे मजा थोड़ी देर। बरसों बाद मुझे ये सुख नसीब हुआ है। तुझें पता है 2 साल से मुझे कोई नहीं मिली।

कोयल का क्या हुआ। उसका भी तो जिक्र था डायरी में।

कोयल की तो बस उसी दिन खेत में मारी थी। मस्त गांड थी साली की। मगर बाद में उसने दी ही नहीं।

क्यों ऐसा क्या हो गया था? पता नहीं क्यों मैं उसके साथ बातें कर रही थी। वो बेशर्मी से मेरे नितंब के दोनों गुम्बडों को मसल रहा था और गंदी गंदी बातें बोल रहा था। फिर भी मैं उसके साथ बातें कर रही थी। पता नहीं मुझे क्या हो रहा था।

मैंने बहुत कोशिश की उसे पटाने की मगर वो नहीं मानी। बोली कि तुम्हारा लुंड बहुत बड़ा है। मैं इसे दुबारा अपनी गांड में नहीं ले सकती।

झूठ ऐसा बोल ही नहीं सकती कोई लड़की।

तेरी कसम उसने ऐसा ही बोला था। वो छोटा लुंड लेकर ही खुश थी। बड़े लुंड का दर्द सहने की उसमें हिम्मत नहीं थी। मगर जो भी हो साली की गांड बहुत मस्त थी।

एक बात पूछूँ।

हाँ बोलो।

क्या मेरी ये सच में बहुत सुंदर है। मैं ना जाने क्यों ऐसा बोल गई। बाद में बहुत पछतायी मैं।

मेरी ये क्या...मैं कुछ समझा नहीं।

समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोलूँ अब।

तुम जिसके साथ खेल रहे हो उसकी बात कर रही हूँ।

मैं तो तुम्हारे साथ खेल रहा हूँ। पता नहीं क्या कहना चाहती हो।

अरे नितंब की बात कर रही हूँ।

वो क्या होता है।

छोड़ो मुझे तुम। बहुत हो गया।

अरे रुको न निधि। गुस्सा क्यों होती हो। बताओ न नितंब क्या होता है।

ग...गांड की बात कर रही थी मैं।

ओह...इतनी घुमा फिरा कर बात क्यों की तुमने। साफ साफ पूछती न कि मेरी गांड कैसी है।

मैं शर्म से पानी पानी हो गई।

निधि तुम्हारी गांड की तारीफ में जितना कहा जाए उतना कम है। इतनी चिकनी और चमकदार गांड मैंने आज तक नहीं देखी। गांड के दोनों हिस्से बड़ी मुस्तैदी से एक दूसरे से चिपके रहते हैं। गांड के छेद तक पहुँचने का मौका ही नहीं देते। बहुत प्यारी गांड है तुम्हारी। एक बात पूछूँ।

पहले मुझे छोड़ दो तुम। बहुत हो गया। मैंने चाचा की बाहों में छटपटाते हुए कहा।

क्यों क्या तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा। थोड़ी सलवार नीचे कर लो तो ज्यादा मजा आएगा।

पागल हो गए हैं आप। गगन अंदर सो रहा है।

थोड़ी देर की तो बात है। कौन सा सारी रात हम ये सब करेंगे। मुझ पर तरस खाओ। गाँव वापस जाकर फिर से तन्हाई ही तन्हाई है मेरे लिए। तुम्हारे शिवा कोई नहीं मेरे पास अपनी कामुक प्यास बुझाने के लिए।

क्या तुम्हें पूरी दुनिया में मैं ही मिली थी। किसी और को ढूंढ लो। मैं अपने पति के साथ बेहद खुश हूँ।

तुम खुश रहो गगन के साथ यही दुआ है मेरी। भगवान तुम दोनों की जोड़ी बनाये रखे। बस मुझ पर तरस खा कर थोड़ी देर आज मुझे अपने नारी यौवन का मजा ले लेने दे। कल तो मैं जा ही रहा हूँ। तुम्हें बिल्कुल परेशान नहीं करूँगा कल से। आज बस आखिरी बार मुझे थोड़ा सा मजा ले लेने दे।

बातें बनाने में तो माहिर हो तुम। तुम जबरदस्ती बहुत मजे ले चुके हो मेरे साथ। मुझे तुमसे नफरत है देहाती। मैं उसे उसकी औकात दिखा रही थी।

कोई बात नहीं पर बस आखिरी बार मुझे अपनी मस्त जवानी के मजे लूट लेने दे।

देखो कैसे गिड़गिड़ा रहे हो आज। क्योंकि गगन घर हैं नहीं तो तुम अपनी मनमानी करते थे। अब करके दिखाओ मनमानी।

उस सब के लिए मुझे माफ कर दे बेटी।

बेटी मत बोलो मुझे। एक तरफ मेरे नितंब मसल रहे हो दूसरी तरफ बेटी बोलते हो। शर्म आनी चाहिए मुझे।

तू कुछ भी बोल बस आज आखिरी बार मुझे थोड़ा सा मजा ले लेने दे। चल ये कमीज़ उतार दे।

कमीज़ उतार दूँ। पागल हो क्या।

उतार दे न मेरे लिए। चाचा ने मुझे बाहों से आज़ाद करके मेरी कमीज़ को कस के पकड़ लिया। मैं उसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी पर वो मान ही नहीं रहा था।

देखो जबरदस्ती करोगे तो गगन को आवाज़ लगा दूँगी अभी।

उतारने दे न निधि। मत तड़पा मुझे इतना। चाचा ने फिर जोर आजमायिश करके मेरी कमीज़ उतार दी। मैं अब सिर्फ ब्रा और सलवार में थी। शुक्र है ड्राइंग रूम में अंधेरा था वरना तो मैं शर्म से मर जाती।

चाचा ने मुझे दीवार से सटा दिया।

अगर गगन आ गया तो आपकी खैर नहीं।

बार बार धमकी दे रही हो बुलाओ न उसे। चाचा ने मेरे दोनों उभारों को जोर से दबाते हुए कहा। मेरी चीख निकलते निकलते बची।

इतनी जोर से क्यों दबाया।

इनको जोर से ही दबाया जाता है मेरी रानी। चल ये ब्रा भी उतार दे।

नहीं.... मगर मेरी ब्रा उतर चुकी थी।

चल मेरे कमरे में चलते हैं। आराम से बिस्तर पर मजे करेंगे।

नहीं मैं कहीं नहीं जाऊँगी। वैसे भी रात बहुत हो चुकी है तुम अब सो जाओ। मुझे भी नींद आ रही है।

चाचा जैसे मेरी बात सुन ही नहीं रहा था। वो तो मेरे नंगे उभारों से खेलने में लगा हुआ था। वो तरह तरह से मेरे नाज़ुक उभारों को दबा रहा था। उसकी इन हरकतों के कारण मेरे निप्पल्स तन कर हार्ड हो गए थे। जब उसने अपना मुँह मेरे दायें उभार की तरफ बढ़ाया तो मैंने उसे रोक दिया नहीं अपना गंदा मुँह मत लगाना इन पर। ये सिर्फ गगन के लिए हैं। छूने को मिल रहा है उतना क्या काफी नहीं है तुम्हारे लिए। बेवकूफ देहाती। मुझे उसके हाथों की छेड़छाड़ ही तो ज्यादा पसंद थी। इससे ज्यादा मैं करना चाहती थी। मगर देहाती कुछ और ही इरादे रखता था। उसने मेरे दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए और मेरे दायिन उभार को मुँह में ले लिया। मैं काँप उठी। पहली बार गगन के शिवा कोई और मेरे उभार चूस रहा था।

हट जाओ.... अब तुम हद से ज्यादा कर रहे हो...अपनी औकात में रहो। तुम नहीं रुके तो मैं सच में गगन को बुला लूँगी।

मगर चाचा नहीं रुका और जोर शोर से मेरे दोनों नंगे उभारों को चूसता रहा।

कब मेरी सिसकियाँ छूटने लगी मुझे पता ही नहीं चला।

श्ह्ह धीरे आवाज़ करो गगन उठ जाएगा। चाचा ने मेरे दायें उभार के निप्पल को मुँह से निकाल कर कहा। अब मेरे हाथ आज़ाद थे मगर फिर भी मैं चाचा को नहीं हटा पा रही थी। चाचा एक उभार को हाथ से दबाता था और दूसरे को चूसता था। मैं मदहोश होती जा रही थी। इसका असर मेरी योनि पर भी हो रहा था जो कि उत्तेजित हो कर पानी में तरबतर हो गई थी। मेरे एक मन को ये सब पसंद आ रहा था और दूसरे मन को शर्मिंदगी और ग्लानि हो रही थी। मैं चाचा को धक्के दे कर अपने बेडरूम में भाग जाना चाहती थी पर मेरे हाथ पाँव काम ही नहीं कर रहे थे। मैं बेहोश सी हो गई थी। मुझे होश तब आया जब मुझे अपनी सलवार के नाड़े पर चाचा के हाथ महसूस हुए।

नहीं रुको....

उतारने दे न। तेरी चूत और गांड भी चाट लेने दे थोड़ी सी।

तुम पागल हो गए हो क्या देहाती। पास वाले कमरे में मेरा पति सो रहा है और तुम मेरे कपड़े उतार रहे हो।

चल फिर मेरे कमरे में चलते हैं।

नहीं...मैं वहाँ नहीं जाऊँगी।

उतार ले न सलवार भी। बस थोड़ी सी देर की बात है।

मरी तो मैं भी जा रही थी। मेरे नितंब और योनि उसके हाथों की छूवन के लिए तरस रहे थे। पर ड्राइंग रूम में सलवार उतारना मुझे अजीब लग रहा था।

सलवार के ऊपर से ही कर लो जो करना है।

सलवार के ऊपर से उंगली कैसे डालूँगा तेरी चूत में। चाचा ने एक झटके में नाड़ा खोल दिया। सलवार फर्श पर गिर गई। चाचा ने नीचे बैठ कर मेरी सलवार मेरी टाँगों से आज़ाद कर दी। अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। चाचा बैठे बैठे ही मेरी जाँघों को चूमने लगा। मैंने चाचा के सर पर जोर से थप्पड़ मारा उठो ये क्या कर रहे हो। मैंने इजाज़त दी क्या ये करने की। तुम देहाती भी न उल्लू होते हो एक नंबर के।

कुछ भी बोल पर मुझे आज मजे करवा दे।

गगन आ गया न तो तुम्हारे मजे लग जायेंगे।

उसकी बात मत कर अब। चाचा ने मेरी पैंटी में हाथ डाल दिया और मेरी योनि पर हाथ फिराने लगा। एक हाथ से वो मेरी पैंटी को नीचे सरकाने लगा तो मैं गिड़गिड़ायी, कम से कम ये तो रहने दो। इसे उतारने की क्या जरूरत है।

मुझे खुशी मिल जायेगी और कुछ नहीं। पूरी नंगी लड़की के साथ जो मजा है वो कहीं नहीं। मेरी पैंटी भी मेरे शरीर से अलग हो गई। अब मैं थर थर काँप रही थी। मुझे डर लगने लगा था। ड्राइंग रूम में मैं पूरी नंगी चाचा के हाथों का खिलौना बन रही थी। मेरे मन के किसी कोने में शायद बस अपने नितंब और योनि को मसलवाने की इच्छा थी। वो भी कपड़े पहने हुए। थोड़ा सा सरका कर चाचा अपनी उंगलियाँ अंदर डाल देता तो बात बन जाती। बस इतनी ही इच्छा थी बस इतनी ही तड़प थी जिसे लेकर मैं अपने बेडरूम में करवटें बदल रही थी। चाचा कल जा रहा था बस आखिरी बार उसके हाथों में अपनी योनि और नितंब सौंप देना चाहती थी। पर अब बात कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। मैं सोच में डूबी पड़ी थी। अचानक मैं सिहर उठी। मेरा ध्यान टूट गया। चाचा ने मेरी योनि में एक साथ 2 उंगलियाँ डाल दी थी।

बहुत चिकनी हो रखी है चूत तुम्हारी उंगलियाँ बड़ी जल्दी लेरही है।" चाचा ने मेरी योनि में अपनी उंगलियाँ और गहराई तक डालते हुए कहा। उसकी बातों से मेरी शर्मिंदगी और बढ़ गई, लेकिन मेरे शरीर का एक हिस्सा उसकी हरकतों में खोता जा रहा था। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, और मेरी योनि उसके स्पर्श से और अधिक गीली हो रही थी।

"बस करो, चाचा... ये गलत है... गगन जाग गया तो..." मैंने कमजोर आवाज़ में विरोध करने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ में वह दृढ़ता नहीं थी जो होनी चाहिए थी। मेरे शब्द हवा में तैरते हुए बेकार से लग रहे थे।

"गगन को कुछ नहीं पता चलेगा, निधि। तू बस चुपचाप मजे ले। देख, कितना मजा आ रहा है तुझे।" चाचा ने मेरी योनि में अपनी उंगलियाँ और तेजी से चलानी शुरू कर दी। उसकी उंगलियाँ मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रही थीं, और हर बार जब वह एक खास जगह को छूता, मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ जाती।

मैंने अपने हाथों से दीवार को कसकर पकड़ लिया, जैसे कि उससे मुझे कोई सहारा मिल जाएगा। मेरे पैर काँप रहे थे, और मेरे मन में दो विचार आपस में लड़ रहे थे। एक तरफ मुझे ये सब रोक देना चाहिए था, गगन के पास भाग जाना चाहिए था, लेकिन दूसरी तरफ मेरा शरीर उस आनंद को छोड़ना नहीं चाहता था जो चाचा मुझे दे रहा था।

"देख, कितनी गीली हो गई है तू। ये तो तेरा शरीर सच बोल रहा है। तुझे भी तो ये सब चाहिए।" चाचा ने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकालीं और उन्हें मेरे सामने लहराते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ मेरे रस से चमक रही थीं। मैं शर्म से मर गई, और अपनी नजरें नीचे कर लीं।

"बेशर्म... हट जाओ... ये सब गलत है..." मैंने बुदबुदाते हुए कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में अब कोई ताकत नहीं बची थी।

"गलत-सही की बात छोड़, निधि। बस आज की रात की बात है। कल मैं चला जाऊँगा। फिर तू और गगन अपनी जिंदगी जीना। बस आज मुझे थोड़ा सा और दे दे।" चाचा ने मेरे कंधों को पकड़कर मुझे फिर से अपनी ओर खींच लिया। उसने मेरे नितंबों को फिर से मसलना शुरू कर दिया, और इस बार उसकी उंगलियाँ मेरे पीछले छिद्र की ओर बढ़ने लगीं।

"नहीं... वहाँ नहीं..." मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया। मेरे दिमाग में उस दिन की याद ताज़ा हो गई जब उसने मेरे पीछले छिद्र में उंगली डाली थी। दर्द और आनंद का वह मिश्रण अभी भी मेरे शरीर में गूँज रहा था, और मैं नहीं चाहती थी कि वह फिर से वैसा कुछ करे।

"अच्छा, ठीक है। वहाँ नहीं। लेकिन ये तो कर लेने दे।" चाचा ने मेरी योनि पर फिर से अपनी उंगलियाँ फिरानी शुरू कर दी। इस बार उसने मेरे क्लिटोरिस को हल्के से रगड़ना शुरू किया, और मेरे मुँह से अनायास ही एक सिसकी निकल गई।

"श्ह्ह... धीरे, निधि। गगन जाग जाएगा।" चाचा ने हँसते हुए कहा, और उसकी उंगलियाँ मेरे क्लिटोरिस पर तेजी से चलने लगीं। मेरे शरीर ने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया था। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, और मेरे पैर अब मेरे वजन को संभाल नहीं पा रहे थे।

"बस... बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी बातों का कोई असर नहीं हुआ। चाचा ने मेरे एक उभार को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा, जबकि उसकी उंगलियाँ मेरी योनि में तेजी से अंदर-बाहर हो रही थीं। मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ रहा था। मैं अपने चरम की ओर बढ़ रही थी, और मैं इसे रोक नहीं पा रही थी।

"आआह्ह..." मेरे मुँह से एक जोरदार सिसकी निकली, और मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया। मेरे पैर काँपने लगे, और अगर चाचा ने मुझे अपनी बाहों में न थामा होता, तो मैं शायद फर्श पर गिर जाती।

"देखा, कितना मजा आया तुझे।" चाचा ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक विजेता जैसी खुशी थी। मैं शर्म और ग्लानि से भरी हुई थी, लेकिन मेरे शरीर को अभी भी उसका स्पर्श चाहिए था।

"अब... अब बस करो... मुझे जाने दो..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, और अपनी पैंटी और सलवार उठाने की कोशिश की।

"रुक जा, निधि। अभी तो पूरी रात बाकी है।" चाचा ने मेरी कलाई पकड़ ली और मुझे फिर से अपनी ओर खींच लिया। उसने मेरे नितंबों को फिर से मसलना शुरू कर दिया, और इस बार उसका लिंग मेरी जाँघों से टकरा रहा था। मैं समझ गई कि वह अभी रुकने वाला नहीं है।

"नहीं, चाचा... ये गलत है... गगन..." मैंने फिर से विरोध करने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ अब पूरी तरह से टूट चुकी थी।

"गगन को कुछ नहीं पता चलेगा। चल, मेरे कमरे में चलते हैं। वहाँ आराम से करेंगे।" चाचा ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और अपने कमरे की ओर चल दिया। मैं छटपटाने लगी, लेकिन मेरे शरीर में अब इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं उसका विरोध कर पाऊँ।

उसके कमरे में पहुँचते ही उसने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। कमरे में हल्की सी रोशनी थी, और उसकी आँखों में एक भूख सी दिख रही थी। उसने अपनी कमीज़ और पैंट उतार दी, और अब वह सिर्फ अपने अंडरवियर में था। उसका लिंग पहले से ही तनाव में था, और उसका आकार देखकर मेरे दिल की धड़कन और तेज हो गई।

"चाचा, प्लीज... ये मत करो..." मैंने आखिरी बार गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"कुछ नहीं होगा, निधि। बस थोड़ा सा मजा और। मैं तुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।" चाचा ने मेरे ऊपर झुकते हुए कहा। उसने मेरे दोनों पैर फैलाए और मेरी योनि पर अपना मुँह रख दिया। जैसे ही उसकी जीभ ने मेरी योनि को छुआ, मेरे शरीर में एक और बिजली सी दौड़ गई।

"नहीं... आह्ह..." मैंने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया ताकि मेरी सिसकियाँ बाहर न जाएँ। चाचा की जीभ मेरी योनि के हर हिस्से को चाट रही थी, और वह मेरे क्लिटोरिस पर बार-बार अपनी जीभ घुमा रहा था। मेरे शरीर ने फिर से आत्मसमर्पण कर दिया, और मैं एक और चरम की ओर बढ़ने लगी।

कुछ ही मिनटों में मैं फिर से झड़ गई। मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा शरीर पसीने से तर था। चाचा ने मेरी योनि से अपना मुँह हटाया और मेरे ऊपर लेट गया। उसका लिंग अब मेरी योनि के पास था, और मैं समझ गई कि वह अब और आगे जाना चाहता है।

"नहीं, चाचा... ये नहीं... मैं ये नहीं कर सकती..." मैंने उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरे दोनों हाथ बिस्तर पर दबा दिए।

"शांत रह, निधि। मैं तुझे दुख नहीं दूँगा। बस थोड़ा सा..." चाचा ने मेरी योनि पर अपने लिंग का सुपाड़ा रख दिया। मैं डर से काँपने लगी। उसका लिंग गगन के लिंग से कहीं ज्यादा बड़ा था, और मुझे डर था कि यह दर्द देगा।

"नहीं... प्लीज..." मैंने आखिरी बार कोशिश की, लेकिन चाचा ने मेरी बात नहीं सुनी। उसने धीरे से अपने लिंग को मेरी योनि में प्रवेश करवाना शुरू किया। पहले तो मुझे हल्का सा दर्द हुआ, लेकिन मेरी योनि पहले से ही गीली थी, इसलिए उसका लिंग आसानी से अंदर चला गया।

"आह्ह..." मेरे मुँह से एक सिसकी निकली। चाचा ने धीरे-धीरे अपने लिंग को अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसका लिंग मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मुझे एक अजीब सा आनंद मिल रहा था। मैं जानती थी कि यह गलत है, लेकिन मेरा शरीर अब मेरे काबू में नहीं था।

"देख, कितना मजा आ रहा है तुझे।" चाचा ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने अपनी गति बढ़ा दी, और अब उसके धक्के और तेज हो गए थे। मेरे मुँह से सिसकियाँ निकल रही थीं, और मैं अपने चरम की ओर फिर से बढ़ रही थी।

"आआह्ह... बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन चाचा नहीं रुका। उसने मेरे दोनों उभारों को अपने हाथों से मसलना शुरू कर दिया, और उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर फिरने लगी। मेरे शरीर में एक और तूफान उठा, और मैं फिर से झड़ गई।

चाचा ने अपनी गति और तेज कर दी। मैं समझ गई कि वह भी अपने चरम की ओर बढ़ रहा है। "निधि... मैं... मैं..." उसने हाँफते हुए कहा, और अगले ही पल उसने अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाला और मेरे पेट पर अपना वीर्य गिरा दिया। उसका गर्म वीर्य मेरे पेट पर फैल गया, और मैं शर्म और ग्लानि से भरी हुई वहाँ पड़ी रही।

चाचा मेरे बगल में लेट गया। उसकी साँसें अभी भी तेज थीं। "मजा आ गया, निधि। तू सच में एकदम मस्त है।" उसने हँसते हुए कहा।

मैं चुपचाप वहाँ पड़ी रही। मेरे मन में ग्लानि और अपराधबोध का तूफान चल रहा था। मैंने गगन को धोखा दिया था। मैंने अपने वैवाहिक जीवन को दागदार कर दिया था। लेकिन साथ ही, मेरे शरीर को जो आनंद मिला था, वह भी मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहा था।

"अब... मुझे जाने दो..." मैंने धीरे से कहा और उठकर अपनी पैंटी और सलवार पहनने लगी। चाचा ने मुझे नहीं रोका। मैंने जल्दी से अपनी कमीज़ और ब्रा भी पहनी और बिना उसकी ओर देखे अपने बेडरूम की ओर चल दी।

बेडरूम में गगन अभी भी खर्राटे ले रहा था। मैं धीरे से बिस्तर पर लेट गई, लेकिन मेरी आँखों से नींद कोसों दूर थी। मैं बार-बार सोच रही थी कि मैंने क्या कर दिया। मैंने अपने पति के साथ विश्वासघात किया था। लेकिन साथ ही, चाचा की हरकतों ने मेरे शरीर को जो सुख दिया था, वह भी मेरे दिमाग से नहीं जा रहा था।

सुबह जब मैं उठी, तो चाचा पहले ही उठ चुका था। वह अपना सामान पैक कर रहा था। गगन भी जाग चुका था और चाचा के साथ बातें कर रहा था।

"चाचा जी, इतनी जल्दी जा रहे हैं। थोड़ा और रुक जाते।" गगन ने कहा।

"नहीं बेटा, गाँव में काम पड़ा है। अब तो जाना ही पड़ेगा।" चाचा ने जवाब दिया। उसकी नजरें मुझ पर पड़ीं, और उसने हल्के से मुस्कुरा दिया। मैंने तुरंत अपनी नजरें हटा लीं।

नाश्ते के बाद गगन चाचा को स्टेशन छोड़ने गया। मैं घर पर ही रुक गई। जब वे चले गए, तो मैंने राहत की साँस ली। चाचा अब मेरे जीवन से चला गया था, लेकिन उसने जो दाग मेरे मन और शरीर पर छोड़े थे, वे शायद कभी नहीं मिटेंगे।

मैंने बाथरूम में जाकर लंबा स्नान किया, जैसे कि पानी से मैं अपने अपराधबोध को धो सकूँ। लेकिन हर बार जब मैं अपनी आँखें बंद करती, चाचा की छवि मेरे सामने आ जाती। उसकी उंगलियाँ, उसका स्पर्श, उसका लिंग... सब कुछ मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहा था।

शाम को जब गगन वापस आया, तो वह बहुत खुश था। "चाचा जी को बहुत अच्छा लगा यहाँ। बोले, फिर आएँगे।" उसने हँसते हुए कहा।

मैंने सिर्फ हल्के से मुस्कुरा दिया। मेरे मन में एक डर सा बैठ गया था। क्या चाचा फिर आएगा? और अगर वह आया, तो क्या मैं फिर से अपने आप को रोक पाऊँगी? मैं नहीं जानती थी। लेकिन एक बात मैं जानती थी—मैंने जो किया, वह मेरे और गगन के रिश्ते पर एक अनदेखा सा बोझ डाल गया था। और इस बोझ को मैं अकेले ही ढोने वाली थी।

समाप्त

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कई महीने बीत चुके थे जब से चाचा गाँव वापस गए थे। घर में सब कुछ सामान्य सा लगने लगा था। गगन अपने ऑफिस के काम में व्यस्त रहता, और मैं अपने रोज़मर्रा के कामों में उलझी रहती। लेकिन मेरे मन के किसी कोने में एक अजीब सी बेचैनी थी, जो मुझे चैन नहीं लेने देती थी। मैं चाचा की हरकतों से नफरत करती थी, उसकी बेशर्मी और जबरदस्ती से गुस्सा थी, लेकिन... लेकिन फिर भी, कहीं न कहीं, मेरे शरीर को उसका स्पर्श याद आता था। उसकी उंगलियों का मेरे शरीर पर फिरना, उसकी गर्म साँसें, और वह अजीब सा आनंद जो उसने मुझे दिया था—ये सब मेरे दिमाग से नहीं जा रहा था। मैं खुद से नफरत करती थी कि मैं ऐसा क्यों सोच रही थी। गगन मेरा प्यार था, मेरा सब कुछ, फिर भी मेरे मन का एक हिस्सा उस देहाती की यादों में खोया रहता था।

एक रात, जब गगन देर तक ऑफिस में रुका था, मैं अकेले बेडरूम में लेटी थी। बाहर बारिश हो रही थी, और खिड़की से आती ठंडी हवा मेरे शरीर को छू रही थी। मैंने आँखें बंद कीं, और अनायास ही चाचा की छवि मेरे सामने आ गई। उस दिन की याद, जब उसने मुझे अपने कमरे में ले जाकर... मैंने झट से आँखें खोल दीं। "नहीं, निधि, तुझे ये सब नहीं सोचना चाहिए," मैंने खुद को डाँटा। लेकिन मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी सी फैल रही थी। मैंने अपने हाथ को अपनी जाँघों पर फिराया, और अनायास ही मेरी उंगलियाँ मेरी योनि की ओर बढ़ गईं। मैंने खुद को छुआ, और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकी निकल गई। लेकिन वह सुख, वह आनंद जो चाचा की उंगलियों में था, वह मेरे अपने हाथों में नहीं था। मैंने गुस्से में तकिए को जोर से दबाया और करवट बदल ली।

अगले दिन सुबह, गगन ने नाश्ते के दौरान अचानक कहा, "निधि, चाचा जी का फोन आया था। बोले, गाँव में उनका स्वास्थ्य फिर से खराब हो गया है। शायद हमें उन्हें यहाँ बुलाना पड़े।"

मेरे हाथ में चाय का कप काँप गया। "क...क्या? चाचा जी को फिर से यहाँ?" मैंने बमुश्किल अपनी आवाज़ को सामान्य रखते हुए पूछा।

"हाँ, क्यों, क्या हुआ? तुम्हें तो उनसे कोई दिक्कत नहीं थी न? वो तो बहुत अच्छे से तुम्हारी मोच भी उतार गए थे।" गगन ने हँसते हुए कहा।

मैंने जल्दी से नजरें हटा लीं। मेरे मन में एक तूफान सा उठ रहा था। एक तरफ मैं चाचा से नफरत करती थी, उसकी हरकतों को कभी माफ नहीं करना चाहती थी, लेकिन दूसरी तरफ मेरा शरीर उसकी यादों में तड़प रहा था। "न...नहीं, कोई दिक्कत नहीं। लेकिन क्या जरूरत है? गाँव में ही इलाज करवा लें।" मैंने बात को टालने की कोशिश की।

"अरे, निधि, वो हमारे अपने हैं। यहाँ बेहतर इलाज मिलेगा। मैंने उनसे कह दिया है कि अगले हफ्ते आ जाएँ।" गगन ने बेफिक्री से कहा और अखबार पढ़ने में लग गया।

मैं चुपचाप उठकर किचन में चली गई। मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी। चाचा फिर से आने वाला था। मैं क्या करूँ? मैं उसे रोक नहीं सकती थी, लेकिन मैं ये भी नहीं चाहती थी कि वह मेरे जीवन में फिर से आए। मैंने खुद से वादा किया कि इस बार मैं उसे कोई मौका नहीं दूँगी। मैं गगन के साथ पूरी तरह वफादार रहूँगी। लेकिन मेरे मन का एक हिस्सा कह रहा था—क्या मैं सचमुच ऐसा कर पाऊँगी?

---

अगले हफ्ते चाचा आ गया। जब वह घर में दाखिल हुआ, तो उसकी वही पुरानी बेशर्म मुस्कान मेरे सामने थी। "अरे, निधि बेटी, कैसी हो तुम?" उसने मेरी ओर देखते हुए कहा। उसकी आँखों में वही चमक थी, जो मुझे पहले भी परेशान करती थी।

"ठीक हूँ," मैंने ठंडी आवाज़ में जवाब दिया और किचन की ओर बढ़ गई। मैं उससे नजरें नहीं मिलाना चाहती थी। गगन ने चाचा को उसके कमरे में ले जाकर उसका सामान रखवाया।

पहले दिन सब कुछ सामान्य रहा। चाचा ज्यादातर अपने कमरे में ही रहा, और गगन उसके साथ बातें करता रहा। मैंने जानबूझकर चाचा से दूरी बनाए रखी। लेकिन रात को, जब मैं बेडरूम में कपड़े बदल रही थी, मुझे अचानक ऐसा लगा जैसे कोई मुझे देख रहा हो। मैंने झट से खिड़की की ओर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। फिर भी, मेरे मन में एक अजीब सा डर और उत्तेजना का मिश्रण था। मैंने जल्दी से कपड़े बदले और बिस्तर पर लेट गई।

अगले दिन, गगन को ऑफिस के लिए जल्दी निकलना था। उसने मुझसे कहा, "निधि, चाचा जी का ध्यान रखना। आज उनका हॉस्पिटल में अपॉइंटमेंट है। मैं शाम को जल्दी आ जाऊँगा।"

मैंने सिर्फ सिर हिलाया। गगन के जाने के बाद, घर में सिर्फ मैं और चाचा थे। मैं किचन में काम कर रही थी, जब चाचा धीरे से किचन में आया।

"निधि बेटी, चाय बना दो न," उसने कहा, और उसकी नजरें मेरे शरीर पर टिक गईं।

"जी, अभी बनाती हूँ," मैंने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया। मैं उससे बात नहीं करना चाहती थी।

"क्या बात है, निधि? मुझसे नाराज़ हो क्या?" उसने मेरे पास आते हुए कहा। उसकी आवाज़ में वही पुरानी चालाकी थी।

"कोई नाराज़गी नहीं। आप अपने कमरे में जाइए, चाय लेकर आती हूँ," मैंने ठंडे लहजे में कहा।

"अरे, इतना गुस्सा क्यों? मैं तो बस तुमसे बात करने आया हूँ।" उसने मेरे और करीब आने की कोशिश की।

"दूर रहिए मुझसे!" मैंने तेज आवाज़ में कहा और उसकी ओर गुस्से से देखा। "आप जो पहले किए, वो मैं कभी नहीं भूल सकती। मैं गगन की बीवी हूँ, और मैं आपको फिर से कोई मौका नहीं दूँगी।"

चाचा हल्के से हँसा। "ठीक है, ठीक है। गुस्सा मत हो। मैं कुछ नहीं करूँगा। लेकिन ये तो मानना पड़ेगा, निधि, कि तुम्हें भी वो सब अच्छा लगा था।"

"बेशर्म!" मैंने गुस्से में कहा और चाय का कप उसके सामने रख दिया। "पीजिए और अपने कमरे में जाइए।"

चाचा ने चाय का कप लिया और मेरी ओर देखकर मुस्कुराया। "तुम कितना भी गुस्सा कर लो, निधि, लेकिन तुम्हारा शरीर सच बोलता है।" वह चाय लेकर अपने कमरे में चला गया।

मैं किचन में अकेली खड़ी थी, और मेरे गुस्से के साथ-साथ मेरे शरीर में एक अजीब सी हलचल थी। मैं उसकी बातों से नफरत करती थी, लेकिन कहीं न कहीं उसकी बातें मेरे मन में घर कर रही थीं। मैंने खुद को व्यस्त रखने के लिए बर्तन धोने शुरू कर दिए।

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शाम को गगन वापस आया, और उसने चाचा को हॉस्पिटल ले जाने की बात की। अगले दिन, गगन और चाचा हॉस्पिटल चले गए, और मैं घर पर अकेली थी। मैंने सोचा कि आज मुझे चैन मिलेगा। लेकिन जैसे ही मैं बेडरूम में गई, मेरी नजर उस खिड़की पर पड़ी, जहाँ से मुझे रात को ऐसा लगा था कि कोई मुझे देख रहा था। मैंने खिड़की खोली और बाहर देखा। वहाँ कोई नहीं था, लेकिन मेरे मन में एक अजीब सा ख्याल आया। क्या चाचा मुझे फिर से देख रहा था?

मैंने खिड़की बंद की और बिस्तर पर लेट गई। मेरे मन में चाचा की बातें गूँज रही थीं। "तुम्हारा शरीर सच बोलता है..." मैंने अपनी आँखें बंद कीं, और अनायास ही मेरे हाथ मेरी जाँघों की ओर बढ़ गए। मैंने खुद को छुआ, और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकी निकल गई। मैंने जल्दी से अपने हाथ हटा लिए और खुद को डाँटा। "निधि, तुझे ये सब नहीं करना चाहिए!"

लेकिन उस रात, जब गगन सो रहा था, मैं फिर से बेचैन थी। मैं बार-बार करवटें बदल रही थी। मेरे शरीर में एक अजीब सी आग सी जल रही थी। मैंने गगन को जगाने की कोशिश की, लेकिन वह गहरी नींद में था। आखिरकार, मैं चुपके से बेडरूम से बाहर निकली और टॉयलेट की ओर बढ़ी।

टॉयलेट से बाहर निकलते ही मैंने देखा कि ड्राइंग रूम में हल्की सी रोशनी थी। चाचा सोफे पर बैठा था, और उसकी नजरें मुझ पर टिकी थीं। मेरे दिल की धड़कन फिर से तेज हो गई।

"क...क्या कर रहे हो यहाँ?" मैंने काँपती आवाज़ में पूछा।

"बस, नींद नहीं आ रही थी, निधि। तुझे भी तो नींद नहीं आ रही, न?" उसने धीरे से कहा, और उसकी आँखों में वही चमक थी।

"म...मुझे नींद आ रही है। मैं बस..." मैंने बात को अधूरा छोड़कर अपने कमरे की ओर बढ़ने की कोशिश की।

"रुक जा, निधि। थोड़ी देर बात तो कर ले।" उसने मेरी कलाई पकड़ ली। उसका स्पर्श मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ा गया। मैंने अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन मेरे शरीर ने मेरे दिमाग की बात नहीं मानी।

"छोड़ो मुझे... मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती," मैंने गुस्से में कहा।

"गुस्सा तो तुझे मुझ पर बहुत है, लेकिन तेरा शरीर तो मेरे पास खिंचा चला आता है।" उसने मेरे और करीब आते हुए कहा। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं।

"बेशर्म! हट जाओ!" मैंने उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया।

"शांत हो जा, निधि। मैं कुछ नहीं करूँगा अगर तू नहीं चाहेगी। लेकिन तुझे भी तो मेरी जरूरत है, है न?" उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा।

उसकी बातें मेरे मन को भेद रही थीं। मैं उससे नफरत करती थी, लेकिन मेरा शरीर उसकी बातों का गुलाम हो रहा था। उसने मेरे नितंबों पर धीरे से हाथ फिराया, और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकी निकल गई।

"देख, तेरा शरीर तो सच बोल रहा है।" उसने मेरे नितंबों को हल्के से दबाते हुए कहा।

"नहीं... ये गलत है..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, लेकिन मेरे शरीर ने मेरे शब्दों का साथ नहीं दिया। उसकी उंगलियाँ मेरे नितंबों की गोलाई पर फिर रही थीं, और मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी।

"बस थोड़ा सा, निधि। फिर मैं तुझे परेशान नहीं करूँगा।" उसने मेरी सलवार के नाड़े पर हाथ रखा। मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मेरी ताकत जवाब दे गई।

"नहीं... चाचा... प्लीज..." मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, लेकिन उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मेरी सलवार फर्श पर गिर गई, और अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। उसने मेरी पैंटी में हाथ डाला और मेरी योनि पर उंगलियाँ फिरानी शुरू की।

"आह्ह..." मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मेरी योनि पहले से ही गीली थी, और उसकी उंगलियाँ मेरे क्लिटोरिस को रगड़ रही थीं। मैं अपने चरम की ओर बढ़ रही थी, और मैं इसे रोक नहीं पा रही थी।

"देख, कितना मजा आ रहा है तुझे।" उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने मेरी पैंटी नीचे सरका दी और मेरी योनि में दो उंगलियाँ डाल दी। मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई।

"बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। उसने मेरी योनि में अपनी उंगलियाँ तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू की, और कुछ ही पलों में मैं झड़ गई। मेरे पैर काँप रहे थे, और मैंने दीवार का सहारा लिया।

चाचा ने मुझे अपनी बाहों में उठाया और अपने कमरे की ओर ले गया। मैं विरोध करना चाहती थी, लेकिन मेरा शरीर उसका गुलाम हो चुका था। उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे ऊपर झुक गया। उसने मेरी कमीज़ उतार दी, और अब मैं पूरी तरह नग्न थी।

"निधि, तू कितनी खूबसूरत है," उसने मेरे उभारों को चूमते हुए कहा। उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर फिर रही थी, और मेरे शरीर में फिर से आग सी भड़क रही थी।

"चाचा... ये गलत है... गगन..." मैंने आखिरी बार कोशिश की, लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी। उसने अपनी पैंट उतार दी, और उसका लिंग मेरी योनि के पास था।

"शांत रह, निधि। बस थोड़ा सा और।" उसने मेरी योनि में अपने लिंग का सुपाड़ा रखा और धीरे से अंदर प्रवेश करवाया। मैं सिहर उठी। उसका लिंग मेरी योनि को पूरी तरह भर रहा था, और हर धक्के के साथ मुझे एक अजीब सा आनंद मिल रहा था।

"आह्ह..." मेरी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उसने अपनी गति बढ़ा दी, और मैं फिर से अपने चरम की ओर बढ़ रही थी।

"निधि... तू... तू बहुत मस्त है..." उसने हाँफते हुए कहा, और कुछ ही पलों में वह भी अपने चरम पर पहुँच गया। उसने अपने लिंग को बाहर निकाला और मेरे पेट पर अपना वीर्य गिरा दिया।

मैं वहाँ पड़ी थी, शर्म और ग्लानि से भरी हुई। मैंने फिर से गगन को धोखा दिया था। लेकिन मेरा शरीर अभी भी उस आनंद में डूबा हुआ था। चाचा मेरे बगल में लेट गया और मेरे बालों को सहलाने लगा।

"निधि, तू सच में एकदम अनमोल है।" उसने धीरे से कहा।

मैं चुपचाप उठी और अपने कपड़े पहनने लगी। "ये आखिरी बार था, चाचा। फिर कभी मेरे पास मत आना," मैंने कठोर स्वर में कहा और अपने बेडरूम की ओर चली गई।

गगन अभी भी सो रहा था। मैं बिस्तर पर लेट गई, लेकिन मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। मैंने फिर से अपने पति को धोखा दिया था। मैं चाचा से नफरत करती थी, लेकिन मैं अपने शरीर की कमजोरी से भी नफरत करती थी। मैंने ठान लिया कि अब मैं चाचा को अपने जीवन से हमेशा के लिए दूर रखूँगी। लेकिन क्या मैं सचमुच ऐसा कर पाऊँगी? ये सवाल मेरे मन में बार-बार गूँज रहा था।

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चाचा के आने के बाद से मेरे मन की उथल-पुथल और बढ़ गई थी। मैं उससे नफरत करती थी, उसकी बेशर्म हरकतों से गुस्सा थी, लेकिन मेरे शरीर का एक हिस्सा उसकी छुअन के लिए तड़प रहा था। मैं हर रात खुद को कोसती थी कि मैं ऐसा क्यों सोच रही हूँ। गगन मेरा प्यार था, मेरा सब कुछ, लेकिन फिर भी चाचा की यादें मेरे मन और शरीर पर छाई रहती थीं। मैंने ठान लिया था कि इस बार मैं उसे कोई मौका नहीं दूँगी। मैं गगन के साथ वफादार रहूँगी। लेकिन मेरे मन का एक कोना बार-बार मुझे धोखा दे रहा था।

एक दोपहर, गगन ऑफिस के लिए निकल गया था। चाचा को हॉस्पिटल जाना था, लेकिन उसने कहा कि वह आज थोड़ा आराम करना चाहता है। मैं किचन में खाना बना रही थी, जब चाचा धीरे से किचन में आया। उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी, जो मुझे हमेशा परेशान करती थी।

"निधि बेटी, कुछ खाने को दे दो। भूख लगी है," उसने कहा, और उसकी नजरें मेरे शरीर पर टिक गईं।

"जी, अभी बन रहा है। आप ड्राइंग रूम में बैठिए," मैंने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया। मैं उससे दूरी बनाए रखना चाहती थी।

"अरे, इतना काम क्यों करती हो? थोड़ा मेरे साथ भी तो बात कर लो," उसने मेरे पास आते हुए कहा। उसकी आवाज़ में वही चालाकी थी, जो मुझे पहले भी डराती थी।

"मुझे काम है। आप जाइए," मैंने ठंडे लहजे में कहा और अपने काम में लग गई।

"क्या बात है, निधि? मुझसे इतना गुस्सा क्यों? मैं तो बस तुम्हारी तारीफ करना चाहता हूँ। इतनी खूबसूरत हो तुम, गगन बहुत खुशकिस्मत है," उसने मेरे और करीब आते हुए कहा।

"दूर रहिए मुझसे!" मैंने तेज आवाज़ में कहा और उसकी ओर गुस्से से देखा। "आप जो पहले किए, वो मैं कभी नहीं भूलूँगी। मैं गगन की बीवी हूँ, और मैं आपको फिर से कोई मौका नहीं दूँगी।"

चाचा ने हल्के से मुस्कुराया। "ठीक है, नाराज़ मत हो। लेकिन ये तो मानना पड़ेगा, निधि, कि तुम्हें भी वो सब अच्छा लगा था। तेरा शरीर तो मेरे लिए तड़पता है।"

"बेशर्म!" मैंने गुस्से में कहा और किचन से बाहर निकलने लगी। लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसका स्पर्श मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ा गया। मैंने अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन मेरे शरीर ने मेरे दिमाग की बात नहीं मानी।

"छोड़ो मुझे!" मैंने गुस्से में कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में वह दृढ़ता नहीं थी जो होनी चाहिए थी।

"निधि, तू कितना भी गुस्सा कर ले, लेकिन तेरा शरीर सच बोलता है। तुझे मेरी जरूरत है, और मुझे तेरी।" उसने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी।

"नहीं... ये गलत है..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, लेकिन मेरे शब्द हवा में तैरते हुए बेकार से लग रहे थे। उसने मेरे नितंबों पर धीरे से हाथ फिराया, और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकी निकल गई।

"देख, तेरा शरीर तो मेरे लिए तरस रहा है," उसने मेरे नितंबों को हल्के से दबाते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ मेरे नितंबों की गोलाई पर फिर रही थीं, और मेरे शरीर में एक आग सी भड़क रही थी।

"बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। उसने मेरी सलवार के नाड़े पर हाथ रखा, और मैंने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन मेरी ताकत जवाब दे गई। उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया, और मेरी सलवार फर्श पर गिर गई। अब मैं सिर्फ पैंटी और कमीज़ में थी।

"चाचा... प्लीज... ये मत करो..." मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी। उसने मुझे किचन की स्लैब के खिलाफ दबा दिया और मेरी कमीज़ को ऊपर उठा दिया। उसकी उंगलियाँ मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी योनि पर फिरने लगीं, और मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई।

"देख, कितनी गीली हो गई है तू। तुझे भी तो ये चाहिए," उसने मेरी पैंटी में हाथ डालते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ मेरी योनि के होंठों पर फिर रही थीं, और मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगीं।

"आह्ह..." मैंने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया ताकि मेरी आवाज़ बाहर न जाए। उसने मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया और मेरी योनि पर अपनी उंगलियाँ फिरानी शुरू की। उसकी दो उंगलियाँ मेरी योनि में धीरे-धीरे अंदर गईं, और मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ गया। उसकी उंगलियाँ मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रही थीं, और हर बार जब वह मेरे क्लिटोरिस को छूता, मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती।

"निधि, तू कितनी गर्म है," उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने मेरी कमीज़ को पूरी तरह उतार दिया, और अब मैं सिर्फ ब्रा में थी। उसने मेरी ब्रा को भी खोल दिया, और मेरे उभार उसके सामने नंगे थे। उसने मेरे दायें उभार को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर फिर रही थी, और मेरे शरीर में आग सी भड़क रही थी।

"नहीं... चाचा... बस..." मैंने कमजोर आवाज़ में कहा, लेकिन मेरे शरीर ने पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिया था। उसने मेरे बायें उभार को अपने हाथ से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरी योनि में तेजी से अंदर-बाहर हो रही थीं। मेरे मुँह से सिसकियाँ निकल रही थीं, और मैं अपने चरम की ओर बढ़ रही थी।

"आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ तेज हो गईं, और मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया। मेरे पैर काँप रहे थे, और मैंने स्लैब का सहारा लिया। चाचा ने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकालीं और उन्हें मेरे सामने लहराते हुए कहा, "देख, कितना रस टपका रही है तू।"

मैं शर्म से मर गई और अपनी नजरें नीचे कर लीं। "बस... अब मुझे जाने दो..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन उसने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और ड्राइंग रूम की ओर ले गया। उसने मुझे सोफे पर लिटा दिया और मेरे ऊपर झुक गया।

"अभी तो शुरुआत है, निधि। तुझे और मजा देना है मुझे," उसने मेरे होंठों को चूमते हुए कहा। उसका चुंबन गहरा और भूखा था। उसकी जीभ मेरे होंठों को चाट रही थी, और मेरे शरीर में फिर से आग सी भड़क रही थी। उसने मेरे दोनों पैर फैलाए और मेरी योनि पर अपना मुँह रख दिया। जैसे ही उसकी जीभ ने मेरी योनि को छुआ, मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई।

"आह्ह... नहीं..." मैंने अपने मुँह को अपने हाथों से ढक लिया। उसकी जीभ मेरी योनि के हर हिस्से को चाट रही थी। वह मेरे क्लिटोरिस पर बार-बार अपनी जीभ घुमा रहा था, और मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी। उसने मेरी योनि के होंठों को अपने होंठों से चूसा, और मेरे मुँह से जोरदार सिसकियाँ निकलने लगीं।

"श्ह्ह... धीरे, निधि। गगन जाग जाएगा," उसने हँसते हुए कहा, लेकिन उसकी जीभ रुकी नहीं। उसने मेरी योनि में अपनी जीभ डाल दी और उसे अंदर-बाहर करने लगा। मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ रहा था। मैं अपने चरम की ओर फिर से बढ़ रही थी।

"आह्ह... बस... रुक जाओ..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। उसने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठों से चूसा, और मेरी योनि ने फिर से रस छोड़ दिया। मेरे पैर काँप रहे थे, और मेरा शरीर पसीने से तर था।

चाचा ने मेरी योनि से अपना मुँह हटाया और मेरे ऊपर लेट गया। उसने अपनी पैंट उतार दी, और उसका लिंग मेरी योनि के पास था। उसका लिंग पहले से ही तनाव में था, और उसका आकार देखकर मेरे दिल की धड़कन और तेज हो गई। उसका लिंग गगन के लिंग से कहीं ज्यादा लंबा और मोटा था, और उसका सुपाड़ा चमक रहा था।

"चाचा... नहीं... ये नहीं..." मैंने उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरे दोनों हाथ सोफे पर दबा दिए।

"शांत रह, निधि। तुझे दुख नहीं दूँगा। बस थोड़ा सा..." उसने मेरी योनि पर अपने लिंग का सुपाड़ा रखा। उसका सुपाड़ा मेरी योनि के होंठों को छू रहा था, और मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी। उसने धीरे से अपने लिंग को मेरी योनि में प्रवेश करवाना शुरू किया। पहले तो मुझे हल्का सा दर्द हुआ, लेकिन मेरी योनि पहले से ही गीली थी, इसलिए उसका लिंग आसानी से अंदर चला गया।

"आह्ह..." मेरे मुँह से एक सिसकी निकली। उसका लिंग मेरी योनि को पूरी तरह भर रहा था। उसने धीरे-धीरे अपने लिंग को अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसका हर धक्का मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रहा था, और मुझे एक अजीब सा आनंद मिल रहा था। उसने मेरे दोनों उभारों को अपने हाथों से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल्स को चुटकी में लेकर रगड़ रही थीं।

"निधि... तू कितनी टाइट है..." उसने हाँफते हुए कहा। उसने अपनी गति बढ़ा दी, और अब उसके धक्के और तेज हो गए थे। उसका लिंग मेरी योनि में गहराई तक जा रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे मुँह से सिसकियाँ निकल रही थीं।

"आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। उसने मेरे दायें उभार को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर फिर रही थी, और मेरे शरीर में आग सी भड़क रही थी। उसने मेरे बायें उभार को अपने हाथ से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे निप्पल को रगड़ रही थीं।

मेरे शरीर में एक तूफान सा उठ रहा था। मैं अपने चरम की ओर बढ़ रही थी। उसने मेरे दोनों पैर अपने कंधों पर रख लिए, जिससे उसका लिंग मेरी योनि में और गहराई तक जा रहा था। उसका हर धक्का मेरे शरीर को झकझोर रहा था, और मेरे मुँह से जोरदार सिसकियाँ निकल रही थीं।

"आह्ह... चाचा... बस..." मैंने बमुश्किल कहा, लेकिन मेरी सिसकियाँ मेरे शब्दों को दबा रही थीं। उसने मेरी योनि में अपनी गति और तेज कर दी, और उसका लिंग मेरी योनि की दीवारों को रगड़ रहा था। मेरे शरीर में एक और तूफान उठा, और मैं फिर से झड़ गई। मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया, और मेरे पैर काँप रहे थे।

चाचा नहीं रुका। उसने मेरे दोनों पैर नीचे किए और मुझे उल्टा कर दिया। अब मैं सोफे पर घुटनों के बल थी, और मेरे नितंब उसके सामने थे। उसने मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से फैलाया और मेरे पीछले छिद्र पर अपनी उंगली फिराई।

"नहीं... वहाँ नहीं..." मैंने डरते हुए कहा, लेकिन उसने मेरी बात नहीं सुनी। उसने अपने लिंग का सुपाड़ा मेरे पीछले छिद्र पर रखा। मैं डर से काँपने लगी। उसका लिंग मेरे पीछले छिद्र के लिए बहुत बड़ा था, और मुझे डर था कि यह बहुत दर्द देगा।

"शांत रह, निधि। मैं धीरे करूँगा," उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उसने मेरे पीछले छिद्र पर थूक लगाया और अपने लिंग का सुपाड़ा धीरे से अंदर धकेलना शुरू किया। पहले तो मुझे असहनीय दर्द हुआ, और मेरे मुँह से एक चीख निकल गई।

"आह्ह... नहीं... दर्द हो रहा है..." मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, लेकिन उसने मेरे कंधों को पकड़ रखा था। उसने धीरे-धीरे अपने लिंग को और अंदर धकेला। दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा, और मेरे शरीर में एक अजीब सा आनंद मिलने लगा।

"देख, अब मजा आ रहा है न?" उसने मेरे नितंबों को मसलते हुए कहा। उसने अपने लिंग को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसका लिंग मेरे पीछले छिद्र को पूरी तरह भर रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी।

"आह्ह... आह्ह..." मेरी सिसकियाँ फिर से शुरू हो गईं। उसने मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे नितंबों की गोलाई पर फिर रही थीं। उसने मेरे पीछले छिद्र में अपनी गति बढ़ा दी, और मेरे शरीर में एक और तूफान सा उठ रहा था।

"निधि... तू कितनी मस्त है..." उसने हाँफते हुए कहा। उसने मेरे नितंबों पर जोर से चाँटा मारा, और मेरे मुँह से एक चीख निकल गई। उसका लिंग मेरे पीछले छिद्र में तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था, और कमरे में छप-छप की आवाज़ गूँज रही थी।

मेरे शरीर में एक और चरम की लहर उठी, और मैं फिर से झड़ गई। मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा शरीर पसीने से तर था। चाचा ने मेरे पीछले छिद्र से अपने लिंग को निकाला और मुझे फिर से सीधा कर दिया। उसने मेरे दोनों पैर फैलाए और अपने लिंग को मेरी योनि में डाल दिया।

"आह्ह..." मेरे मुँह से फिर से सिसकी निकली। उसका लिंग मेरी योनि को फिर से भर रहा था, और उसने अपनी गति तेज कर दी। उसने मेरे दोनों उभारों को अपने हाथों से मसलना शुरू किया, और उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर फिर रही थी। मेरे शरीर में फिर से आग सी भड़क रही थी।

"निधि... मैं... मैं..." उसने हाँफते हुए कहा, और कुछ ही पलों में वह अपने चरम पर पहुँच गया। उसने अपने लिंग को मेरी योनि से बाहर निकाला और मेरे पेट और उभारों पर अपना वीर्य गिरा दिया। उसका गर्म वीर्य मेरे शरीर पर फैल गया, और मैं शर्म और ग्लानि से भरी हुई वहाँ पड़ी रही।

चाचा मेरे बगल में लेट गया। उसकी साँसें अभी भी तेज थीं। "मजा आ गया, निधि। तू सच में एकदम अनमोल है," उसने हँसते हुए कहा।

मैं चुपचाप वहाँ पड़ी रही। मेरे मन में ग्लानि और अपराधबोध का तूफान चल रहा था। मैंने फिर से गगन को धोखा दिया था। मैंने अपने वैवाहिक जीवन को और दागदार कर दिया था। लेकिन साथ ही, मेरे शरीर को जो आनंद मिला था, वह भी मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहा था।

"अब... मुझे जाने दो..." मैंने धीरे से कहा और उठकर अपने कपड़े पहनने लगी। चाचा ने मुझे नहीं रोका। मैंने जल्दी से अपनी कमीज़, ब्रा, और सलवार पहनी और बिना उसकी ओर देखे अपने बेडरूम की ओर चल दी।

बेडरूम में गगन अभी भी सो रहा था। मैं धीरे से बिस्तर पर लेट गई, लेकिन मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। मैंने फिर से अपने पति को धोखा दिया था। मैं चाचा से नफरत करती थी, लेकिन मैं अपने शरीर की कमजोरी से भी नफरत करती थी। मैंने ठान लिया कि अब मैं चाचा को अपने जीवन से हमेशा के लिए दूर रखूँगी। लेकिन क्या मैं सचमुच ऐसा कर पाऊँगी? ये सवाल मेरे मन में बार-बार गूँज रहा था।

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